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किसानों के लिए सुख-समृद्धि लेकर आई हल्दी

 

कोरोना महामारी के कारण लगभग सभी किसानों को घाटा सहना पड़ा है, लेकिन लखनऊ जिले की एक तहसील मलिहाबाद में किसानों को भारी मुनाफा हुआ है. दरअसल यहां के किसान हल्दी की खेती करते हैं.

 

लॉकडाउन में इनकी 15-20 रूपए किलो बिकने वाली हल्दी 60-70 रुपए प्रति किलो तक बिकी. ऐसा इसलिए हो सका, क्योंकि यहां के किसानों ने केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान से प्रशिक्षण लेकर खेती का काम किया. चलिए आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं.

इतना होता है उत्पादन

प्रशिक्षण प्राप्त यहां के किसानों को ‘नरेंद्र देव हल्दी -2’  किस्म के बीज उपलब्ध कराए गए थे, जिसके परिणाम भी चौंकाने वाले आए. किसानों को यहां प्रति एकड़ से 40-45 क्विंटल हल्दी की उपज मिली.

 

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इस बारे में बात करने पर किसानों ने बताया कि हल्दी को भारत का गोल्डन केसर भी कहा जाता है, जो पौष्टिक तत्वों से भरपूर है. लेकिन हैरानी की बात है कि कई एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी बायोटिक और एंटी वायरल गुणों से भरपूर होने के बाद भी लोग इसकी खेती से आनाकानी करते हैं.

 

हल्दी से बनाते हैं अन्य तरह के उत्पाद

शुरू में गांव के कुछ ही किसानों हल्दी खेती के लिए तैयार हुए, लेकिन फिर धीरे-धीरे मुनाफा देख क्षेत्र के अन्य लोग भी इस काम से जुड़ने लगे. वैसे ये बात दिलचस्प है कि खेती से तो यहां किसानों को मुनाफा होता ही है, लेकिन वो साथ में अन्य कई तरह के बिजनेस से भी पैसे कमा लते हैं.

यहां के किसान न सिर्फ हल्दी की खेती करते हैं, बल्कि उससे कई तरह के उत्पाद बनाकर उन्हें स्वयं सहायता समूह की मदद से बाजार में बेचते भी हैं. जी हां, ग्रामीण महिलाएं यहां हल्दी से चिप्स और फेस वॉश बनाती है.

 

मार्केटिंग की समझ

क्षेत्र में लोगों ने केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान से मार्केटिंग की तकनीक भी समझी है. यहां के किसान हल्दी से बनने वाले उत्पादों को एक ब्रांड की तरह बेचते हैं. कई उत्पादों का नाम तो मलिहाबाद के नाम पर ही ऱखा गया है. जैसे मलिहाबाद हल्दी चिप्स, मलिहाबाद हल्दी साबुन आदि.

 

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कई शहरों में फैल रहा है बिजनेस

मलिहाबाद की हल्दी आज बहुत अधिक प्रसिद्ध हो रही है. इतना ही नहीं हल्दी से बनने वाले उत्पाद भी कई शहरों में पहुंच रहे हैं.

यहां के एक किसान हरसदचंद्र मेहता ने बताया कि प्रशिक्षण के बाद खेती और हल्दी उत्पादों से फिलहाल मुनाफा हो रहा है, लेकिन अगर लॉकडाउन न लगा होता, तो शायद फायदा अधिक होता.

 

स्त्रोत : कृषि जागरण 

 

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