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अगले 30 साल में कृषि के लिए 29 फीसदी बढ़ जाएगी पानी की मांग

 

बढ़ जाएगी पानी की मांग

 

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि उत्सर्जन में वृद्धि तीव्र गति से होती रही तो 2050 तक देश में करीब 1.8 करोड़ लोग नदियों में आने वाली बाढ़ की जद में होंगे, जोकि वर्तमान की तुलना में करीब 15 गुना ज्यादा है.

 

जी-20 देशों पर जारी एक अंतरराष्ट्रीय जलवायु रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि कार्बन उत्सर्जन तेजी से बढ़ता रहा तो सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो सकती है.

यदि ऐसा होता है तो 2050 तक कृषि के लिए पानी की मांग करीब 29 फीसदी बढ़ जाएगी.

यानी अगले 30 साल में ही भारतीय कृषि के सामने बड़ा संकट आने वाला है.

वहीं 2036 से 2065 के बीच कृषि संबंधित सूखा 48 फीसदी बढ़ जाएगा. वहीं 2 डिग्री सेल्सियस वृद्धि के परिदृश्य में यह समान समयावधि में 20 फीसदी तक गिर जाएगा.

 

इसी तरह कम उत्सर्जन परिदृश्य में 2050 तक पकड़ी जाने वाली मछलियों में 8.8 फीसदी की गिरावट आ सकती है.

ताममान में इतनी वृद्धि के चलते 2036 से 2065 के बीच भारत में लू का कहर कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा.

अनुमान है कि इसके सामान्य से 25 गुना अधिक समय तक रहने की आशंका है.

इस रिपोर्ट को 30 से 31 अक्टूबर के बीच रोम में होने वाले जी20 शिखर सम्मेलन से पहले लॉन्च किया गया है.

 

अमीर अर्थव्यवस्थाओं पर गंभीर असर

रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी गई है कि अगले 30 वर्षों के भीतर जलवायु परिवर्तन दुनिया की सबसे अमीर अर्थव्यवस्थाओं पर गंभीर असर डालेगा.

यदि ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन को रोकने के लिए अभी तत्काल कार्रवाई न की गई तो लू, सूखा, समुद्र के बढ़ते जल स्तर, खाद्य आपूर्ति में आती कमी और पर्यटन पर बढ़ते खतरे से कोई भी देश नहीं बच पाएगा.

ऐसे में रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने के लिए जी20 देशों को अपने उत्सर्जन में तेजी से कटौती करने की जरूरत है, जोकि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 80 फीसदी है.

 

जी20 एक अंतर-सरकारी मंच है, जिसमें 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं.

यह संगठन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय स्थिरता, जलवायु परिवर्तन को रोकथाम और सतत विकास से जुड़े आर्थिक मुद्दों को संबोधित करने के लिए काम करता है.

 

यह रिपोर्ट यूरो-मेडिटेरेनियन सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज से जुड़े 40 से अधिक वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा तैयार की गई है.

यह शोध केंद्र इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के इतालवी केंद्र बिंदु के रूप में कार्य करता है.

इस रिपोर्ट के अनुसार भविष्य में जलवायु परिवर्तन का जी20 के प्रत्येक सदस्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा.

 

जलवायु परिवर्तन की मार से सुरक्षित नहीं कोई भी देश

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि जलवायु में आ रहा बदलाव पहले ही जी 20 देशों को प्रभावित कर रहा है.

पिछले 20 वर्षों के दौरान सभी जी 20 देशों में गर्मी से सम्बंधित मौतों में कम से कम 15 फीसदी की वृद्धि हुई है.

जबकि जंगल में लगने वाली आग ने कनाडा से करीब डेढ़ गुना ज्यादा क्षेत्र को नष्ट कर दिया है.

 

रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि समुद्र के बढ़ते जल स्तर से लेकर साफ पानी की घटती उपलब्धता और डेंगू के कहर से लेकर भीषण गर्मी के कारण होने वाली मौतों तक जीवन का कोई ऐसा कोई पहलू नहीं होगा जो जी20 देशों में जलवायु परिवर्तन से अछूता रह जाएगा.

 

भारत पर पड़ेगा सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव

इस बारे में जलवायु वैज्ञानिक और आईपीसीसी की नवीनतम रिपोर्ट के प्रमुख लेखकों में से एक अंजल प्रकाश ने जानकारी देता हुए बताया कि भारत में कई जलवायु हॉटस्पॉट हैं.

इस बारे में जलवायु वैज्ञानिक और आईपीसीसी की नवीनतम रिपोर्ट के प्रमुख लेखकों में से एक अंजल प्रकाश ने जानकारी देता हुए बताया कि भारत में कई जलवायु हॉटस्पॉट हैं.

 

यह 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा से लेकर उत्तर और पूर्वी भारत के कई राज्यों में हिमालय तक फैले हैं.

वहीं लगभग 54 फीसदी शुष्क क्षेत्र में लू की सम्भावना है.

उनके अनुसार इस मामले में भारत बेहद असुरक्षित है और यदि तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती तो स्थिति जल्द खराब हो सकती है.

 

बाढ़ की जद में होंगे 1.8 करोड़ लोग

यदि उत्सर्जन में वृद्धि तीव्र गति से होती रही तो 2050 तक देश में करीब 1.8 करोड़ लोग नदियों में आने वाली बाढ़ की जद में होंगे, जोकि वर्तमान की तुलना में करीब 15 गुना ज्यादा है.

गौरतलब है कि वर्तमान में करीब 13 लाख लोगों पर इस तरह की बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि देश में जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए प्रयास न किए गए तो हाल के दशकों में विकास को लेकर जो काम किए गए हैं यह उसे गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है.

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