सरसों, गेहू और चना सहित अन्य फसलो में करें यह काम

कृषि विभाग और कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा समय समय से किसानो को फसलो की लगत कम कर अधिक पैदावार करने के लिए सलाह जारी की जाती है।

 

किसान इन फसलो में अभी करें यह काम

इस समय के मौसम को देखते हुए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा किसानो के लिए सलाह जारी की गई है।

इस समय विभिन्न फसलों में लगने वाले कीट-रोग एवं उनके प्रबंधन के बारे में जानकारी दी गई है।

 

अरहर की खेती करने वाले क्या करें…?

  • वर्तमान समय में किसानो को सलाह दी गई है कि अरहर में फली बनने की अवस्था में फलबेधक इल्ली लगने की संभावना होने पर इनके प्रबंधन एवं निगरानी के लिए फेरोमोन ट्रैप एवं पक्षियों के बैठने के लिए टी-आकार की खुंटी लगाएं।
  • फेरोमोन सेप्टा को प्रतिदिन 15 दिन में बदलें।
  • अरहर में फली भेदक कीटों के नियंत्रण के लिए इंडोक्साकार्ब 14.5 एस.सी. 353-400 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
  • मौसम साफ रहने की स्थिति में किसान भाई अरहर में कीटनाशक दवाई का छिड़काव कर सकते हैं।

 

गेहू की खेती करने वाले क्या करें…?

  • देर से बोयी गई गेहूँ की फसल यदि 21-25 दिन की हो गयी तो पहली सिंचाई आवश्कयतानुसार करें तथा 3-4 दिन के बाद नाइट्रोजन की शेष मात्रा का छिड़काव करें।
  • जो किसान अभी तक गेहूं की बुआई नहीं कर पाए हैं और वे किसान गेहूं लगाना चाहते हैं वे किसान गेहूं की विलंब बुवाई की दशा में बीज की मात्रा अनुसंशित मात्रा से 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बढ़ा दें।
  • गेहूँ की फसल में यदि दीमक का प्रकोप दिखाई दे, तो बचाव हेतु किसान क्लोरपायरीफाँस 20 ई.सी. 2.0 ली. प्रति एकड़ की दर से 20 कि.ग्रा. बालू में मिलाकर खेत में शाम को छिड़क दे, और सिंचाई करें।

 

चने की खेती करने वाले क्या करें…?

  • किसान दलहन एवं तिलहन फसलों में माहू (एफिड) के प्रकोप की आशंका को देखते हुए इसके लिए सतत निगरानी रखें एवं प्रारंभिक प्रकोप दिखने पर नीम आधारित कीटनाशकों का छिड़काव करें।
  • चना में लगने वाले इल्ली के प्रबंधन हेतु इल्ली परजीवी (ब्रेकोनिड) 6-8 कार्ड प्रति एकड़ उपयोग करें।
  • ऐसे किसान जिन्होंने समय पर चने की बुआई की है वे किसान चने की फसल 15-20 सेमी की ऊंचाई होने या 35-40 दिन होने पर खुटाईं अवश्य करें।

 

अलसी और सरसों की खेती करने वाले क्या करें…?
  • सरसों की पहली सिंचाई बुवाई के 25-30 दिनों बाद 4-6 पत्ती की अवस्था होने पर सिंचाई करनी चाहिए।
  • इसी तरह अलसी के लिए उर्वरक की मात्रा निर्धारित की गई है।
  • इसके तहत नाइट्रोजन 60 किलोग्राम, स्फूर 30 किलोग्राम, पोटाश 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचित क्षेत्र के लिए तथा असिंचित क्षेत्र के लिए उर्वरक की मात्रा नत्रजन 40 किलोग्राम स्फूर 20 किलोग्राम, पोटाश 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।

 

सब्जी की खेती करने वाले क्या करें…?
  • वहीं सब्जियों एवं फलों के लिए किसानों को सलाह दी गई है कि वे शीतकालीन मौसमी फूलों में सिंचाई एवं उर्वरक का प्रबंधन करें।
  • शरदकालीन मौसमी पुष्पों में खरपतवार एवं कीट बीमारियों का नियंत्रण करें।
  • किसान वृक्षों के तने पर बोर्डो पेस्ट लगाए, फल उद्यान में साफ-सफाई करें और वृक्षों के चारों तरफ थाला बनाकर खाद एवं उर्वरक की निर्धारित मात्रा मिलाएं।
  • अनार, फालसा, आंवला व बेर के फलों में कीट नियंत्रण हेतु आवश्यक कीटनाशक दवा का छिड़काव करें।
  • टमाटर, मिर्च, शिमला मिर्च, भटा तथा शीतकालीन गोभीवर्गीय सब्जियों जैसे फूलगोभी, पत्तागोभी व गाठगोभी की सब्जियों में गुड़ाई करें तथा हर चौथे दिन में आवश्यकतानुसार पोषक उर्वरक प्रदान करें।
  • प्याज की तैयार पौध का रोपण करना चाहिए। प्याज के शीर्ष की एक-तिहाई पत्तियों को काटकर ही रोपण करना चाहिए।
  • मटर की फसल पर 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव करें। जिससे मटर की फलियों की संख्या में बढ़ोतरी होती है।
  • मवेशियों को 25-30 ग्राम मिनरल मिक्सचर प्रतिदिन चारे के साथ मिलाकर अवश्य खिलाएं।
  • पशु बाड़े एवं मुर्गियों के घर में यदि खिड़कियाँ न लगी हो तो ठंडी हवा से बचाव के लिए बोरे लटकायें। दुधारू पशुओं को भरपूर पानी पिलायें एवं अत्यधिक ठंडा पानी पीने नहीं दें।

इन कृषि यंत्रो को सब्सिडी पर लेने हेतु अब 06 जनवरी तक कर सकते है आवेदन

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