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बांस के चारकोल निर्यात से बढ़ेगी देश के किसानों की आमदनी

 

बांस के चारकोल का निर्यात

 

भारत में बांस की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है, साथ ही इसका उत्पादन बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा “राष्ट्रीय बांस मिशन योजना” चलाई जा रही है।

बांस का उपयोग फर्नीचर, अगरबत्ती तथा छड़ी बनाने में किया जाता है|

भारत में बांस का उपयोग अधिकांशतः अगरबत्ती के निर्माण में किया जाता है, जिसमें अधिकतम 16 प्रतिशत अर्थात बांस के ऊपरी परतों का उपयोग बांस की छड़ियों के निर्माण के लिए किया जाता है, जबकि शेष 84 प्रतिशत बांस पूरी तरह से बेकार हो जाता है|

जिसके परिणामस्वरूप गोल बांस की छड़ियों के लिए बांस इनपुट लागत 25,000 रूपये से 40,000 रूपये प्रति मीट्रिक टन के बीच आती है।

 

क्या देश में बांस लागत

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के अध्यक्ष श्री सक्सेना ने कहा कि अगरबत्ती और बांस शिल्प उद्योगों में उत्पन्न बांस अपशिष्ट का व्यावसायिक उपयोग नहीं किया जा रहा है।

जिसके कारण गोल बांस की छड़ियों के लिए बांस इनपुट लागत 25,000 रुपये से 40,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन के बीचब आती है।

जबकि बांस की औसत लागत 4,000 रुपये से 5,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन के बीच में है।

इसकी तुलना में, चीन में बांस की कीमत 8,000 रुपये से 10,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन है, लेकिन 100 प्रतिशत अपशिष्ट उपयोग के कारण उनकी इनपुट लागत 12,000 रुपये से 15,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन है।

 

बांस के निर्यात से रोक हटाए सरकार 

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के अध्यक्ष श्री सक्सेना ने कहा कि बांस का कोयला बनाकर बांस के अपशिष्ट का सबसे अच्छा उपयोग किया जा सकता है, यद्यपि घरेलू बाजार में इसका सिमित उपयोग है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी अत्यधिक मांग है।

लेकिन भारत सरकार बांस की निर्यात मनाही रहने के कारण अवसर का लाभ नहीं उठा पा रहा है|

केवीआईसी ने सरकार से बांस की कोयला बनाकर निर्यात पर रोक को हटाने की मांग की है।

इससे देश को एक बाजार मिलेगा तथा बांस के किसानों को अधिक लाभ मिल सकता है, साथ ही बांस उद्योगों को भी काफ़ी लाभ मिलेगा।

 

अंतराष्ट्रीय बाज़ार में बढ़ रही है माँग

बांस चारकोल की विश्व आयात मांग 1.5 से 2 मिलियन अमरीकी डालर के दायरे में है और हाल के वर्षों में 6 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है|

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बारबेक्यू के लिए बांस का कोयला लगभग 21,000 रूपये से 25,000 रूपये प्रति टन के हिसाब से बिकता है|

इसके अतिरिक्त, इसका उपयोग मिट्टी के पोषण के लिए और सक्रिय चारकोल के निर्माण के लिए कच्चे माल के रूप में भी किया जाता है।

जिससे कई देशों में इसके आयात पर शुल्क बहुत कम है।

 

पूर्व में बांस आधारित उद्योगों, विशेष रूप से अगरबत्ती उद्योग में अधिक रोजगार सृजन करने के लिए केवीआईसी ने 2019 में, कच्ची अगरबत्ती के आयात किए जाने वाले गोल बांस की छड़ियों पर आयात शुल्क में नीतिगत बदलाव से अनुरोध किया था।

इसके बाद सितम्बर 2019 में वाणिज्य मंत्रालय ने कच्ची अगरबत्ती के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया और जून 2020 में वित्त मंत्रालय ने गोल बांस की छड़ियों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया |

 

यह उल्लेख करना उचित है कि एचएस कोड 141100 के तहत बांस उत्पादों के लिए निर्यात नीति में एक संशोधन 2017 में किया गया था, जिसमें सभी बांस उत्पादों के निर्यात को ओजीएल श्रेणी में रखा गया था और ये निर्यात के लिए “मुक्त” थे।

हालांकि, बैम्बू चारकोल, बैम्बू पल्प और अनप्रोसेस्ड शूट्स के निर्यात को अभी भी प्रतिबंधित श्रेणी में रखा गया है।

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