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गेहूं की कटाई के बाद खेतों में डंठल जलाने से होगा बहुत नुकसान

 

इन कामों में करें उनका इस्तेमाल

 

इस वक्त अधिकतर किसान रबी सीजन की फसल गेहूं की कटाई कर रहे हैं. कई राज्यों में गेहूं की कटाई का कार्य पूरा भी हो गया है, तो कई जगह जारी है.

अगर आधुनिक समय की बात करें, तो किसानों के लिए कृषि कार्यों में मशीन के उपयोग करके काफी मदद मिलती है.

 

मगर अब एक नई समस्या भी सामने खड़ी हो जाती है कि अगर कृषि यंत्र से कटाई की गई है, तो उसके बाद खेत में डंठल रह जाता है.

सामान्यत: किसान इन्हें जला देते हैं, लेकिन इससे खेत के साथ-साथ पर्यावरण को भी काफी नुकसान होता है.

 

सरकारी की सख्ती

वैसे तो गेहूं के डंठल और धान की पराली जलाने वाले किसानों पर सरकार काफी सख्ती दिखा रही है. इसके साथ  समस्या के सामाधान को लेकर काम भी चल रहा है.

इसके लिए सरकार की तरफ से किसानों को फसल अवशेष को अन्य कार्यों में उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

जैसे कि किसान खाद बनाने से लेकर गत्ता और घरेलू ईंधन के रूप में इनका इस्तेमाल कर सकते हैं.

 

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हमारे देश में फसल अवशेष का अनुमान

अनुमान लगाया गया है कि देश में खेती से बचे अवशेष लगभग 31 करोड़ 70 लाख टन है. इसमें 55 प्रतिशत से अधिक हिस्सा धान की पराली का होता है. 

धान की पराली को उत्तर पश्चिम राज्यों, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में ज्यादा जलाया जाता है.

इसके अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, असम, बिहार जैसे प्रमुख राज्यों में पराली का उपयोग चारा, घरेलू ईंधन, औद्योगिक कार्यों में किया जाता है.

 

फसल अवशेष जलाने का प्रभाव

खेत में फसल अवशेष जलाने से मनुष्य, मवेशी, मिट्टी और पर्यावरण समेत कई चीजों पर बुरा प्रभाव पड़ता है. कई अध्ययनों में बताया गया है कि इससे कई जीवों के जीवन पर प्रभाव डालता है.

बता दें कि कई ऐसे जीव हैं, जो खेती के लिए लाभकारी साबित हैं. जब फसल अवशेष जलाते हैं, तो ग्रीन हाउस गैस निकलती है.

इनसे धरती का तापमान बढ़ता है और इसके प्रभाव से आने वाले समय में खेती करने में मुश्किलें आती हैं. इसके साथ ही मनुष्य के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है.

 

फसल अवशेष का कैसे करें प्रबंधन

जहां फसल अवशेष जलाए जाते है, वहां की मिट्टी काली पड़ जाती है, साथ ही उसमें मौजूद पोषक तत्वों पर अधिक तापमान का असर दिखाई देने लगता है.

इस कारण खेत में लगने वाली अगली फसलों के लिए जरूरी पोषक तत्वों की मात्रा मिट्टी में काफी कम हो जाती है. इसका सीधा प्रभाव फसल की उत्पादकता में कमी लाता है.

ऐसे में वैज्ञानिक भी इन समस्याओं के समाधान पर लगातार कार्य कर रहे हैं. वह फसल अवशेष जलाने की घटनाओं की जानकारी के लिए सेटेलाइट की मदद ले रहे हैं.

इसके साथ ही किसानों को फसल अवशेष से खाद बनाने, गत्ता, बिजली बनाने समेत दूसरी चीजें बनाने की सलाह दे रहे हैं.

 

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