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टिशू कल्चर तकनीक से सागौन की खेती में बंपर मुनाफा

सागौन का पेड़ जंगली लकड़ी होने के बावजूद भी लंबे समय से किसानों के लिए आय का अच्छा स्रोत बना हुआ है.

और अब टिशू कल्चर वाली चमत्कारिक खेती को अपनाने वाले किसान मालामाल हो रहे हैं.

क्योंकि जैव-तकनीक से प्रयोगशाला में तैयार पौधों से लागत के मुकाबले 8-10 गुना ज्यादा कमाई हो होती है इसलिए आपको टिशू कल्चर तकनीक से सागौन की खेती की जानकारी हैं.

आईये जानते हैं टिशू कल्चर तकनीक से जुड़ी जरूरी बातें

 

किसान ऐसे उठाएं लाभ

देश में टिशू कल्चर तकनीक से सागौन की खेती किसानों को मुनाफा ही मुनाफा दे रही है बागवानी से जुड़े किसानों के लिए तो टिशू कल्चर तकनीक किसी वरदान से कम नहीं, क्योंकि किसानों का मुनाफ़ा कई गुना बढ़ जाता है.

सजावटी पौधों जैसे ऑर्किड, डहेलिया, कार्नेशन, गुलदाउदी आदि के लिए तो टिशू कल्चर का कोई जबाब नहीं है.

केले और बांस की खेती करने वाले और महंगी इमारती लकड़ी सागौन का बागीचा लगाने वाले किसानों या उद्यमियों के लिए टिशू कल्चर तकनीक ने क्रान्ति ला दी है.

जो छोटे-बड़े किसान सभी के लिए लाभदायक है इतना ही नहीं टिशू कल्चर तकनीक को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र सरकार का राष्ट्रीय बागवानी मिशन जिलास्तर पर टिशू कल्चर लैब लगाने के लिए एक करोड़ रुपये का अनुदान देता है.

 

क्या है टिश्यू कल्चर पद्धति?

इस तकनीक में विभिन्न चरणों में सागौन पौधा तैयार होता है.

चयनित पौधों की शाखायें लेकर उपचार के बाद पालिटनल में रखकर अंकुरित करते हैं. फिर 3–4 सेमी की शूट होने पर एक्सप्लांट के लिए अलग कर लेते हैं.

एक्सप्लांट की सतह को एथनॉल आदि से अच्छी तरह साफ़ कर कीटाणु रहित किया जाता है.

फिर स्तरलाइज्म एक्सप्लांट को सावधानी से टेस्ट ट्यूब में ट्रांसफर करते हैं. टेस्ट ट्यूब में पौधा 25 डिग्री सेल्सियस और 2 डिग्री सेल्सियस पर 16 -18 घंटे की लाइट पर 45 दिनों तक रखते हैं.

2 हप्ते की निगरानी और तकनीकी रखरखाव के बाद एक्सप्लांट से नई एपिक्ल शूट उभरती है. जिसकी 6-8 बार सब क्लचरिंग करते हैं.

लगभग 30-40 दिनों में 4 -5 नोड वाली शूट्स मिलती है जिन्हें फिर से काटकर नये शूटिंग मिडिया में इनोक्यूलेट करते हैं इसके बाद शूट को डबल शेड के नीचे पॉलीप्रोपागेटर में 30-35 डिग्री तापमान और 100  फीसदी आद्रता पर लगाते हैं.

लैब में तैयार पौधे 15 सेमी ऊंचे हो जाते हैं.

टिश्यू कल्चर तकनीक से सागौन की खेती

सागवान का पौधा अत्याधुनिक प्रयोगशाला में कृषि वैज्ञानिकों ने कई सालों की खोज और अनुसंधान के बाद प्रयोगशाला में तैयार किया गया है.

टिश्यू कल्चर सागवान एक मात्र ऐसा पौधा है जो रोग और कीटाणु से मुक्त होता है यह पौधे जल्दी बढ़ने के साथ ही एक समान दिखते हैं इसकी मुख्य शाखा मजबूत और सीधी होती है.

वहीं मौसम की बात करें तो इसे किसी भी मौसम में लगाया जा सकता है लेकिन पौधा लगाने के बाद किसान को समय-समय पर सिंचाई के साथ देखभाल करना जरूरी होता है इस पौधे से 12 से 15 सालों में लकड़ी मिलना शुरू हो जाता है.

लकड़ी मजबूत और सुनहरी पीली और उच्च गुणवत्तायुक्त होती है.

 

किसान ऐसे उठाएं टिशू कल्चर का लाभ

टिशू कल्टर वाली खेती का लाभ उठाने के इच्छुक किसानों को अपने ज़िला उद्यान कार्यालय या कृषि विकास केन्द्र या नज़दीकी प्रयोगशाला से सम्पर्क करना होगा और वहां से इसके बारे में सभी बारीक़ से बारीक़ नुस्ख़े सीखकर आगे बढ़ना चाहिए.

आर्थिक लाभ

टिशू कल्चर सागवान के पौधे के बीच की दूरी 8×10 रखते हैं तो प्रति एकड़ 520-540 पौधे लगेंगे और प्रति पौधा अनुमानित लकड़ी का उत्पादन 17 से 25 घन फीट तक का हो सकता है.

जिसका बाजार में वर्तमान भाव लगभग प्रति घन फीट 2 हजार रुपये तक होता है.

इस तरह से करीब 15- 20 सालों के बाद प्रति एकड़ आय लगभग 2 करोड़ के लगभग हो जाएगी.

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