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गाजर की खेती है काफी फायदेमंद

Posted on October 18, 2021October 17, 2021

 

उन्नत किस्मों से लेकर खेती के तौर-तरीकों तक के बारे में

 

गाजर की खेती किसान भाई खरीफ, रबी और इन दोनों सीजन के दौरान भी कर सकते हैं.

गाजर की अलग-अलग किस्में भी हैं, जिनकी खेती अगस्त से लेकर नवंबर के महीने तक की जा सकती है.

 

किसान अतिरिक्त आय के लिए कुछ खास फसलों की खेती करते हैं.

इनकी खेती वे कम रकबे में खेती के सीजन के बीचो बीच करते हैं ताकि उन्हें कुछ आमदनी हो सके.

अतिरिक्त आय के लिए जिन फसलों की खेती की जाती हैं, वे सामान्य तौर पर नकदी होती हैं. इसी तरह की एक फसल है गाजर.

 

गाजर की खेती किसान भाई खरीफ, रबी और इन दोनों सीजन के दौरान भी कर सकते हैं.

गाजर की अलग-अलग किस्में भी हैं, जिनकी खेती अगस्त से लेकर नवंबर के महीने तक की जा सकती है.

यह तमाम विटामिन और मिनरल से भरपूत होता है. इसके नियमित सेवन से स्वास्थ्य अच्छा रहता है.

यहीं कारण है कि पैदावार बाजार में आते ही हाथों-हाथ ली जाती है.

 

इन बातों का रखें ध्यान

अगर आप भी गाजर की खेती करने की योजना बना रहे हैं तो हम आपको कुछ जरूरी बातें बता देते हैं.

गाजर की बुवाई के लिए पहले से खेत की तैयारी जरूरी है. खेत को बिजाई से पहले भली प्रकार से समतल कर लेना चाहिए.

इसके लिए खेती की 2 से 3 गहरी जुताई करनी चाहिए. प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाना जरूरी होता है ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए.

 

इन प्रक्रियाओं के बाद खेत में गोबर की खाद को अच्छी तरह से मिला दें.

खेत की तैयारी के समय 20 से 25 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर जुताई करते समय डालनी चाहिए.

गाजर की फसल को 5 से 6 बार सिंचाई करने की आवश्यकता होती है.

अगर खेत में बिजाई करते समय नमी कम हो तो पहली सिंचाई बिजाई के तुरंत बाद करनी चाहिए.

बाद में आवश्यकतानुसार हर 15 से 20 दिन के अंदर सिंचाई करने से पैदावार अच्छी होती है.

 

फसल तैयार होने के बाद समय पर गाजर की खुदाई कर लेनी चाहिए.

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, गाजर की देरी से खुदाई करने से गाजर की पौष्टिक गुणवत्ता कम हो जाती है.

गाजर फीकी और कपासिया हो जाती है तथा भर भी कम हो जाता है. इसी वजह से पक कर तैयार होते ही गाजर की खुदाई शुरू कर देनी चाहिए.

 

इन किस्मों की कर सकते हैं खेती

गाजर की मुख्य रूप से यूरोपियन और एशियाई किस्म भारत में खेती के लिए उपयोग की जाती है.

चैंटनी एक यूरोपियन किस्म है. यह नारंगी रंग की होती है और बिजाई के 75 से 90 दिन में तैयार हो जाती है.

इसे मैदानी क्षेत्रों में बोया जाता है और एक हेक्टेयर में 150 क्विंटल तक उत्पादन होता है.

 

इसके अलावा एक और यूरोपियन किस्म नैनटिस है. यह 110 से 120 दिन में तैयार हो जाती है लेकिन इसे मैदानी इलाकों में नहीं बोया जा सकता है.

खेती करने वाले किसान बताते हैं एक हेक्टेयर में खेती करने पर इस किस्म से 200 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त होती है.

इन दोनों के अलावा, पूसा मेघाली, पूसा रुधिर और चयन नं 223 जैसी किस्मों की खेती भी किसान बड़े पैमाने पर कर रहे हैं.

source

 

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