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रतलाम में दर्जनभर गायों के शरीर पर गठानों-घाव से हड़कंप

Posted on August 7, 2022August 7, 2022

अब MP में लंपी वायरस की दहशत

जांच के लिए भेजे सैंपल

 

राजस्थान के बाद मध्यप्रदेश में भी लंपी वायरस की दहशत है। रतलाम में गायों में इसके लक्षण देखे गए हैं।

मामला सेमलिया और बरबोदना के आसपास के गांवों का है। यहां एक दर्जन से ज्यादा गायों में इसके लक्षण देखे गए हैं।

गायों के शरीर में छोटी-छोटी गठानें होकर घाव बन गए हैं। हालांकि पशु चिकित्सा विभाग ने पॉजिटिव केस की पुष्टि नहीं की है।

विभाग ने सैंपल जांच के लिए भेजे हैं। पशु चिकित्सा विभाग के अफसरों ने वायरस के लक्षण वाले पशुओं के सैंपल लेकर उन्हें घर भेज दिया है।

साथ ही इन पशुओं को आइसोलेट करने और इलाज करवाने की सलाह दी है।

 

क्या है लंपी रोग…?

पशु चिकित्सकों के मुताबिक इस रोग में जानवरों में बुखार आना, आंखों एवं नाक से स्राव, मुंह से लार निकलना, शरीर में गांठों जैसे नरम छाले पड़ना, दूध उत्पादन में कमी आना जैसे लक्षण दिखते हैं।

इसके अलावा इस रोग में शरीर पर गांठें बन जाती हैं। गर्दन और सिर के पास इस तरह के नोड्यूल ज्यादा दिखाई देते हैं।

बीमारी का पशुओं से मनुष्यों में ट्रांसफर होने की संभावना न के बराबर है।

 

खतरनाक…क्योंकि 7 दिन तक पता नहीं चलता

लंपी वायरस का तेज रफ्तार से फैलने का सबसे बड़ा कारण ये है कि पशु इंफेक्टेड भी हो जाए तो भी 7 दिन तक इसका पता नहीं चलता।

पता चलता है तब तक इंफेक्टेड पशु के संपर्क में आने से दूसरे पशु संक्रमित हो सकते हैं।

एक्सपट्‌र्स का कहना है कि लंपी का कारण कैप्रिपॉक्स वायरस है।

कोई भी पशु इस वायरस से इंफेक्ट होता है तो 7 दिन बाद धीरे-धीरे शरीर कमजोर पड़ने लगता है।

पशु खाना पीना छोड़ देता है। वायरस सबसे पहले स्किन, फिर ब्लड और अंत में दूध पर असर डालता है।

 

मक्खी-मच्छरों के कारण एक से दूसरे पशु में फैल रहा

वायरस फैलने का बड़ा कारण मक्खियां व मच्छर हैं। इन्हीं के कारण लंपी बीमारी एक से दूसरे पशु में फैल रही है।

क्योंकि जब किसी पशु में वायरस फैल जाता है तो पहले उसकी स्किन पर नर्म गांठे बन जाती है। पूरे शरीर पर गांठें हो जाती हैं।

ये गांठें धीरे-धीरे फूटने लगती हैं। इनसे सफेद पानी रिसने लगता है। फिर इन्हीं घावों पर मक्खी और मच्छर बैठने लगते हैं।

ये मक्खी-मच्छर दूसरे पशु पर भी बैठते हैं और वो भी इंफेक्ट हो जाता है।

 

पशुपालक यह रखें सावधानी

पशु चिकित्सा विभाग के उपसंचालक डॉक्टर एम के शर्मा ने बताया कि पहले पशुपालक अपने स्वास्थ्य पशुओं को अन्य पशुओं के संपर्क में आने से बचा कर रखें।

गांव के सार्वजनिक चारागाह, तालाब, नदी-नाले पर पशुओं को चराने या पानी पिलाने नहीं ले जाएं।

पशुओं के शरीर पर बीमारी के लक्षण पाए जाने पर पशु को अन्य पशुओं से अलग बांध कर उसके चारे और पानी की व्यवस्था करें।

पशु चिकित्सक से उपचार करवाएं। पशु को समय रहते इलाज मिलने पर दो से तीन हफ्तों में पशु स्वस्थ हो जाता है।

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