अब दूर-दूर से उनके गांव पहुंच रहे लोग
लालबाबू की मेहनत ने उसके मुकद्दर को बदल दिया और अब उस हिस्से में हजारों एकड़ जमीन पर अब सब्जियां ही सब्जियां उगाई जा रही है.
नदी किनारे की जमीन बिहार और उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के तमाम प्रदेश के किसानों के लिए कभी फायदे की नहीं रही. में एक बार नदी अपनी चपेट में ले लेती है बाढ से फसलें तबाह हो जाती है.
वहीं, बलुई मिट्टी की वजह से उस जमीन पर अच्छी फसल भी नहीं लग पाती है.. नतीजा किसान निराश होकर वैसी ही फसल लगाते हैं जो जल्दी में उग आए या जो कुछ हो जाए.
ऐसी धारणा से हजारों किसान आज भी पारंपरिक तरीके की खेती करने को मजबूर हैं.
लेकिन बिहार के मुजफ्फरपुर के बदौल गांव में रहने वाले 41 साल के लालबाबू साहनी ने अपनी मेहनत से इन सारी धारणाओं को बदल दिया है.
नदी के पेट की जमीन पर कीकर, सीसम और घास ही हमेशा उगे रहते थे. अब वहां उन्होंने सब्जियों की खेती कर 15 लाख रुपये तक कमा रहे हैं.
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लालबाबू बताते हैं कि अपने गांव से कुछ दूर पर बुढी गंडक नदी है. नदी के पेट की जमीन को पहले साफ किया.
पहले तो तरबूज और खरबूज की खेती की लेकिन उससे कुछ खास फायदा नहीं हुआ.
अब उसमें परिवर्तन कर एक ही खेत में कई तरह की सब्जियां लगानी शुरु कर दिया. यहां की सबसे बड़ी समस्या है सब्जियों में समय पर पानी देना.
क्योंकि नदी तो है जिसमें सालों भर पानी रहता है लेकिन इसके पानी से पटवन काफी मंहगा पर जाता है.
दूसरी परेशानी यह है कि इस मिट्टी में हरेक चौथे दिन या पांचवे दिन पानी से सिंचाई करनी पड़ती है.
साल में आसानी से 15 लाख तक की कमाई हो जाती है
लालबाबू हर साल 10 से 15 लाख की कमाई कर लेते हैं. सोलर बोट माउंट इरिगेशन सिस्टम का उन्हें बहुत फायदा मिल रहा है. डीजल में लगने वाले पैसों की बचत हुई है. इसीलिए आमदनी बढ़ गई है.
बंजर जमीनों में अब हजारों एकड़ सब्जियां उगाई जा रही है. सब्जियां यहां से उत्तर प्रदेश और दिल्ली के बाजार तक पहुंचती है.
लेकिन अभी कम कीमत मिल रही है. अब इस यहां की बंजर पड़ी जमीन में हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है.
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अब दूर दूर से हमारी खेती को देखने आते हैं लोग
सबसे पहले उसने धारणा को तोड़ने के लिए एक ही खेत में एक साथ कई तरह की सब्जी उगानी शुरू कर दी है.
साहनी बताते हैं कि बिहार में किसानों के पास ज्यादा जमीनें नहीं होती है. 5 एकड़ में हमने फसल की है पिछले तीन साल में हमें अच्छी कमाई हुई है. लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से बड़ा नुकसान हो रहा है.
साहनी अपनी खेती के बारे में बताते हैं कि इस वक्त उनके पास घीया की शानदार फसल लगी है हरेक दिन 5 क्विटंल तक उत्पादन होता है. इसके साथ साथ करेला भी लगाया है. ये एक से दो क्विटंल हो जाती है.
खीरे की फसल अच्छी है. यह भी दो क्विंटल तक निकल ही जाती है. मीर्च की कीमत अभी अच्छी मिल रही है 20 से 30 रुपये प्रति किलोग्राम. बैंगन भी अभी अच्छी कमाई दे रही है.
यूनिवर्सिटी ने लालबाबू के काम को पुरस्कार के नामित किया है
डाक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्व विद्याल के प्रवक्ता डाक्टर राज्यवर्धन कुमार बताते हैं कि कि यूनिवर्सिटी के वीसी डाक्टर आर सी प्रसाद ने इनके लिए सोलर बोट की व्यवस्था की.
साथ ही, किसानों की समृधि के लिए स्टार्टअप के तहत बढावा देने के लिए योजनाओं की जानकारी दे रहे हैं.
लालबाबू साहनी की मेहनत और खेती को देखते हुए सम्मानित कराने के लिए कई संस्थान को भी लिखा गया है.
ताकि इस इलाके में किसानों की आय बढे और किसान संपन्न हों.
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