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अनुसंधान परिषद की बैठक में हुई राजेंद्र गन्ना-4 को रिलीज करने के लिए चर्चा

 

राजेंद्र गन्ना-4 को रिलीज करने के लिए चर्चा

 

डॉ. राजेंद्र प्रसाद, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा समस्तीपुर के कुलपति डॉ. रमेश चंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों को यह समझने की जरूरत है कि किसान हमारे अन्नदाता हैं.

 

डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के 11वें अनुसंधान परिषद के तीसरे दिन फसलों के किस्मों की अनुशंसा करने को लेकर बैठक जारी रही.

इस दौरान कुलपति डॉ. रमेश चंद्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता में लगभग एक दर्जन से अधिक अनुसंधान परियोजनाओं की समीक्षा की गई.

खबर लिखे जाने तक विश्वविद्यालय की ओर से गन्ने की किस्म सीओपी 18437 तथा राजेंद्र गन्ना 4 को रिलीज करने के लिए राज्य सरकार को अनुशंसित करने के लेकर विमर्श जारी था.

 

अनुसंधान परिषद की बैठक में लगभग 80 अनुसंधान परियोजनाओं की समीक्षा की गई. भविष्य के लिए उचित दिशानिर्देश दिये गए.

डॉ. श्रीवास्तव ने वैज्ञानिकों से गन्ने की अलग-अलग किस्मों और उससे किसानों को होने वाले फायदे के विषय में विस्तार से जानकारी ली.

इसी तरह परवल की किस्म राजेन्द्र परवल 3 को भी अनुशंसित करने को लेकर चर्चा हुई.

किसानों के हित में विश्व विद्यालय पांच तकनीक भी अनुशंसित कर रहा है.

 

इन किस्मों की खासियत

राजेंद्र गन्ना चार की लंबाई सबसे लंबे प्रभेद से 17 प्रतिशत अधिक है. मोटाई 18 प्रतिशत अधिक है.

इसकी उत्पादन क्षमता बीओ 154 से लगभग 20 प्रतिशत ज्यादा है. चीनी उत्पादन क्षमता लगभग 21 फीसदी ज्यादा है.

गन्ने के सीओपी 18437 किस्म में उत्पादन क्षमता 230 प्रतिशत अधिक है. जबकि चीनी उत्पादन क्षमता लगभग 28 प्रतिशत अधिक है.

 

मुनाफे में होगी होगी

इसमें लीची की गुठली से मछली का पोषण युक्त भोजन, भिंडी जुड़ी की हस्तचालित मशीन, धनिया में स्टेम गाल रोग का प्रबंधन एवं सोलर चालित नाव आधारित मोटर पंप तकनीक शामिल है.

कुलपति का कहना है कि इन तकनीकों को लेकर काफी समय से काम किए जा रहे हैं.

और अनुसंधान में यह पाया गया है कि इससे किसानों की कृषि लागत कम होगी तथा मुनाफा में वृद्धि होगी.

 

किसान हमारे अन्नदाता

डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक अच्छा कार्य कर रहे हैं.

उनके प्रयासों के कारण संस्थान की ख्याति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही है.

ठंड के दौरान प्रवासी मजदूरों के प्रशिक्षण और उन्हें रोजगार मुहैया कराने में विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की तारीफ की.

उन्होंने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों को यह समझने की जरूरत है कि किसान हमारे अन्नदाता हैं.

उनके जीवन में सुधार के लिये वैज्ञानिकों को सतत प्रयत्नशील रहने की जरूरत है.

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