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किसान मूली की खेती से कर सकते हैं मोटी कमाई

 

इसकी खेती का सबसे आसान तरीका

 

कैसे करें मूली की खेती, कैसी मिट्टी है उपयुक्त और जानिए कौन-कौन सी किस्मों में मिलेगी अच्छी पैदावार.

 

किसान मूली की खेती से बहुत ही कम समय में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं.

मूली ठंड के मौसम की फसल है और इसकी खेती मुख्य रूप से रबी के मौसम में की जाती है.

मिट्टी में उगने वाली जड़ों और ऊपरी हरी पत्तियों का उपयोग सब्जियों के लिए किया जाता है.

मूली का उपयोग सलाद, सब्जी, साग या अचार बनाने के लिए किया जाता है.

मूली अपने आवश्यक गुणों के कारण कब्ज वाले लोगों के लिए बहुत उपयोगी होती है.

इसके जड़ और हरे पत्ते विटामिन ए और सी से भरपूर होते हैं.

 

मूली की खेती के लिए ठंडी जलवायु की जरूरत होती है. 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर वृद्धि तेजी से होती है.

लेकिन अच्छे स्वाद और कम तीखेपन के लिए जड़ विकास अवधि के दौरान 15 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए.

यदि जड़ वृद्धि की अवधि के दौरान तापमान बढ़ता है, तो मूली जून की शुरुआत में हो जाती है और इसकी तीक्ष्णता भी बढ़ जाती है.

मूली की अच्छी वृद्धि के लिए चयनित मिट्टी अच्छी तरह से सूखी होनी चाहिए. मूली को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है.

मूली मध्यम से गहरी दोमट या दोमट मिट्टी में अच्छी तरह से विकसित होती है.

 

मूली की उन्नत किस्में

पूसा हिमानी, पूसा देसी, पूसा चेतकी, पूसा रेशमी, जापानी सफेद, गणेश सिंथेटिक मूल किस्में हैं जो एशियाई या समशीतोष्ण जलवायु में उगती हैं.

 

मौसम और रोपण दूरी

महाराष्ट्र में जड़ों को साल भर उगाया जा सकता है, लेकिन मूली की व्यावसायिक खेती मुख्यतः रबी के मौसम में की जाती है.

रबी के मौसम के लिए सितंबर से जनवरी तक बीज बोना चाहिए.

गर्मी के मौसम के लिए मार्च-अप्रैल में और खरीफ सीजन के लिए जून से अगस्त में बीज बोना चाहिए.

जड़ों को रोपते समय दो पंक्तियों के बीच की दूरी 30 से 45 सेमी और 2 रोपाई के बीच की दूरी 8 से 10 सेमी होनी चाहिए.

 

उर्वरक प्रबंधन

किसान भाइयों मूली की खेती के लिए 200 से 250 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद खेत की तैयारी करते समय देनी चाहिए.

इसके साथ ही 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फॉस्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें.

नाइट्रोजन की आधी मात्रा फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुआई से पहले और नाइट्रोजन की आधी मात्रा दो बार में खड़ी फसल में दें.

इसमें नाइट्रोजन 1/4 मात्रा शुरू की पौधों की बढ़वार पर और 1/4 जड़ों की बढ़वार के समय दें.

 

अंतर फसल

जड़ की खेती कम दूरी पर की जाती है इसलिए भूमि पर अच्छी तरह से खेती करना आवश्यक है.

चूंकि फसल कम समय में तैयार हो जाती है, इसलिए फसल को शुरुआती समय में कुदाल की सहायता से निराई-गुड़ाई करनी चाहिए.

खुदाई और निराई जल्दी की जानी चाहिए.

 

मूली की फसल को रोग से बचाने के उपाय

काला लार्वा (सरसों की मक्खी) – यह एक प्रमुख जड़ कीट है.

इन काले लार्वा का प्रकोप रोपण और अंकुरण के प्रारंभिक चरणों में बड़ा होता है.

ये लार्वा पत्तियों को खा जाते हैं और पत्तियों पर छेद कर देते हैं.

 

उपाय – इस लार्वा के नियंत्रण के लिए 20 मिली इंडोसल्फान को 10 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़कें.

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