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गेहूं की फसल को बर्बाद कर देते हैं जड़ माहू और पत्ती माहू

 

ये हैं बचाव के सही तरीके

 

किसान गेहूं की बुवाई की तैयारी कर रहे हैं.

रबी सीजन की से फसल किसानों को हमेशा बढ़िया मुनाफा देती है लेकिन कई बार इसमें लगने वाले कीट और रोग इसे नुकसान का सौदा बना देते हैं.

इस खबर में हम ऐसे दो खतरनाक कीट और उनके बचाव के बारे में जानेंगे.

 

गेहूं की फसल के लिए वैसे तो कई कीट और रोग घातक हैं, लेकिन जड़ माहू और पत्ती माहू कीट बहुत नुकसान पहुंचाते हैं.

किसान इन कीटों की पहचान नहीं कर पाते, और जब तक पहचान पाते हैं, तब तक बहुत नुकसान हो चुका होता है.

ऐसे में इस खबर में हम इन दो खतरनाक कीटों की पहचान और उससे बचाव के तरीकों के बारे में जानेंगे.

 

गेहूं की फसल के लिए वैसे तो कई कीट और रोग घातक हैं, लेकिन जड़ माहू और पत्ती माहू कीट बहुत नुकसान पहुंचाते हैं.

किसान इन कीटों की पहचान नहीं कर पाते, और जब तक पहचान पाते हैं, तब तक बहुत नुकसान हो चुका होता है.

ऐसे में इस खबर में हम इन दो खतरनाक कीटों की पहचान और उससे बचाव के तरीकों के बारे में जानेंगे.

 

जड़ का माहू

जड़ माहू हल्के हरे रंग का होता है. यह कीट गेहूं, जौ और जई इत्यादि फसलों के भूमिगत तने एवं जड़ों को खाकर नुकसान पहुंचाता है.

जड़ माहूं कॉलोनी के रूप में रहकर जड़ों से रस चूसते हैं.

प्रभावित पौधों की पत्तियां सूखने लगती है और ऐसे पौधों को उखाड़कर देखने पर रूट एफिड की कॉलोनी जड़ों में आसानी से देखी जा सकती है.

प्रभावित पौधों के आस-पास चीटियाँ सक्रिय हो जाती हैं जो मीठे चिपचिपे पदार्थों को खाती हैं और रूट एफिड को स्वस्थ पौधों में फैलाने का कार्य करती हैं.

अधिक तापमान और जीरो टिलेज तकनीक इस कीट की सक्रियता को और बढ़ाती है.

इस कीट के द्वारा फसलों में 15-20 % प्रतिशत तक नुकसान देखा गया है.

विस्तार: जड़ का माहू का प्रकोप विशेषकर मध्य क्षेत्र में अधिक पाया जाता है. इसके अतिरिक्त यह भारत के उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र एवं उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में देखा गया है.

कीट प्रबंधन:

 1. बुवाई से पहले बीज का उपचार इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 1.5 ग्राम बीज की दर से करना प्रभावी पाया गया है.

2. कीट के प्रभावी नियन्त्रण के लिए बुवाई के 21 दिन बाद नीम तेल 3 किग्रा० प्रति हक्टेयर सिंचाई के साथ प्रयोग करें.

पत्ती माहू

लक्षण: इस कीट का शरीर कोमल एवं पीले हल्के हरे रंग का होता है जिसकी पीठ पर गहरे हरे रंग की पट्टी होती है.

इस कीट के शिशु एवं प्रोढ़ (व्यस्क),पोधों की पतियों और बालियों से रस चूसते हैं.

क्षति अक्सर पीले रंग की विकृतियों के रूप में दिखाई देती है, आमतौर पर पत्तियों के नीचे की ओर से शुरू होती है.

माहू प्रतिवर्ष 10-15 से अधिक पीढ़ियों को पूरा करता है. माहू के प्रोढ़, ‘हनी डीऊ’ नामक एक मिट्ठे पदार्थ को बहार निकालता है जिससे जिससे पत्तियां पर काले चिपचिपे धब्बे या निशान पड़ जाते हैं.

इसके कारण अन्य सूक्ष्मजीवों जैसे “सूटी मोल्ड” का विकास पत्तों  पर उत्पन्न हो जाता है जों अक्सर पत्ते पर काले धुंधला पदार्थ के रूप में दिखाई देता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण दक्षता कम हो जाती है.

इस कीट का प्रकोप गेहूं, जौ और जेई, इत्यादि फसलो में ठंडे एवं बदली वाले मौसम में ज्यादा होता है जिससे फसल का उत्पादन और गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती है.

गेहूं का पत्ती माहूं  के कारण लगभग 3-21% का नुकसान उपज को हो सकता है.

विस्तार: पत्ती माहू देश में लगभग सभी गेहूं उगाने वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रो में जैसे की पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि में पाया जाता है और  प्रायद्वीपीय भारत में पत्ती माहूं मौजूद है.

प्रबन्धन

1. कीटों की सतत निगरानी के लिए खेत में जगह-जगह पीले चिप-चिपे ट्रैप (4-5) प्रति एकड़ लगाना चाहिए.

2. माहूं के प्राकृतिक शत्रु कीट परजीवी/परभक्षी जैसे-सर्फिड फ्लाई, लेसविंग, लेडी बर्ड बीटल इत्यादि का संरक्षण करें.

3. जब कीट की संख्या आर्थिक क्षतिस्तर (ई.टी.एल.-10-15 माहूं/शूट) को पार कर जाये तब क्यूनालफोस 25% ई.सी.नामक दवाकी 400 मि.ली. मात्रा 500-1000 लीटर पानीप्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

4. फसल अवशेषों  एवं खरपतवारो को नष्ट करें.

5. नाइट्रोजन उर्वरक को सही मात्रा एवं समय पर विभाजित करके दें.

6. खेत के चारों ओर मक्का/ज्वार/बाजरा की चार-चार पंक्तियां रक्षक फसल के रूप में लगाना चाहिए.

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