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इन साग-सब्जियों की खेती से किसानों को हो सकता है दोगुना लाभ

अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

 

अगर आप सब्जियों की खेती करना चाहते हैं, तो आप इन सब्जियों को उगाकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं….

 

प्रकृति के दिए गए वरदानों में पेड़-पौधों का महत्वपूर्ण स्थान है.

इनसे न केवल भोजन संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ती होती है बल्कि कई पौधे औषधीय गुण भी रखते हैं.

सीजन के साथ खेती करने वाले किसानों के लिए ये आय का अच्छा स्त्रोत बन सकते हैं.

 

करेला

यह भी एक हरी सब्जी है. यह ऐसी फसल है जिसे कहीं भी और किसी भी मौसम में उगाया जा सकता है.

इसकी प्रति एकड़ लागत 20-25 हजार होती है. एक एकड़ में 50-60 क्विंटल तक उपज मिल जाती है.

इसकी खेती किसानों को लागत से ज्यादा मुनाफा देती है.

औषधीय गुणों की बात करें तो आयुर्वेदाचार्य डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए करेले के सेवन को रामबाण इलाज बताते हैं.

वहीं यह पाचन तंत्र की खराबी, भूख की कमी, बुखार और आंखों के रोगों से भी बचाता है.

मेथी

भारत के लगभग प्रत्येक घर में मेथी लोकप्रिय भाजी मानी जाती है. लोग बड़े चाव से इसे खाना पसंद करते हैं.

मेथी के पत्तों और बीजों में औषधीय गुण भी होते हैं.

चिकित्सकों का मत है कि उच्च रक्तचाप और कोलैस्ट्रॉल को कंट्रोल करने में मेथी का सेवन सहायक है.

मेथी की खेती के लिए अक्तूबर का आखिरी सप्ताह और नवंबर का पहला सप्ताह उचित माना जाता है.

मेथी के साथ हरी मूंग, मक्की और रिजका की खेती आसानी से की जा सकती है.

 

हल्दी

यह हमारे दैनिक भोजन का एक बहुत बड़ा हिस्सा है.

भारत के लगभग प्रत्येक घर में इसका इस्तेमाल भोजन को स्वादिष्ट और अच्छा बनाने के लिए किया जाता है.

किसान इसकी खेती से प्रति एकड़ लगभग 100-150 क्विंटल हल्दी प्राप्त कर सकते हैं.

हल्दी का प्रयोग दादी मां के घरेलू उपचार में भी जाना जाता है.

इसका प्रयोग घाव होने या संक्रमण फैलने की स्थिति में लाभदायक होता है.

चिकित्सक किडनी और लीवर की समस्याओं से बचने के लिए इसके इस्तेमाल की सलाह देते हैं.

 

सरसों

यह रबी सीजन की प्रमुख तिलहनी फसल है. इसका भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है.

मध्य और उत्तर भारत के प्रत्येक गांव में लाहा-राई या सरसों उगायी जाती है.

दूसरी फसलों की अपेक्षा यह फसल कम सिंचाई में ही तैयार हो जाती है.

सरसों के साथ मसूर, चना और बथुआ भी उगाया जा सकता है.

सरसों के तेल का प्रयोग दादी मां के घरेलू नुस्खों और एंटीसेप्टिक के रूप में किया जाता है.

आयुर्वेद विशेषज्ञ इसका उपयोग त्वचा रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को करने की सलाह देते हैं.

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