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धान-गेहूं की जगह एक बार करे इन खास पौधों की खेती

 

मुनाफा इतना कि हो जाएंगे मालामाल

 

अब केंद्र के साथ ही तमाम राज्य सरकारें आयुर्वेद में दवाई बनाने में इस्तेमाल होने वाले औषधीय पौधों की खेती को भी प्रोत्साहित कर रही हैं.

कम उत्पादन के कारण किसानों को अच्छी कीमत मिलती है.

 

देश के किसान आम तौर पर पारंपरिक फसलों की खेती करते हैं. इसमें विशेष रूप से धान, गेहूं, मक्का, गन्ना और कुछ दलहनी व तिहलनी फसलें होती हैं.

तकनीक की कमी और जानकारी के आभाव में किसान नई फसलों की तरफ रुख नहीं कर पाते हैं. हालांकि इस समस्या का सामाधान तो कुछ हद तक हो गया है.

सरकार लगतार किसानों को पारंपरिक फसलों से हटकर अन्य विकल्पों पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. किसानों की आय को दोगुना करने के लिए नए प्रयोग की विशेष जरूरत है.

 

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अब केंद्र के साथ ही तमाम राज्य सरकारें आयुर्वेद में दवाई बनाने में इस्तेमाल होने वाले औषधीय पौधों की खेती को भी प्रोत्साहित कर रही हैं.

गुणाकारी पौधों का आयुर्वेद के अलावा भी अन्य दवाइयों के निर्माण में इस्तेमाल होता है. कम उत्पादन के कारण किसानों को अच्छी कीमत मिलती है.

साथ ही देश-दुनिया में हमेशा मांग बरकरार रहती है. यहीं वजह है कि किसान अब इन औषधीय गुणों से भरपूर पौधों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं और अच्छी कमाई कर मालामाल भी हो रहे हैं. 

 

‘कैश कॉर्प’ अश्वगंधा

अश्वगंधा एक झाड़ीदार पौधा है. इसके फल, बीज और छाल का उपोयग विभिन्न दवाइयों को बनाने में किया जाता है. अश्वगंधा की जड़ से अश्व जैसी गंध आती है.

इसी लिए इसे अश्वगंधा कहा जाता है. सभी जड़ी-बूटियों में सबसे अधिक प्रसिद्ध है. तनाव और चिंता को दूर करने में अश्वगंधा को सबसे फायदेमंद माना जाता है.

बाजार में आसानी से चूर्ण वगैरह मिल जाते हैं. औषधीय गुणों से भरपूर अश्वगंधा की खेती से किसानों को काफी लाभ मिल रहा है. लागत से कई गुना अधिक कमाई होने के चलते ही इसे कैश कॉर्प भी कहा जाता है.

 

लेमनग्रास की खेती कर मोटी कमाई कर सकते हैं किसान

लेमनग्रास को आम बोलचाल की भाषा में नींबू घास कहा जाता है और इसका वैज्ञानिक नाम सिम्बेपोगोन फ्लक्सुओसस है.

लेमनग्रास की खेती कर रहे किसान बताते हैं कि इस पर आपदा का प्रभाव नहीं पड़ता और पशु नहीं खाते तो यह रिस्क फ्री फसल है.

वहीं लेमनग्रास की रोपाई के बाद सिर्फ एक बार निराई करने की जरूरत पड़ती है और सिंचाई भी साल में 4-5 बार ही करनी पड़ती है.

यह किसानों के लिए काफी फायदे का सौदा है. इत्र, सौंदर्य के सामान और साबुन बनाने में भी लेमनग्रास का उपयोग होता है.

विटामिन ए की अधिकता और सिंट्राल के कारण भारतीय लेमनग्रास के तेल की मांग हमेशा बनी रहती है.

 

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300 से 400 रुपए किलो बिकता है अकरकरा

आयुर्वेद में अकरकरा का उपयोग पिछले 400 साल से हो रहा है. औषधीय गुणों से भरपूर अकरकरा की बीज और डंठल की हमेशा मांग बनी रहती है.

किसान इसे 300 से 400 रुपए किलो तक बेचते हैं. दंतमंजन बनाने से लेकर दर्द निवारक दवाओं और तेल के निर्माण में भी इसका इस्तेमाल होता है.

वहीं कुछ लोग दावा करते हैं कि नपुसंकता के इलाज में यह प्रभावी है और प्रजनन क्षमता बढ़ाने में भी मदद करता है.

 

सहजन की खेती में फायदे ही फायदे

सहजन को ड्रम स्टिक भी कहते हैं. यह सब्जी बनाने से लेकर दवाओं के निर्माण तक में इस्तेमाल होता है. भारत के ज्यादातर हिस्से में इसकी बागवानी आसानी से की जा सकती है.

एक बार पौधा लगा देने से कई सालों तक आप इससे सहजन प्राप्त कर सकते हैं. इसके पत्ते, छाल और जड़ तक का आयुर्वेद में इस्तेमाल होता है.

90 तरह के मल्टी विटामिन्स, 45 तरह के एंटी ऑक्सीजडेंट गुण और 17 प्रकार के एमिनो एसिड होने के कारण सहजन की मांग हमेशा बनी रहती है.

सबसे खास बात है कि इसकी खेती में लागत न के बराबर आती है.

 

सतावर की खेती किसानों के जीवन में ला रही बड़ा बदलाव

सतावर या शतावरी के खेती से किसानों को काफी अच्छी कमाई हो रही है. किसानों के लिए मुनाफा का जरिया बन चुके सतावर की एक एकड़ में खेती कर किसान 5-6 लाख रुपए तक की कमाई कर रहे हैं.

शतावर भी औषधीय गुणों से भरपूर एक पौधा है. हालांकि इसके तैयार होने में एक साल से अधिक का समय लगता है.

फसल तैयार हो जाने पर किसानों के लागत से कई गुना ज्यादा का रिटर्न यह देता है.

 

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