कीटनाशकों से जल-जंगल और जमीन को नुकसान, इंसानों पर भी बढ़ रहा खतरा : सरकार बना रही जैविक और प्राकृतिक खेती का नया प्लान
मप्र का जैविक उत्पाद शेयर देश में 41% से बढ़ाकर 50% करने की तैयारी है। किसान कल्याण एवं कृषि विकास लक्ष्य को अगले चार साल में हासिल करने की दिशा में बढ़ गया है।
असल में रबी व खरीफ फसलों पर कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है। इससे जल, जंगल और जमीन को नुकसान पहुंच रहा है।
असर इंसानों, वन्यजीवों समेत पर्यावरण पर पड़ रहा है। रासायनिक खाद जमीन को बंजर बना रही है। ऐसी खाद के उपयोग से पैदा किए जाने वाले अनाज का उपयोग करने से लोग बच रहे हैं।
ऐसे में सरकार कीटनाशक व रासायनिक खाद युक्त खेती को हतोत्साहित कर जैविक व प्राकृतिक खेती पर जोर दे रही है।
बता दें कि भारत व अमरीका के बीच जैविक उत्पादों के आयात-निर्यात को लेकर पहल हो सकती है।
देश के 66 लाख हेक्टेयर में जैविक खेती
देश में करीब 66 लाख हेक्टेयर में जैविक खेती की जा रही है। सबसे बड़ा योगदान मप्र का है। राज्य में इसका रकबा 17.53 लाख हेक्टेयर है।
सरकार इसे चार साल में बढ़ाकर 25 लाख हेक्टेयर करने पर काम कर रही है। इसके लिए जैविक खेती के 3100 क्लस्टरों को 5 हजार करने, 1.21 हजार किसानों की संख्या को 1.50 लाख करने की तैयारी है।
सूत्रों के मुताबिक सरकार किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करने प्रति हेक्टेयर 2 से 5 हजार रुपए देने, हाट बाजार खुलवाने, राष्ट्रीय व अंतर राष्ट्रीय बाजार से जोड़ने की दिशा में भी काम कर रही है।
सरकार का जोर मंडला, डिंडोरी, शहडोल, सिंगरौली, बालाघाट, छिंदवाड़ा, बैतूल, कटनी, उमरिया, अनूपपुर, उमरिया, दमोह, सागर, आलीराजपुर, झाबुआ, खंडवा, सीहोर, श्योपुर और भोपाल जैसे 19 जिलों में जैविक खेती को बढ़ावा देने पर है।
बदलाव पर विचार
विशेषज्ञों की मानें तो जैविक खेती किसानों के लिए भी आर्थिक तौर पर लाभदायक है। तत्कालीन शिवराज सरकार में 2011 में जैविक खेती नीति बनाई जा चुकी है।
प्रदेश में जैविक उत्पाद प्रमाणीकरण संस्था कार्यरत है। सूत्रों के मुताबिक इसमें बदलाव की तैयारी है, ताकि किसानों को और सहूलियतें दी जा सकें।
समूह में खेती
भोपाल, सीहोर व नर्मदापुरम जिले के हजारों किसान समूह में जैविक खेती कर रहे हैं।
संस्था ग्रीन एंड ग्रेन्स के प्रमुख प्रतीक शर्मा का कहना है कि किसान केवल उत्पादों को बाजार तक पहुंचाने, दाम दिलाने की अपेक्षा कर रहे हैं ताकि नुकसान से बचा जा सके।
ग्रीन एंड ग्रेन्स यह काम कर रहा है। मध्यप्रदेश में किसानों की एक बड़ी श्रृंखला तैयार हो चुकी है।