पिछले दो साल में गेहूं की फसल पर मौसम की मार पड़ी है. वहीं, इस साल को अल नीनो प्रभावित के तौर पर घोषित किया है.
विशेषज्ञों के मुताबिक, फरवरी के बाद अल नीनो का असर और तेज हुआ है.
यह भी एक वजह होगा कि पिछले साल की तुलना में 4 से 5 फीसदी तक कम रह सकता है.
इसका असर गेहूं के बफर स्टॉक पर भी पड़ सकता है.
गेहूं की उपज
देशभर के अधिकतर राज्यों में गेहूं की बुवाई शुरू हो चुकी है.
जिन राज्यों में बुवाई पिछड़ी हुई है, वहां भी जल्द ही इसे पूरा करने की कोशिश की जा रही है.
गेहूं के उत्पादन के मामले में भारत शीर्ष पर है. कई देशों में भारत की तरफ से गेहूं निर्यात किया जाता है.
हालांकि, पिछले कुछ साल से गेहूं की उपज जिस तरह की रही है, वह भारत के लिए चिंता का विषय है.
पिछले दो साल से घटी गेहूं की उपज
किसान तक के मुताबिक पिछले दो साल में गेहूं की फसल पर मौसम की मार पड़ी है.
साल 2023 के मार्च महीने में तापमान जून-जुलाई के बराबर पहुंच गया था.
अचानक तापमान बढ़ने से गेहूं की फसल को ग्रोथ करने का मौका नहीं मिला. फसल समय से पहले पक गई.
इससे गेहूं का उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित हुआ था.
वहीं, साल 2022 के सीजन में जब गेहूं पकने का समय आया तो बेमौसम बारिश की स्थिति का सामना करना पड़ा.
इससे गेहूं के दानों पर काफी असर पड़ा और उसकी उपज प्रभावित हुई.
गेहूं के स्टॉक में आ सकती है कमी
केंद्र सरकार के मुताबिक, नवंबर महीने में गेहूं का बफर स्टाॅक 210 लाख मीट्रिक टन है.
कम होते स्टॉक के चलते गेहूं की कीमतों में भी इजाफा हो रहा है. हालांकि, सरकार कीमत नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है.
सरकार की तरफ से गेहूं को ओपन मार्केट सेल के तहत उपलब्ध कराया जा रहा है.
इसके लिए बफर स्टाॅक का प्रयोग किया जाना है. ऐसे में गेहूं का बपर स्टाॅक और कम हो सकता है, जो चिंता का विषय है.
चुनावी वादे भी गले की बन सकते हैं फांस
कई राज्य में राजनीतिक पार्टियों ने फ्री गेहूं और चावल देने की घोषणा की है.
इस तरह के फैसले से भी गेहूं का बफर स्टाॅक प्रभावित होगा.
इसके चलते देश को गेहूं संकट का सामना करना पड़ सकता है और गेहूं इंपोर्ट की जरूरत पड़ सकती है.
अल नीनो संकट का पड़ेगा असर
गेहूं की फसल पर सूखा भारी पड़ सकता है. असल में अक्टूबर में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई थी.
वहीं, नवंबर में भी बारिश रूठी रही है. जबकि तापमान गर्म रहा है. इस वजह से गेहूं की बुवाई प्रभावित हुई है.
दिसंबर के पहले सप्ताह में पिछले साल की तुलना की जाए तो 4 फीसदी तक रकबा कम हुआ है.
इस साल को अल नीनो के साल के तौर पर घोषित किया है.
विशेषज्ञों के मुताबिक, फरवरी के बाद अल नीनो का असर और तेज होगा.
यह भी एक वजह होगा कि पिछले साल की तुलना में 4 से 5 फीसदी तक कम रह सकता है.
सरकार को पहले से है गेहूं संकट का अंदेशा?
सरकार ने पहले गेहूं, आटा और अब गैर बासमती चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लगाया था.
इसका मतलब ही है कि सरकार खाद्यान को लेकर कंफर्टेबल जोन में नहीं दिख रही है.
चुनावी साल को देखते हुए सरकार या तो इनकी कीमतों पर काबू पाना चाहती है या फिर उसे खाद्यान संकट के दस्तक देने का अंदेशा है.
ऐसे में अगर किन्हीं वजह से गेहूं के बफर स्टॉक में कमी आती है तो भारत को बाहर से गेहूं को आयात कराना पड़ सकता है.
इससे पहले भी बाहर से आयात कराना पड़ा था गेहूं
इससे पहले 2016 में स्टॉक बहुत कम था इसलिए रूस-यूक्रेन और ऑस्ट्रेलिया से भारत को 5.75 मिलियन टन गेहूं का आयात करना पड़ा था.
तब इंपोर्ट ड्यूटी 25 फीसदी से घटाकर शून्य कर दी गई थी.
फिलहाल, इंपोर्ट ड्यूटी 40 फीसदी है. अब सारा दारोमदार मॉनसून पर है.