बुरहानपुर में किसानों ने खेतों में रसायन डालना छोड़ा, सीख रहे प्राकृतिक खेती के गुर
रासायनिक खेती से खेतों और फसलों को नुकसान समझने के बाद किसानों ने प्राकृतिक खेती की ओर तेजी से कदम बढ़ाना आरंभ कर दिया है।
अब प्राकृतिक खेती को अपनाकर कई किसान पहले के मुकाबले ज्यादा मुनाफा कमाने लगे हैं।
बुरहानपुर के किसान भी प्राकृतिक खेती को अपना चुके हैं और अब तो सफल किसान अन्य किसानों को प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।
इन किसानों में से तीन को मास्टर ट्रेनर बना दिया गया है, जो जिले में २५४० एकड़ खेती में प्राकृतिक खेती के गुर सिखाकर चने की खेती करवाएंगे।
दरअसल कृषि विज्ञान केंद्र ने देशभर में 721 केंद्रों में से 425 जिले ऐसे चुने, जहां प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना है। इसमें बुरहानपुर भी चिह्नित है।
150 किसान प्राकृतिक खेती को पूरी तरह से अपना चुके हैं, जो 4 से 8 साल से खेती कर रहे हैं, उन्हें मास्टर ट्रेनर की जिमेदारी दी है।
2500 एकड़ खेती के अलावा 40 कृषि सखी भी जोड़ी यानी महिला किसान भी ये गुर जानेंगी। कुल 2540 एकड़ में ये खेती होगी।
मास्टर ट्रेनर किसान तकनीकी सपोर्ट करेंगे। बाकी कृषि विज्ञान केंद्रके वैज्ञानिक व आत्मा विभाग मिलकर प्राकृतिक खेती पर पूरी तरह काम करेगा।
ये मास्टर ट्रेनर चयनित
- शाहपुर के सोपान महाजन ये चार साल से सब्जी, तुअर की खेती कर रहे हैं।
- तुकईथड़ से तुलसीराम झामरे ये प्राकृतिक रूप से गेहूं और चने की खेती पिछले सात साल से कर रहे हैं।
- बसाड़ के किसान नाना दगडु पाटिल जो प्राकृतिक रूप से केला, चना और सोयाबीन सहित तुअर की खेती करते हैं। ये पिछले आठ साल से खेती कर रहे हैं।
तुलनात्मक अध्ययन कर बताएंगे महत्व
चने की फसल पर रासायनिक, जैविक व प्राकृतिक खेती के तरीकों के परिणामों का वैज्ञानिक तुलनात्मक अध्ययन करना है।
इससे यह पता लगाने में मदद मिलेगी कि किस विधि से किसानों को अच्छी पैदावार के साथ पर्यावरणीय लाभ और लागत में कमी जैसे फायदे मिल सकते हैं।
इस शोध के नतीजे प्रदेश के किसानों के लिए एक नई राह दिखाने वाले साबित हो सकते हैं। इन तीनों की विधि से किसान समझ सकेंगे की फायदेमंद खेती कौन सी है।
ये प्रयोग किए जाएंगे
बीजामृत: बीजोपचार के लिए प्रयोग होने वाला मिश्रण बीज को बीमारियों से बचाता, अंकुरण बेहतर करता है।
घनजीवामृत: जैविक खाद बुवाई के समय खेत में दी जाती है, जो मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि बढ़ाती है।
जीवामृत: यह तरल है, जो मिट्टी में लाभकारी सूक्ष्मजीवों व केंचुओं की संया बढ़ाता है।
फसल अवशेष पलवार: खेत में नमी बनाए रखने, खरपतवार नियंत्रण और जैविक पदार्थ बढ़ाने के लिए फसल के अवशेषों का इस्तेमाल।
वापसा: मिट्टी में हवा व पानी का सही संतुलन बनाए रखा जाता है, ताकि जड़ों का बेहतर विकास हो सके।
कहते हैं कृषि वैज्ञानिक: डॉ. अमोल देशमुख ने बताया, यह प्रयोग चना की आरवीजी-204 किस्म पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तकनीकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान जबलपुर क्षेत्र 9 के मार्गदर्शन में किया जा रहा है।
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