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किसानों को लखपती बना रही सतावर की खेती

 

एक एकड़ में हो रही है 6 लाख रुपए तक की कमाई

 

कृषि के क्षेत्र में प्रयोग करने के लिए काफी कुछ है।

 

किसान बदलते दौर में खेती में प्रयोग कर भी रहे हैं। उन्हें इसका लाभ मिल रहा है। यहीं कारण है कि औषधीय पौधों की खेती का प्रचलन काफी तेजी से बढ़ रहा है।

कम लागत में अच्छी कमाई का जरिया बन रहे औषधीय पौधे किसानों को अपनी तरफ आकर्षित कर रहे हैं। कुछ ऐसे औषधीय पौधे हैं, जिनकी खेती से किसानों को एक एकड़ में 6 लाख रुपए तक की कमाई हो रही है। इसी तरह का एक पौधा है सतावर।

 

सतावर या शतावरी आयुर्वेद में एक काफी महत्वपूर्ण पौधा है. इसका शाब्दिक अर्थ होता है सौ पत्ते वाला पौधा. सतावर को कई नामों से जाना जाता है, जिनमें प्रमुख हैं- सतावर, शतावरी, सतावरी, सतमूल और सतमूली.

इसका वानस्पतिक नाम एस्पेरेगस रेसीमोसम है. सतावर औषधीय गुणों से भरपूर एक पौधा है. यह भारत, श्रीलंका और पूरे हिमालय क्षेत्र में पाया होता है.

सतावर में कई शाखाएं होती हैं. यह कांटेदार लता के रूप में एक से दो मीटर तक लंबा होता है. इसकी जड़े गुच्छों की तरह होती हैं.

 

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नर्सरी में तैयार किए जाते हैं पौधे

सतावर की खेती करने के लिए इसकी नर्सरी तैयार की जाती है. नर्सरी तैयार करने के लिए खेत की अच्छे से जुताई करते हैं.

साथ ही इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पहले की फसल के अवशेष खेत में न रह पाएं. खेत की तीन चार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना देते हैं. इसके बाद खेत में जैविक खाद डाल देते हैं.

 

एक हेक्टेयर के लिए 12 किलो बीज की जरूरत

इस औषधीय पौधे की नर्सरी बनाने के लिए 1 मीटर चौड़ी तथा 10 मीटर लंबी क्यारी तैयार करते हैं. क्यारी से कंकड़-पत्थर को निकाल दिया जाता है.

सतावर के बीजों का अंकुरण 60 से 70 फीसदी होता है. करीब 12 किलोग्राम सतावर के बीज से एक हेक्टेयर खेत में रोपाई हो जाती है.

बीजों को क्यारी में 15 सेंटी मीटर नीचे बोकर ऊपर से हल्की मिट्टी से ढक दिया जाता है.

 

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खेत में पानी निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए

बुआई के तुरंत बाद ही सतावर के नर्सरी को सिंचाई की जरूरत पड़ती है. दो महीने के बाद सतावर के पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

सतावर के पौधों की रोपाई के लिए खेत में मोटी मेड़ या नालियां बनाई जाती हैं. इसे बनाकर पौधों को समान दूरी पर लगाई जाता है.

मेड़ों में लगाने से सतावर के पौधे तेजी से वृद्धि करते हैं. यह जड़ वाला पौधा है, इसलिए खेत में पानी की निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए और खेत में वर्षा का पानी जमा नहीं होनी चाहिए.

 

एक तरह से यह सुरक्षित खेती है. रोपाई के 12 से 14 माह बाद जड़ परिपक्व होने लगती है. एक पौधे से करीब 500 से 600 ग्राम जड़ प्राप्त की जा सकती है.

एक हेक्टेयर से औसतन 12 हजार से 14 हजार किलो ग्राम ताजी जड़ प्राप्त की जा सकती है. इसे सुखाने के बाद किसानों को 1 हजार से 1200 किलो ग्राम जड़ मिल जाती है.

किसान बताते हैं कि एक बीघे में 4 क्विंटल सुखी सतावर निकलती है, जिसकी कीमत लगभग 40 हजार के आस पास है. एक एकड़ में 5-6 लाख रुपए तक की कमाई होती है.

 

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