परंपरागत खेती में नहीं दिखा फायदा तो उगाने लगे संतरा और पपीता

मंडी नहीं जाते फल बेचने, खेत से ही ले जाते हैं व्यापारी

हरदा जिले के किसान पारंपरिक खेती के घाटे से बचने बागवानी की तरफ रूख कर रहे हैं। परिणाम भी अच्छे मिल रहे हैं।

इस बदलाव से न केवल वे फल बेचकर मुनाफा कमा रहे हैं, बल्कि रासायनिक खाद के उपयोग से बचाव कर जमीन को भी सेहतमंद कर रहे हैं।

हंडिया के किसान रूपनारायण तिवारी दशकों से परंपरागत खेती कर रहे थे। इससे उन्हेें कोई खास फायदा नहीं हो रहा था।

ऐसे में बदलाव का निर्णय लिया। नर्मदा किनारे स्थित मालपोन गांव में आठ एकड़ जमीन पर बागवानी के रूप में फलों की खेती शुरू की।

तिवारी बताते हैं कि उन्होंने 25 साल पहले खेत में पपीता लगाया। इससे शुरुआती दौर में फायदा तो हुआ, लेकिन धीरे-धीरे पपीते के पौधे वायरस की चपेट में आ गए।

आठ साल पहले छह एकड़ में संतरे केपौधे लगाए। शेष दो एकड़ में पपीते के पौधे लगाए।

 

प्रत्येक दो साल में नए पौधे लगाते हैं

रूपनारायण ने बताया कि अभी छह एकड़ में संतरे के लगभग 800 पेड़ लगे हैं। दो एकड़ में पपीते के 2400 पेड़ हैं। हर दो साल के अंतराल में पपीता तोड़कर नए पौधे लगाते हैं।

पपीतों से सालाना तीन लाख रुपए प्रति एकड़ के मान से आय हो रही है। इसी तरह संतरे से करीब दो लाख रुपए सालाना शुद्ध बचत हो जाती है।

किसान की मानें तो उन्हें फल बेचने कभी भी किराया-भाड़ा लगाकर मंडियों में नहीं जाना पड़ता। लोग यहीं से ले जाते हैं। इससे उनका परिवहन का खर्च भी बचता है।

अब कई बड़े व्यापारी उनके संपर्क में हैं, जोखुद आकर फल ले जाते हैं।

किसानों की शिकायतों, सुझावों और अन्य मदद के लिए एक पोर्टल बनाने के दिए निर्देश