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मंडी हड़ताल से मुसीबत में किसान

ऐसा लगता है जैसे किसानों का समस्याओं से चोली-दामन का साथ है. एक समस्या खत्म होती नहीं कि दूसरी सामने आ जाती है.

अति वर्षा से खरीफ में सोयाबीन फसल की बर्बादी से किसान अभी उबर भी नहीं पाए कि उनके सामने अब बची -खुची सोयाबीन फसल को बेचने में परेशानी आ रही है, क्योंकि मंडी में अनाज व्यापारियों के साथ ही मंडी कर्मचारियों की हड़ताल जारी है. ऐसे में रबी फसल की तैयारी के लिए नकद की कमी से जूझता किसान परेशान है .

मंडी के बाहर खुले में व्यापारियों द्वारा उपज का बहुत कम मूल्य लगाया जा रहा है. इस मंडी हड़ताल ने किसानों को मुसीबत में डाल दिया है.

 

उल्लेखनीय है कि गत 24 सितंबर से अनाज व्यापारियों की और 25 सितंबर से फिर शुरू हुई मंडी कर्मचारियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल से लक्ष्मी नगर और छावनी अनाज मंडी में एक सप्ताह से सन्नाटा पसरा हुआ है. किसान ,मंडी बंद होने से अपनी उपज नहीं बेच पाने से परेशान हो रहे हैं.

 

बता दें कि मंडी व्यापारी मंडी शुल्क को 50 पैसे प्रति सैकड़ा करने और निराश्रित शुल्क बंद करने की प्रमुख मांग को लेकर हड़ताल पर हैं, तो दूसरी तरफ अपने भविष्य को असुरक्षित देखते हुए संयुक्त संघर्ष मोर्चा, मंडी बोर्ड, भोपाल के आह्वान पर प्रदेश के समस्त मंडी कर्मचारी मॉडल एक्ट का विरोध कर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं.

 

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मंडी कर्मचारियों की लंबित मांगों पर कैबिनेट बैठक में कोई निर्णय नहीं लेने से मंडियां जल्दी खुलने की सम्भावना नहीं होने से किसान चिंतित हैं.हड़ताल जारी रहने से जहां एक ओर मंडी बोर्ड को करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान हो रहा है, वहीं किसानों को, मंडी बंद होने से खरीफ की फसल बेचने और रबी सीजन की बुवाई की दिक्कत आ रही है .

 

किसान की उपज नहीं बिकने से किसान परेशान है. इस समय व्यापारियों की हड़ताल व मंडी कर्मचारियों की हड़ताल के चलते फड लगा कर उपज की खरीदी करने वाले फड़ियों को हड़ताल का सीधा फायदा मिल रहा है. किसान अपनी आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए अपनी उपज औने -पौने दाम पर बेचने को मजबूर है. बाहरी व्यापारी अपनी मर्जी के मुताबिक किसान की फसल के भाव दे रहे हैं,जिससे किसानों को परेशानी के अलावा आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है.

 

केंद्र सरकार के नए कृषि कानून से पहले मंडियों में किसान को एमएसपी मिलने की कुछ तो गारंटी थी , लेकिन अब कानून ही बदल जाने और बाहरी व्यापारियों को उपज की खरीदी कहीं पर भी करने पर कहीं टैक्स नहीं देने से अब बाहरी व्यापारी पर सरकार का अंकुश भी खत्म हो गया. इससे नुकसान किसानों का ही होगा.

 

source : krishakjagat

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