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बाँस की खेती से किसान हो रहे हैं समृद्ध

 

निमाड़ इलाके की पहचान नीम के पेड़, मिर्च और कपास की प्रचलित फसलों से होती आई हैं, पर इस क्षेत्र को बॉस के माध्यम से नई पहचान दिलाने का बीड़ा खरगोन जिले के ग्राम मेनगाँव के विजय पाटीदार ने न केवल उठाया है, बल्कि वे इसमें कामयाब भी रहे हैं।

इन्होंने अपने क्षेत्र में दो साल पहले कटंग बाँस के 4 हजार पौधे लगाकर इसकी पूरी मशक्कत के साथ देखभाल की। इसका परिणाम यह निकला कि इन्होंने सब्जी के खेती में पौधा सहारा देने के लिए काम आने वाले 75 हजार रूपये के बाँस के डंडो का उत्पादन कर लिया है।

 

विजय पाटीदार को बाँस के पौधे लगाने की प्रेरणा इस बात से मिली कि परम्परागत फसलों में काफी मेहनत के बावजूद कई बार घाटा सहन करना पड़ता था।

इसलिए वे लगातार इस खोज में लगे रहते थे कि ऐसी कौन-सी फसल पर काम करें, जहाँ कम मेहनत और कम रिस्क में ज्यादा लाभ मिले। इनकी यह खोज बाँस की फसल पर आकर पूरी हुई।

 

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मध्यप्रदेश राज्य बाँस मिशन बाँस के पौधे लगाने पर तीन साल में प्रति पौधा 120 रूपये का अनुदान देता है। इससे किसान की लागत बेहद कम हो जाती है। इसकी खासियत यह भी है कि इस फसल पर कोई बीमारी या कीड़ा नहीं लगता, जिससे महँगी दवा और रासायनिक खाद के उपयोग से मुक्ति मिल जाती है।

 

चार साल में 40 लाख रूपये की मिलती है फसल

बाँस लगाने के चौथे साल से प्रति भिर्रा न्यूनतम 10 बाँस तकरीबन 40 फीट लम्बे प्राप्त हो सकते हैं। इस तरह 40 हजार पौधों से 40 हजार बाँस उपलब्ध हो जाते हैं। प्रति बाँस 100 रूपये के मान से बिक्री होने पर लगभग 40 लाख की फसल मिलेगी। इन बाँसो को खरीददार स्वयं खेत तक आकर ले जाया करते हैं।

बाँस की फसल से चौथे साल में प्रति एकड़ एक हजार क्विंटल बाँस की सूखी पत्ती प्राप्त होती है। इस पत्ती को जमीन में गाड़कर उच्च गुणवत्ता की कम्पोस्ट खाद भी बनाई जाती है, जिसका उपयोग सब्जी और अन्य तरह की खेती में भी कर सकते है।

 

बाँस की कतारो में अन्य फसलों का भी उत्पादन

बाँस की कतारों के बीच में मिर्च, शिमला मिर्च, अदरक और लहसुन की फसल उगाई जा सकती है। बाँस की कतारों में होने से इन फसलों में पानी कम लगता है और गर्मी में विपरीत प्रभाव से बच जाने की वजह से अच्छा उत्पादन होता है। विजय पाटीदार ने इन प्रयोगों को आजमाया भी है। उन्होंने बताया कि बाँस के पौधो की कतारों में इन्टरक्रापिंग का भी प्रयोग किया है।

 

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बाँस की फसल-सोने पर सुहागा

बाँस की फसल से किसानों को ‘सोने पर सुहागा’ होने जैसी बात है। इस तरह के क्षेत्र में शीतलता प्रदान करने के साथ ही कार्बन डाईऑक्साईड के तीव्रता को सोखकर बड़ी मात्रा में मानव जीवन को ऑक्सीजन भी प्रदान करता है अर्थात जलवायु परिवर्तन की संख्या से निजात दिलाने में बाँस की फसल पूरी तरह कारगर है।

 

तीन पीढ़ी के लिए पेंशन की जुगाड़

विजय पाटीदार का कहना है कि कटंग बाँस की उम्र 100 से 110 साल होती है। चौथे साल के बाद अच्छा कटंग बाँस प्राप्त होने लगता है तथा कटाई होने के बाद भी प्रति वर्ष बाँस मिलता रहता है। इस तरह इससे होने वाले आर्थिक लाभ से तीन पीढ़ी तक पेंशन का जुगाड़ हो सकता है।

 

किसानों को दिया संदेश

विजय पाटीदार ने अपने अनुभव साझा कर क्षेत्रीय किसानों को सलाह दी है कि अपने खेत के 10 प्रतिशत हिस्से में बाँस की फसल को जरूर लगाएँ। इससे कम रिस्क में लगातार अधिक मुनाफा मिलेगा।

 

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