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गेहूं की पछेती बुवाई की उन्नत तकनीक

Posted on December 4, 2021December 3, 2021

 

गेहूं की पछेती बुवाई

 

गेहूं की खेती के लिए समशीतोषण जलवायु की आवश्यकता होती है, इसकी खेती के लिए अनुकूल तापमान बुवाई के समय 20-25 डिग्री सेंटीग्रेड उपयुक्त माना जाता है।

गेहूं की खेती मुख्यत सिंचाई पर आधारित होती है गेहूं की खेती के लिए दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है, लेकिन इसकी खेती बलुई दोमट, भारी दोमट, मटियार तथा मार एवं कावर भूमि में की जा सकती है।

साधनों की उपलब्धता के आधार पर हर तरह की भूमि में गेहूं की खेती की जा सकती है।

 

खेत की तैयारी

गेहूं की फसल को अच्छे और समान बीज अंकुरण के लिए एक अच्छी तरह से चूर्णित लेकिन कॉम्पैक्ट बीज-बिस्तर की आवश्यकता होती है।

सिंचित क्षेत्रों में पिछली फसल की कटाई के बाद डिस्क या मोल्ड बोर्ड हल से खेत की जुताई कर दें।

जहां ट्रैक्टर उपलब्ध हो, वहां एक गहरी जुताई के बाद डिस्क के साथ दो से तीन हैरोइंग करें।

लेकिन जहां बैल स्रोत हो , वहां गहरी जुताई के बाद दो से तीन हैरोइंग या स्थानीय के साथ चार से पांच इंटरक्रॉस जुताई के हल चलाने के बाद पौध रोपण करें।

वर्षा सिंचित क्षेत्रों में खेत की तैयारी सावधानी से की जाए क्योंकि इस पर नमी संरक्षण निर्भर करता है।

खेतों को आमतौर पर एक गहरी जुताई के बाद हल और फिर तख्ती से दो से तीन बार जुताई करके स्थानीय के साथ तैयार किया जाता है।

इन क्षेत्रों में शाम के समय जुताई कर दें जिससे ओस की नमी को सोखने के लिए पूरी रात का समय मिल जाता है।

इसके बाद सुबह जल्दी ही प्लैंकिंग कर लें। 10-30 मीटर चौड़ाई का मध्यवर्ती क्षेत्र को अजैविक क्षेत्र से बचने के लिए रखी जाए।

 

उन्नत किस्में

सिंचित अवस्था में समय से बुवाई

एच डी- 2967, 4713, 2851, 2894, 2687, डी बी डब्ल्यू- 17, पी बी डब्ल्यू- 550, 502, डब्ल्यू एच- 542, 896 और यू पी- 2338 आदि प्रमुख है, इनका बुवाई का उपयुक्त समय 10 नवम्बर से 25 नवम्बर माना जाता है।

 

सिंचित अवस्था में देरी से बुवाई

एच डी- 2985, डब्ल्यू आर- 544, राज- 3765, पी बी डब्ल्यू- 373, डी बी डब्ल्यू- 16, डब्ल्यू एच- 1021, पी बी डब्ल्यू- 590 और यू पी- 2425 आदि प्रमुख है, इनका बुवाई का उपयुक्त समय 25 नवम्बर से 25 दिसम्बर माना जाता है।

 

असिंचित अवस्था में समय से बुवाई

एच डी- 2888, पी बी डब्ल्यू- 396, पी बी डब्ल्यू- 299, डब्ल्यू एच- 533, पी बी डब्ल्यू- 175 और कुन्दन आदि प्रमुख है।

 

बीज और बुवाई

गेहूं की बुवाई का इष्टतम समय बढ़ते क्षेत्रों में व्यापक रूप से भिन्न होता है।

यह निम्न बातों पर निर्भर करता है किस्म, मौसम की स्थिति, मिट्टी का तापमान, सिंचाई की सुविधा और भूमि की तैयारी।

 

बारानी गेहूं की बुवाई सामान्यत: अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े से नवम्बर की शुरुआत तक की जाती है।

विशेष परिस्थितियों में दिसंबर के महीने में भी गेहूं की बुवाई की जाती है। देर से बोए गए गेहूं में, केवल कम अवधि किस्मों का प्रयोग करें।

 

बीज दर और दूरी

उपयोग की जाने वाली किस्म के साथ बीज दर भिन्न होती है। जो की बीज के आकार, अंकुरण प्रतिशत, जुताई, बुवाई का समय, मिट्टी में नमी की मात्रा और बुवाई की विधि पर भी निर्भर करता है।

आमतौर पर, बीज दर 40 किलो प्रति एकड़ पर्याप्त है। सामान्य बुवाई के लिए देर से बोई जाने वाली परिस्थितियों में सोनालिका जैसी मोटे अनाज वाली किस्मों के लिए, बीज की दर बढ़ाकर 50 किलो प्रति एकड़ की जाए।

यदि डिबलर द्वारा गेहूं की बुवाई करनी हो तो बीज दर 10 से 12 किलो प्रति एकड़ पर्याप्त है।

सामान्य बोई गई फसल के लिए दो पंक्तियों के बीच 20 से 22.5 सेमी की दूरी रखी जाती है। बुवाई में देरी होने पर 15 से 18 सेमी की दूरी रखें।

 

बुवाई की विधि

गेहूं की बुवाई समय से एवं पर्याप्त नमी पर करें अन्यथा उपज में कमी हो जाती है।

जैसे-जैसे बुवाई में बिलम्ब होता है वैसे-वैसे पैदावार में गिरावट आती जाती है, गेहूँ की बुवाई सीडड्रिल से करें तथा गेहं की बुवाई हमेशा लाइन में करें।

सयुंक्त प्रजातियों की बुवाई अक्टूबर के प्रथम पक्ष से द्वितीय पक्ष तक उपयुक्त नमी में बुवाई करें, अब आता है सिंचित दशा इसमे की चार पानी देने वाली हैं।

समय से अर्थात् 15-25 नवम्बर, सिंचित दशा में ही तीन पानी वाली प्रजातियों के लिए 15 नवंबर से 10 दिसंबर तक उचित नमी में बुवाई करें और सिंचित दशा में जो देर से बुवाई करने वाली प्रजातियाँ हैं वो 15-25 दिसम्बर तक उचित नमी में बुवाई करें।

उसरीली भूमि में जिन प्रजातियों की बुवाई की जाती है वे 15 अक्टूबर के आस पास उचित नमी में बुवाई अवश्य कर दें, अब आता है किस विधि से बुवाई करें गेहूं की बुवाई देशी हल के पीछे लाइनों में करें या फर्टीसीडड्रिल से भूमि में उचित नमी पर करना लाभदायक है।

पंतनगर सीडड्रिल बीज व खाद सीडड्रिल से बुवाई करना अत्यंत लाभदायक है।

 

श्री विधि से बुवाई

श्री विधि से गेहूं की बुवाई के लिये सबसे पहले यह ध्यान दिया जाता है कि बुवाई के समय जमीन में नमी हो क्योंकि इस विधि से बुवाई के लिए अंकुरित बीज का प्रयोग होता है। खेत में पलेवा देकर ही बुवाई करें।

देसी हल या कुदाल से 20 सेमी. की दूरी पर 3 से 4 सेमी. गहरी नाली बनाते हैं और इसमें 20 सेमी. की दूरी पर एक स्थान पर 2 बीज डालते हैं।

बुवाई के बाद बीज को हल्की मिट्टी से ढक देते हैं तत्पश्चात बुवाई के 2-3 दिन में पौधे निकल आते हैं।

 

उर्वरक

किसान भाइयों उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करें, गेहूं की अच्छी उपज के लिए खरीफ की फसल के बाद भूमि में 150 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 40 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टर तथा देर से बुवाई करने पर 80 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस, तथा 40 कि.ग्रा. पोटाश, अच्छी उपज के लिए 60 क्ंिवटल प्रति हेक्टर सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करें।

 

सिंचाई

गेहंू में लगभग 4 – 6 पानी लगाना पड़ता है यदि भूमि रेतीली है तो 6 – 8 पानी लगाना पड़ सकता है।

 

उपज

असिंचित दशा में 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टर होती है, सिंचित दशा में समय से बुवाई करने पर 55-60 क्विंटल प्रति हेक्टर पैदावार मिलती है।

तथा सिंचित देर से बुवाई करने पर 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टर तथा उसरीली भूमि में 30-40 क्विंटल प्रति हेक्टर पैदावार प्राप्त होती है।

 

भंडारण

मौसम का बिना इंतजार किये हुए उपज को बखारी या बोरो में भर कर साफ सुथरे स्थान पर सुरक्षित कर सूखी नीम कि पत्ती का बिछावन डालकर करना चहिए या रसायन का भी प्रयोग करना चाहिए।

गेहूं की पछेती बुवाई में उपयुक्त किस्मों का चयन

मालवांचल- जे.डब्ल्यू. 1203, एमपी 4010, एचडी 2864, एचआई 1454

निमाड़ अंचल– जे.डब्ल्यू. 1202, एच.आई. 1454

विंध्य पठार- जे.डब्ल्यू. 1202, 1203, एम.पी. 4010, एच.डी. 2864, डी.एल. 788- 2

नर्मदा घाटी- जे.डब्ल्यू. 1202, 1203, एम.पी. 4010, एच.डी. 2932,

बैनगंगा घाटी- जे.डब्ल्यू. 1202, एच.डी. 2932, डी.एल. 788- 2

हवेली क्षेत्र- जे.डब्ल्यू. 1202, 1203, एच.डी. 2864, 2932,

सतपुड़ा पठार– एच.डी. 2864, एम.पी. 4010, जे.डब्ल्यू. 1202, 1203,

गिर्द – एम.पी. 4010, जे.डब्ल्यू. 1203, एच.डी. 2932, 2864

बुन्देलखण्ड क्षेत्र- एम.पी. 4010, एच.डी. 2864

विशेष : सभी क्षेत्रों में अत्यन्त देरी से बुवाई की स्थिति में किस्में- एच.डी. 2404, एम.पी. 1202

source : krishakjagat

 

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