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इंटरनेट पर रिसर्च कर सिरसाैदा के किसान ने तैयार की चने की पौष्टिक किस्म

 

समें फैट कम, विटामिन और मिनरल ज्यादा

 

खेती के प्राकृतिक और पारंपरिक तरीकाें के साथ अपनाई नई तकनीक, नाम दिया एमपीके-179

 

खेती के प्राकृतिक व पारंपरिक तरीकों के साथ ही नई तकनीकों को अपनाते हुए शहर के पास सिरसौदा गांव के युवा किसान विनोद चौहान ने नवाचार किया है।

उन्होंने अपने खेत में काले चने उगाए हैं। चने की इस किस्म को नाम दिया गया है एमपीके-179 और विशेषज्ञों के मुताबिक ये चने की सभी किस्मों से ज्यादा पौष्टिक हैं।

 

इनमें फैट कम और विटामिन व मिनरल ज्यादा होते हैं। दरअसल चने की यह किस्म महाराष्ट्र के महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ ने विकसित की है।

मध्यप्रदेश सहित महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात और हरियाणा की जलवायु इसके लिए अनुकूल है।

अभी यह चना प्रचलन में नजर नहीं आ रहा क्योंकि ज्यादातर लोगों को इसके फायदों की जानकारी नहीं है।

लेकिन इसकी पौष्टिकता के चलते चने की यह किस्म अब धीरे-धीरे जगह बना रही है और इसीलिए किसान भी इसे उगाने लगे हैं।

 

वर्जिश करने वालों के लिए प्रोटीन का बढ़िया स्राेत

वे लोग जो सेहत के प्रति जागरूक हैं, या वर्जिश करते हैं। उनके लिए काफी फायदेमंद है। प्रोटीन के साथ ही आयरन, फाइबर, कैल्शियम, पोटैशियम और एंथ्रोसिनिन पिगमेंट भी इनमें ज्यादा मात्रा में होता है।

ये पोषक तत्व शरीर का मेटाबॉलिज्म सही रखते हैं। इनमें फायटोन्यूट्रिएंट, एंटीऑक्सीडेंट भी हैं जो कैंसर जैसी बीमारियों के लिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं।

 

लगातार नई चीजें पढ़ते रहने से पता चली कई बातें

विनोद इंटरनेट पर खेती से जुड़ी नई नई रिसर्च, नई जानकारी पढ़ते रहते हैं।

काले चनों के बारे में उन्हें इंटरनेट से ही जानकारी मिली। दोनों की खेती में फर्क यह है कि काले चने के बीज कम मात्रा में चाहिए।

इसमें प्रति एकड़ 30 किलो बीज की आवश्यकता हाेती है और एक या दो सिंचाई की ज़रूरत होती है और 110 दिन में फसल पक कर तैयार हो जाती है।

एक एकड़ की खेती से 10-12 क्विंटल पैदावार हो जाती है।

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