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इस पौधे की खेती में लागत 40 हजार और कमाई 6 लाख रुपए

 

क्या करनी पड़ती है तैयारी और क्या है तरीका

 

इसकी जड़े गुणवत्ता से भरपूर होती हैं और आयुर्वेदिक दवाइयों के साथ अन्य उत्पादों में इसका इस्तेमाल किया जाता है.

मध्य प्रदेश की नीमच औषधी मंडी से लेकर देश के कई अन्य मंडियों में खरीद बिक्री की जाती है.

 

सरकार किसानों की आय दोगुना करने के लिए लगातार प्रयासरत है. यहीं कारण है कि उन्हें पारंपरिक खेती से हटकर अलग तरह से खेती करने को प्रेरित किया जा रहा है.

अच्छी कमाई हो सके, इसके लिए फल, सब्जी और औषधीय पौधों की खेती के लिए सरकार किसानों को प्रोत्साहित कर रही है.

औषधीय पौधों की खेती में लागत कम और कमाई ज्यादा है. इसके अलावा इनकी पैदावार कम होने की वजह से मांग हमेशा बनी रहती है और किसानों को अच्छी कीमत मिलती है.

 

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इसी तरह का एक पौधा है शतावरी. इसे सतावर भी कहा जाता है. अलग-अलग क्षेत्रों में इसे अलग नाम से बुलाया जाता है.

आयुर्वेद में शतावरी को एक महत्वपूर्ण पौधा माना जाता है. इसमें ऐसे गुण पाए जाते हैं, जो कई रोगों के निदान में काम आता है.

कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि इसकी खेती पूरे हिमालयी क्षेत्रों के अलावा भारत और श्रीलंका में प्रमुखता से होती है.

खेती करने वाले किसानों के मुताबिक, एक बीघे में 4 क्विंटल सुखी शतावरी निकलती है, जिसकी कीमत लगभग 40 हजार के आस पास है. एक एकड़ में 5-6 लाख रुपए तक की कमाई होती है.

 

कई शाखाओं वाला पौधा है शतावरी

शतावरी कई शाखाओं वाला पौधा है. यह दो मीटर तक लंबा होता है और जड़े गुच्छों की तरह होती है. फसल तैयार होने पर जड़ों को ही बेचा जाता है.

इसकी जड़े गुणवत्ता से भरपूर होती हैं और आयुर्वेदिक दवाइयों के साथ अन्य उत्पादों में इसका इस्तेमाल किया जाता है.

मध्य प्रदेश की नीमच औषधी मंडी से लेकर देश के कई अन्य मंडियों में खरीद बिक्री की जाती है.

 

धान की तरह होती है शतावरी की रोपाई

इस पौधे की रोपाई भी धान की तरह ही होती है यानी पहले नर्सरी में पौध को तैयार किया जाता है और फिर पहले से तैयार खेत में रोपाई की जाती है.

नर्सरी बनाने के लिए 1 मीटर चौड़ी तथा 10 मीटर लंबी क्यारी तैयार करते हैं. क्यारी से कंकड़-पत्थर को निकाल दिया जाता है.

शतावरी के बीजों का अंकुरण 60 से 70 फीसदी होता है. करीब 12 किलोग्राम शतावरी के बीज से एक हेक्टेयर खेत में रोपाई हो जाती है.

बीजों को क्यारी में 15 सेंटी मीटर नीचे बोकर ऊपर से हल्की मिट्टी से ढक दिया जाता है.

 

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दो महीने बाद रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं पौधे

दो महीने के बाद शतावरी के पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं. शतावरी के पौधों की रोपाई के लिए खेत में मोटी मेड़ या नालियां बनाई जाती हैं.

इसे बनाकर पौधों को समान दूरी पर लगाई जाता है. मेड़ों में लगाने से शतावरी के पौधे तेजी से वृद्धि करते हैं.

यह जड़ वाला पौधा है, इसलिए खेत में पानी की निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए और खेत में वर्षा का पानी जमा नहीं होनी चाहिए.

 

चूर्ण बनाकर बेचने पर ज्यादा मुनाफा

रोपाई के 12 से 14 माह बाद जड़ परिपक्व होने लगती है. एक पौधे से करीब 500 से 600 ग्राम जड़ प्राप्त की जा सकती है.

एक हेक्टेयर से औसतन 12 हजार से 14 हजार किलो ग्राम ताजी जड़ प्राप्त की जा सकती है. इसे सुखाने के बाद किसानों को 1 हजार से 1200 किलो ग्राम जड़ मिल जाती है.

किसान इसे सीधे बाजार में बेच सकते हैं. अगर ज्यादा मुनाफा कमाना हो तो जड़ को चूर्ण बनाकर बेचा जा सकता है.

 

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