हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें

आठ साल में गन्ने की FRP में 31 फीसदी की बढ़ोतरी

5 साल में चीनी निर्यात 15 गुना बढ़ा

 

केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार बीते 8 सालों में गन्ने ने नई ईबारत लिखी है.

जिसका फायदा किसान से लेकन चीनी मिल और सरकार को भी हुआ है.

आंकड़ों के अनुसार 8 सालों में गन्ने के FRP पर 31 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

तो वहीं चीनी का निर्यात भी रिकार्ड स्तर पर पहुंचने जा रहा है.

 

देश में पैदा होने वाला गन्ना तरक्की की नई ईबारत लिख रहा है.

गन्ने की इस कहानी के मुख्य पात्र किसान से लेकर चीनी मिल, व्यापारी और कई देशों की सरकारें हैं.

जिन्हें सीधे तौर पर देश में पैदा होने वाला मुख्य रूप से प्रभावित कर रहा है.

कुल मिलाकर देश में पैदा होने वाला गन्ना सभी के लिए फायेदमंद साबित हो रहा है.

इस संबंध में केंद्र सरकार ने गुरुवार को कुछ आंकड़ें जारी किए हैं.

जिसके मुताबिक गन्ना किसानों के लिए गन्ने की खेती बीते कुछ सालों में फायेद का सौदा हुई है.

मसलन 8 सालों में गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य में 31 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

 

केंद्र सरकार की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक चीनी सीजन 2013-14 में गन्ने का FRP 210 रुपये क्विंटल (9.5 % रिकवरी) था.

तब से अब तक हुए इसमें हुए संशोधन के तहत 2021-22 में गन्ने का FRP 290 रुपये क्विंटल(10% रिकवरी) है, जो चीनी सीजन 2013-14 के एफआरपी से 31% अधिक है.

 

क्या है FRP

FRP को MSP का भाई माना जा सकता है. सरकार प्रत्येक साल गन्ना किसानों के लिए FRP तय करती है.

इसकी सिफारिश कमीशन ऑफ एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेज की तरफ से की जाती है.

कुल मिलाकर FRP वह न्यूनतम मूल्य होता है, जो चीनी मिलोंं को गन्ना किसानों को देना ही होता है.

हालांकि कई राज्य के गन्ना किसानों को FRP नहीं मिलता है.

पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा जैसे राज्य FRP की जगह SAP तय करते हैं, जिसका मूल्य FRP से अधिक होता है.

 

5 सालों में चीनी निर्यात में 15 गुना की बढ़ोतरी

5 सालों में देश से चीनी के निर्यात में 15 गुना की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

केंद्र सरकार की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार चीनी सीजन 2017-18 में हुए निर्यात की तुलना में 2021-22 में चीनी के निर्यात में 15 गुना की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

आंकड़ों के अनुसार 2017-18 में लगभग 6.2 एलएमटी चीनी का निर्यात किया गया था.

वहीं सीजन 2021-22 में चीनी निर्यात करने के लिए लगभग 90 एलएमटी के निर्यात के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए हैं, जिसमें से 75 एलएमटी का निर्यात इस साल 18 मई तक किया जा चुका है.

केंद्र सरकार की तरफ से मिली जानकारी के अनुसार देश से इंडोनेशिया, अफगानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, मलेशिया और अफ्रीकी देशों को यह चीनी निर्यात की गई है.

 

8 सालों में इथेनॉल उत्पादन क्षमता भी दोगुनी हुई

केंद्र सरकार देश में खपत और निर्यात के बाद बचने वाली अतिरिक्त चीनी का भी भरपूर उपयोग कर रही है.

इसी कड़ी में अतिरिक्त चीनी को इथेनॉल में बदला जा रहा है. जिसको लेकर मंगलवार को कैबिनेट ने एक अहम घोषणा की थी.

जिसके तहत केंद्र सरकार ने पेट्रोल में इथेनॉल मिलाने की मात्रा 20 फीसदी कर दी है. इसका लक्ष्य 2025 निर्धारित कर दिया गया है.

इसके अनुरूप इथेनॉल बनाने के लिए सरकार काम कर रही है. जिसके तहत बीते 8 सालों में इथेनॉल उत्पादन क्षमता को भी दोगुना किया गया है.

 

चीनी को इथेनॉल में बदलने की संभावना

सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 तक शीरा आधारित भट्टियों की इथेनॉल बनाने की क्षमता केवल 215 करोड़ लीटर थी.

जिसे बढ़ाकर 569 करोड़ लीटर तक कर दिया गया है. वहीं 2014 में अनाज आधारित भट्टियों की क्षमता 206 करोड़ लीटर थी, वह बढ़कर 298 करोड़ लीटर हो गई है.

इस इस तरह कुल इथेनॉल उत्पादन क्षमता केवल 8 वर्षों में 421 करोड़ लीटर से बढ़कर 867 करोड़ लीटर हो गई है.

इसी कड़ी में 2020-21 में लगभग 22 LMT चीनी को इथेनॉल में बदला गया है.

वहीं चालू सीजन में लगभग 35 एलएमटी अतिरिक्त चीनी को इथेनॉल में बदलने की संभावना है.

जबकि 2025 तक, 60 एलएमटी से अधिक अतिरिक्त चीनी को इथेनॉल में बदलने का लक्ष्य है.

यह भी पढ़े : गन्ने में अधिक फुटाव, अधिक मोटाई और अधिक लम्बाई के लिए क्या करें

 

यह भी पढ़े : सरकार डीएपी की एक बोरी पर अब देगी 2501 रुपए की सब्सिडी

 

शेयर करे