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90 लाख हेक्टेयर से अधिक हुआ सरसों का रकबा

 

तिलहन के क्षेत्र में भारी बढ़ोतरी के मायने क्या हैं?

 

बीते साल जितना कुल तिलहनी फसलों का रकबा था, इस बार उससे 8 लाख हेक्टेयर से अधिक सिर्फ सरसों का बुवाई क्षेत्र है.

इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि किसानों ने इस बार किस स्तर पर सरसों की खेती की है.

 

सरसों के रकबे में इस बार भारी बढ़ोतरी देखी गई है. रबी सीजन 2021-22 में इस तिलहन का रकबा 90 लाख हेक्टेयर को पार कर गया है.

बीते साल जितना कुल तिलहनी फसलों का रकबा था, इस बार उससे 8 लाख हेक्टेयर से अधिक सिर्फ सरसों का बुवाई क्षेत्र है.

इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि किसानों ने इस बार किस स्तर पर सरसों की खेती की है.

खाद्य तेल के मामले में आयात पर निर्भर देश के लिए यह काफी राहत देने वाली खबर है.

 

शुक्रवार को कृषि मंत्रालय के फसल विभाग की तरफ से जारी हुए आंकड़ों से पता चलता है कि तिलहनी फसलों का रकबा इस बार बीते साल के समान अवधि के मुकाबले 18.85 लाख हेक्टेयर अधिक है.

फसल विभाग के मुताबिक, बीते साल 28 जनवरी तक कुल 83.19 लाख हेक्टेयर में तिलहन की खेती हुई है, जो इस बार बढ़कर 102.04 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है.

 

तिलहन में सिर्फ सरसों के रकबे में भारी बढ़ोतरी

तिलहनी फसलों में सबसे अधिक बढ़ोतरी सरसों के बुवाई क्षेत्र में हुई है.

सरसों का रकबा इस बार 91.44 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो पिछले साल 73.12 लाख हेक्टयेर क्षेत्र था.

सरसों छोड़कर अन्य तिलहनी फसलों में तिल को छोड़ दें तो बाकी सबमें मामूली वृद्धि दर्ज हुई है. वहीं तिल का रकबा नाम मात्र घटा है.

 

सरकार तिलहन और दलहन के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई स्तर पर काम कर रही है.

तमाम योजनाओं के माध्यम से इन फसलों की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है.

लेकिन जब हम आंकड़ों पर नजर डालते हैं तो तिलहन में सिर्फ सरसों का रकबा ही तेजी से बढ़ रहा है और दलहन में किसान चना की खेती पर जोर दे रहे हैं.

तो आखिर सरसों में ही ऐसा क्या है कि बुवाई क्षेत्र में बढ़ोतरी दर्ज हो रही है?

 

बीते साल MSP से अधिक रेट पर बिका सरसों

इस सवाल का जवाब सरसों की लाभकारी कीमत है. पिछले साल सरकार ने सरसों की एमएमसी 4650 रुपए प्रति क्विंटल तय की थी.

लेकिन पूरे साल यह न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक भाव पर बिका.

देश की कई मंडियों में सरसों का भाव 8000 रुपए प्रति क्विंटल से अधिक हो गया था.

बढ़ी हुई कीमतों का लाभ लेते हुए किसानों ने नई पैदावार आने के कुछ महीनों में अपना स्टॉक खाली कर दिया था.

बाद में मंडियों में आवक घट कर काफी कम रह गई.

 

इस बार 400 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ी है MSP

सरकार ने रबी सीजन 2025-26 के लिए जो सरसों के रकबे का लक्ष्य निर्धारित किया था, किसानों ने उसी इसी साल हासिल कर लिया है.

पिछले साल मिला अधिक भाव और इस बार समर्थन मूल्य में 400 की बढ़ोतरी ने किसानों को सरसों की खेती के लिए प्रेरित किया है.

रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं है, लेकिन सरसों से मिलने वाले लाभ और सरकार के समर्थन ने किसानों को इस फसल की तरफ जाने के लिए प्रोत्साहित किया है.

 

ब्लेडिंग पर रोक से बढ़ी मांग

सरसों के तेल में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं. इसको देखते हुए सरकार ने बीते साल से सरसों तेल में ब्लेंडिंग यानी मिश्रण पर रोक लगा दी.

इसका लाभ किसानों को भी मिल रहा है. ब्लेंडिंग पर रोक लगने से सरसों की मांग बढ़ गई है और किसानों को अच्छी कीमत मिल रही है.

अगर सरकार ब्लेंडिंग पर सख्ती जारी रखती है तो इसका लाभ किसानों को मिलता रहेगा.

 

सरसों के साथ ही अन्य तिलहनी फसलों की मांग बढ़ाने की जरूरत

सरकार के प्रयासों से सरसों के रकबे में बढ़ोतरी हुई है. इसका लाभ सरकार को आयात पर कम खर्च करके मिलेगा.

लेकिन सरसों के साथ ही अन्य तिलहनी फसलों की मांग बढ़ाने और बाजार तैयार करने की सरकार को व्यवस्था करनी चाहिए.

इससे न सिर्फ देश खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर बनेगा बल्कि किसानों की आमदनी में भी आशातीत बढ़ोतरी होगी.

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