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क्या है मध्य प्रदेश का काला सोना? जिस पर अब सफेद फूलों की बहार आ गई है

 

मध्य प्रदेश का काला सोना

 

मौसम को देखते हुए इस साल किसानों को अफीम फसल से खासी उम्मीद है.

जिले में इस बार करीब 13780 किसानों को पट्टे बांटे गए हैं.

 

मन्दसौर जिले की पहचान काले सोना यानी अफीम फसल पर सफेद फूल आने लगे हैं.

जिले की आर्थिक व सामाजिक स्थिति को प्रभावित करने वाली करीब 120 दिन की फसल अपने 100 दिन पूरे कर चुकी है.

फसल पर फूल के साथ साथ डोडे भी आने लगे हैं. अगले 20 दिनों के भीतर किसान डोडे पर चीरा लगाने की प्रक्रिया शुरू करेंगे.

मौसम को देखते हुए इस साल किसानों को फसल से खासी उम्मीद है. जिले में इस बार करीब 13780 किसानों को पट्टे बांटे गए हैं.

इसमें प्रथम खंड में 4412, द्वितीय खंड में 4712 व तृतीय खंड में 3451 किसानों को पट्टे दिए गए हैं.

इस साल सरकार ने 2 हजार किसानों को सीपीएस पद्धति से पट्टों का भी वितरण किया है.

फसलों को बचाने के लिए किसान विभिन्न प्रकार के जतन भी कर रहे हैं. किसान फसलों को तोतों व नील गाय से बचाने के प्रयास करते हैं.

पिछले सालों में बढ़ती डोडे चोरी की घटना को देखते हुए आगामी दिनों में किसान खुद खेतों की रखवाली में व्यस्त होंगे.

 

आपको बता दें कि भारत में अफीम की खेती सरकार से लाइसेंस लेकर की जाती है. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि पहले खेत की इंच-इंच जमीन की नपाई होती है.

सरकार इसके लिए मात्रा तय करती है. अगर फसल बर्बाद हो जाए तो किसान को वो मात्रा पूरी नहीं करनी होती.

इसके  अलावा द्रव्य पदार्थ अधिनियम, 1985 के तहत तमाम प्रावधानों का भी पालन करना होता है.

 

किसी भी किसान को तब तक लाइसेंस मंजूर नहीं किया जाएगा जब तक वह निम्नलिखित शर्तों को पूरा न करता हो.

उसने फसल वर्ष 2020-21 के दौरान पोस्त की खेती के लिए लाइसेंसशुदा वास्तविक क्षेत्र से 5 फीसदी क्षम्य क्षेत्र से अधिक क्षेत्र में खेती न की हो.

 

उसने कभी भी अफीम पोस्त की अवैध खेती न की हो.

नारकोटिक औषधि तथा मनःप्रभावी द्रव्य पदार्थ अधिनियम, 1985 और उसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के अंतर्गत उस पर किसी अपराध के लिए किसी सक्षम न्यायालय में आरोप नहीं सिद्ध किया गया हो.

 

भारत में कहां कहां होती है अफीम की खेती

पिछले 10 साल में सबसे ज्यादा खेती की बात करें 2016-17 में 8712 हेक्टेयर और 2015-16 में सबसे कम 557 हेक्टेयर ही रकबा था.

हालांकि पिछले 10 वर्षों में अपेक्षाकृत यूपी का रकबा बढ़ा है.

 

वहीं अगर पूरे देश में अफीम के उत्पादन की बात करें तो सरकार के जवाब के मुताबिक साल 2016-17 में 560 टन रही जबकि 2017-18 में 280, 2018-19 में 405, 2019-20 में 287 और 2020-21 के अनंतिम आंकड़ों के मुताबिक 315 टन हुआ.

 

सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2012-13 में मध्य प्रदेश में 3084 हेक्टेयर में, राजस्थान में 2529 हेक्टेयर और उत्तर प्रदेश में 6 हेक्टेयर में अफीम की खेती हुई थी.

 

साल 2015-16 के दौरान मध्य प्रदेश में 76 हेक्टेयर, राजस्थान में 477 और उत्तर प्रदेश में 4 हेक्टेयर में अफीम की खेती हुई थी.

 

साल 2021-22 के अनुमानित अनुमान की बात करें तो मध्य प्रदेश में 2850, राजस्थान 3142 और उत्तर प्रदेश में 201 हेक्टेयर में अफीम की खेती हुई है.

 

अफीम की खेती के बारे में जानिए

वे किसान जिन्होंने फसल वर्ष 2020-21 के दौरान अफीम पोस्त की खेती की थी और उनके मार्फीन की औसत उपज 4.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से कम नहीं थी.

 

किसान जिनकी लाइसेंस मंजूर न करने के खिलाफ अपील को फसल वर्ष 2020-21 में निपटान की अंतिम तारीख के बाद अनुमति दे दी गई हो.

किसान जिन्होंने फसल वर्ष 2020-21 अथवा किसी अगले वर्ष में पोस्त की खेती की हो और जो अनुवर्ती वर्ष में लाइसेंस के लिए पात्र थे, किन्तु किसी कारणवश स्वेच्छा से लाइसेंस प्राप्त न किया हो अथवा, जिन्होंने अनुवर्ती फसल वर्ष में लाइसेंस प्राप्त करने के बाद किसी कारणवश अफीम पोस्त की खेती वास्तव में न की हो.

 

किसान जिनको कि किसी दिवंगत पात्र किसान ने फसल वर्ष 2020-21 के लिए कॉलम 11 में नामित किया हो.ऐसे किसान जिन्होंने फसल वर्ष 2018-19 , 2019-20 और 2020-21 के दौरान खेती किए गए कुल क्षेत्रों का 50 फीसदी से अधिक मात्रा में जुताई कर दी वे फसल वर्ष 2021-22 के लिए अफीम पोस्त की खेती के लाइसेंस प्राप्त करने के पात्र नहीं होंगे.

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