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मिट्टी का सच्चा मित्र

Posted on January 26, 2020

कितना महत्वपूर्ण है भूमि के स्वस्थ्य जीवन के लिए केंचुआ

देखे पूरा विडियो 

video source : Green TV India

 

वर्मी कम्पोस्ट क्या है?

केंचुआ के द्वारा जैविक पदार्थों के खाने के बाद उसके पाचन-तंत्र से गुजरने के बाद जो उपशिष्ट पदार्थ मल के रूप में बाहर निकलता है उसे वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खाद कहते हैं। यह हल्का काला, दानेदार या देखने में चायपत्ती के जैसा होता है यह फसलों के लिए काफी लाभकारी होता है। इस खाद में मुख्य पोषक तत्व के अतिरिक्त दूसरे सूक्ष्म पोषक तत्व तथा कुछ हारमोंस एवं एंजाइमस भी पाए जाते हैं जो पौधों की वृद्धि के लिए लाभदायक होते हैं। वर्मी कम्पोस्टिंग में स्थानीय केंचुओं की किस्मों का प्रयोग करें। छोटानागपुर में ऐसेनीया फोटिडा नामक किस्म वहां के वातावरण के लिए उपयुक्त है।

 

वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि

  1. केंचुआ खाद बनाने के लिए पहले ऐसे स्थान का चुनाव करें, जहाँ धूप नहीं आती हो, लेकिन वो स्थान हवादार हो। ऐसे स्थान पर 2 मीटर लंबा एवं 1 मीटर चौड़ी जगह के चारों ओर मेड़ बना लें जिससे कम्पोस्टिंग पदार्थ इधर-उधर बेकार न हो।
  2. सबसे पहले नीचे 6 इंच का एक पर्त जिसमें आधा सड़ा हुआ गोबर या वर्मी कम्पोस्ट हो, उसमें थोडा उपजाऊ मिट्टी मिलाकर फैला दें। जिसमें केंचुआ को प्रारंभिक अवस्था में भोजन मिल सकें। इसके बाद 40 केंचुआ प्रति वर्ग फीट के हिसाब से उसमें डाल दें।
  3. उसके बाद घर एवं रसोई घर की सब्जियों के अवशेष आदि का एक परत डालें जो लगभग 8-10 इंच मोटा जो जाए।
  4. दूसरी परत को डालने के बाद पुआल, सुखी पत्तियां, गोबर आदि को आधा सड़ाकर दूसरे परत के ऊपर डालें। प्रत्येक परत के बाद इतना पानी का छिड़काव करें कि जिससे परत में नमी हो जाए।
  5. अंत में 3-4 इंच मोटी गोबर की परत डालकर ऊपर से ढँक दें तथा ऊपर बोरा डाल दें जिससे केंचुए आसानी से ऊपर नीचे घूम सकें। प्रकाश की उपस्थिति में केंचुओं का आवगमन कम हो जाता है जिससे खाद बनाने में समय लग सकता है इसीलिए ढंकना आवश्यक है।  आप देखेंगे कि 50-60 दिनों में वर्मी कम्पोस्ट खाद तैयार हो जाएगी। सबसे ऊपर के परत को हटाएं तथा उसमें से केंचुओं को चुनकर निकाल लें। इस प्रकार नीचे की परत को छोड़कर बाकी खाद इकट्ठा कर लें। छलनी से चालकर, केंचुओं को अलग किया जा सकता है, पुनः इस विधि को दुहराएं।

 

पोषक तत्वों की मात्रा

पोषक तत्व % मात्रा
नेत्रजन 06-12
स्फुर 1.34-2.2
पोटाश 0.40.6
कैल्शियम 0.44
मैग्नीशियम 0.15

इसके अलावा एंजाइमस, हारमोंस एवं अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व भी पाए जाते हैं।

 

लाभ

  1. केंचुआ द्वारा तैयार खाद में पोषक तत्वों की मात्रा साधारण कम्पोस्ट की अपेक्षा अधिक होती है।
  2. भूमि की उर्वरता में वृद्धि होती है।
  3. फसलों की ऊपज में वृद्धि होती है।
  4. इस खाद का प्रयोग मुख्य रुप से फूल-पौधों एवं किचेन गार्डेन में किया जा सकत है जिससे फूल एवं फल के आकार में वृद्धि होती है।
  5. वर्मी कम्पोस्ट खाद के प्रयोग से भूमि वायु का संचार सुचारू रूप से होता है।
  6. यह खाद भूमि संरचना एवं भौतिक दशा सुधारने में सहायक होता है।
  7. इसके प्रयोग से भूमि  की दशा एवं स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  8. कार्बिनक पदार्थों का विघटन करने वाले एंजाइम से  भी इसमें काफी मात्रा में रहते है जो वर्मी कम्पोस्ट के एक बार प्रयोग करने के बाद लंबे समय तक भूमि में सक्रिय रहते हैं।
  9. इसके प्रयोग से मिट्टी की भौतिक संरचना में परिवर्तन होता है तथा उसकी जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है।

10. इसके प्रयोग से फसलों की उपज में 15-20% तक की वृद्धि होती है।

11. इसके किसानों के द्वारा बहुत कम पूंजी से अपने घरों के आस-पास बेकार पड़ी भूमि पर तैयार करके अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

 

बनाने में सावधानियां

  1. वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाते समय यह ध्यान रखें कि नमी की कमी न हो। नमी बनाये रखने के लिए आवश्कतानुसार पानी का छिड़काव् करें।
  2. खाद बनाते समय यह ध्यान रखें कि उनमें ऐसे पदार्थ (सामग्री) का प्रयोग नहीं करे जिसका अपघटन (सड़न क्रिया) नहीं होता है या जो पदार्थ सड़ता नहीं है जसे –प्लास्टिक, लोहा, कांच इत्यादि का प्रयोग नहीं करें।
  3. कम्पोस्ट बेड (ढेर) को ढंककर रखें।
  4. वर्मी कम्पोस्ट बेड का तापमान 35 से.ग्रे. से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
  5. चींटी एवं मेढ़क आदि से केंचुओं को बचाकर रखें। ये इनके शत्रु होते हैं।
  6. कीटनाशक दवाओं का प्रयोग नहीं करें।
  7. खाद बनाने के सामग्री में किसी भी तरह रसायनिक उर्वरक नहीं मिलाएं।
  8. कम्पोस्ट बेड के आस-पास पानी नहीं लगने दें।

 

बनाने की उन्नत विधि

  • गड्ढे का आकार: 3 मीटर लंबा, 1.5  मीटर चौड़ा, 1 मीटर गहरा।
  • गड्ढे की संख्या:प्रति मवेशी एक गड्ढा ।
  • सामग्री: खरपतवार, कूड़ा-कचरा, फसलों के डंठल, पशुओं के मल-मूत्र एवं इससे सने पुआल, जलकुंभी, थेथर, पुटूस की पत्तियां इत्यादि।

 

गड्ढा भरने की विधि

  1. प्रत्येक गड्ढे को तीन भागों में बांटकर जो भी सामग्री  उपलब्ध हो, उसे एक पतली परत के रूप में (1.5 सेंटीमीटर मोटी) बिछाएं।
  2. गोबर का पतला घोल(5%) बनाकर एक सतह पर डालें तथा लगभग 200 ग्राम लकड़ी का राख बिछायें।
  3. प्रत्येक सतह पर लगभग 25 ग्राम यूरिया डाल दें।
  4. गड्ढें को इसी प्रकार तबतक भरते रहें, जबतक उसकी ऊंचाई जमीन की सतह से 30 सेंटीमीटर ऊँची न हो जाए।
  5. बारीक मिट्टी की पतली परत (5 सेंटीमीटर) से गड्ढे को ढक दें तथा गोबर से लिपाई कर बंद कर दें।
  6. इस प्रकार प्रत्येक भाग को क्रमशः भरें। इस विधि से लगभग 5-6 महीने में कम्पोस्ट तैयार हो जाएगा। इस कम्पोस्ट में पोषक तत्वों की मात्रा देहाती विधि की तुलना में अधिक पाई जाती है।

 

इनरिच्ड कम्पोस्ट बनाने की विधि

  1. उपरोक्त विधि के अनुसार या 1x1x1 मीटर गड्ढा खोदकर पुरे गड्ढे को उपलब्ध सामग्री से एक साथ भी भर दें तथा 60-70% नमी (पानी मिलाकर) बनाए रखें।
  2. 2.5 कि.ग्रा. नेत्रजन प्रति टन अवशिष्ट में यूरिया के रूप में तथा 1% स्फुर या प्रति क्विंटल 5 किलो की दर से मसूरी, पुरुलिया या उदयपुर रॉक फास्फेट के रूप में डालें।
  3. 15 दिनों के बाद प्रथम पलटाई करते समय फफूंद पेनिसिलियम, एसपरजीलस या ट्राईकुरस 500 ग्राम जैव भार (लाइव वेट) प्रति टन की दर से डालें। ये कल्चर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय से अग्रिम आदेश देकर प्राप्त किया जा सकता है। कृषि महाविद्यालय, पूणे में या पैकेट के रूप में उपलब्ध हैं। वहाँ से भी इसे मगंवाया जा सकता है। कल्चर के अभाव में किसान भाई 10% गोबर घोल का भी छिड़काव् कर सकते है।
  4. 30 दिनों के बाद फास्फोबेक्ट्रिन एवं एजोबैक्अर कल्चर पलटाई के समय डालें।
  5. अवशिष्ट की पलटाई 15, 30,45 दिनों के अंतर पर करें। साथ ही आवश्यकतानुसार नमी बनाए रखने के लिए पानी मिलाएं।
  6. 3-4 महीनें में खाद तैयार हो जाएगी।।

 

फास्को कम्पोस्ट बनाने की विधि

  1. सबसे पहले 2 मी. लंबा, 1 मी. चौड़ा, 1 मी. गहरा अथवा 1x1x1 आवश्यकतानुसार एक या अधिक गड्ढे बना लें। यह कच्चा या पक्का किसी भी तरह का हो सकता है।
  2. सामग्री: खरपतवार, कूड़ा-कचरा, फसलों के अवशेष, जलकुंभी, थेथर, पुटूस, करंज की पत्तियां या अन्य जंगली पौधों की पत्तियां एवं पुआल इत्यादि। इन सभी सामग्री को नीचे लिखें अनुपात में सूखे वजन के अनुसार प्रयोग करना चाहिए।
कार्बिनक कचरा गोबर मिट्टी कम्पोस्ट
8 1 0.5 0.5

उदाहरण के लिए 1 टन (1000 कि.गर.) कुल पदार्थ सूखे वजन के अनुसार) के लिए 800 कि.ग्रा. जैविक पदार्थ, 100 कि. ग्रा. सुखा गोबर, 50 कि.ग्रा.. उपजाऊ मिट्टी और 50 कि.ग्रा. कंपोस्ट का प्रयोग करना चाहिए।

  1. खाद बनाने के लिए उपलब्ध सामग्री से कई पर्त बनाकर एक साथ भरें तथा 800-100% नमी (पानी मिलाकर) बनाएं रखें।
  2. उपलब्ध सामग्री से भरे गए गड्ढे में 2.5 कि.ग्रा. रॉकफास्फेट या सिंगल सुपर फास्फेट डालें।
  3. गोबर, मिट्टी, कम्पोस्ट एवं रॉकफास्फेट तथा यूरिया को एक बड़े बर्तन या ड्रम में डालकर 80-100 लीटर पानी में घोल बनाएं। इस घोल को गड्ढे में 15-20 सेंटीमीटर मोटी अवशिष्ट भरने तक करें। जब तक उंचाई जमीन की सतह से 30 सेंटीमीटर ऊँची न हो जाए।
  4. उपरोक्त विधि से गड्ढे को भरकर ऊपर से बारीक मिट्टी की पतली परत (5 सेंटीमीटर मोटी) से गड्ढे को ढक दें तथा अंत में गोबर से लेप कर गड्ढे को बंद कर दें।
  5. अवशिष्ट (सामग्री) की पलटाई 15,30 तथा 45 दिनॉन के अन्तराल पर करें तथा उसमें आवश्यकतानुसार पानी डालकर नमी बनाए रखें।
  6. 3-4 महीने के बाद आप देखेंगे कि उत्तम कोटि की भुरभुरी खाद तैयार हो जाती है। इस खाद को सूखे वजन के अनुसार इसका प्रयोग फसलों की बोवाई के समय सुपर फास्फेट खाद के जगह पर कर सकते हैं।
  7. फास्फों कम्पोस्ट खाद में 3-7% तक कूल फास्फोरस होता है। यदि किसान 12.5 कि.ग्रा. रॉकफास्फेट डालकर फास्फो कम्पोस्ट  बनाते हैं तो सुखा 2.5 टन तथा गीला 0.5 टन तथा 25.9 कि.ग्रा. रॉकफास्फेट डालकर बनाया हुआ फास्फो कम्पोस्ट का सुखा 1.5 टन तथा गीला 3.5 टन प्रति हेक्टेयर के दर से प्रयोग करें, यह लगभग  60% (स्फुर) सिंगल सुपर फास्फेट के बराबर है। इसका प्रयोग सभी प्रकार के फसलों में किया जा सकता है।

 

ध्यान देने योग्य बातें

  1. गड्ढे ऐसे स्थान में बनावें जहाँ पानी लगने की संभावना नहीं हो। हो सके तो गड्ढे में सस्ती प्लास्टिक सीट बिछावें।
  2. गड्ढे छायादार स्थान में तथा पानी के श्रोत, जैसे तालाब या कुआँ के पास बनायें।
  3. गड्ढा भरते समय अनुशंसित मात्रा में पानी का उपयोग करना चाहिए ताकि नमी के आभाव में सड़ने की प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ें।
  4. विभिन्न प्रकार की सामग्री को, संभव हो तो छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर डालना चाहिए। ऐसा करने पर कम्पोस्ट जल्द तैयार होता है।
  5. तैयार खाद बदबू रहित, भुरभुरी एवं काला या गाढ़ा रंग लिए होती है।

 

उपयोग में सावधानियां

अच्छे परिणाम की प्राप्ति हेतु कम्पोस्ट का फसल लगाने के 15-30 दिन पूर्व ही मिट्टी में मिला देना चाहिए। इतने समय में इन पदार्थों में उपस्थित पौधों एक प्रयोजनीय पोषक तत्व दुर्लभ अवस्था में सुलभ अवस्था में परिणित हो जाते हैं। पुर्णतः सड़े हुए जीवांश का प्रयोग बोवाई के समय भी कर सकते है। कम्पोस्ट को मिट्टी में समान रूप से छींटकर मिला देना चाहिए।

प्रत्येक फसल लगाने के पहले जीवांश का उचित मात्रा (100-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) का प्रयोग करना चाहिए। इस मात्रा का निर्धारण मिट्टी जांच के आधार पर किया जाता है। मिट्टी जाँच के लिए किसान अपन निकट की मिट्टी जांच प्रयोगशाला में संपर्क कर सकते हैं। यदि उचित मात्रा में कम्पोस्ट उपलब्ध नहीं हो तो खाद का उतनी ही मात्रा जमीन में डालें जितनी के लिए वह मात्रा उचित है। शेष भूमि में इसका प्रयोग अगले वर्ष या अलगी फसल में करें।

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