भोपाल। मिट्टी की सेहत का हाल जानने के लिए अब घंटों इंतजार नहीं करना पड़ेगा। भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान (आइआइएसएस) भोपाल ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जो चंद सेकंड में ही बता देगी कि मिट्टी में कौन से पोषक तत्वों की कमी या बहुलता है।
इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी नामक इस तकनीक में 12 तरह की जांच कुछ ही सेकंड में हो जाएगी, जबकि प्रयोगशाला में पारंपरिक तरीके में एक तत्व की जांच में ही ढाई से तीन घंटे लगते हैं।
इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी से हो सकेगी 12 तरह के तत्वों की जांच
संस्थान के विज्ञानी पांच साल से विश्व कृषि वानिकी केंद्र नैरोबी (केन्या) के साथ मिलकर इस तकनीक पर काम कर रहे थे। इस दौरान प्रयोग के तौर पर दो हजार से अधिक नमूनों की जांच की गई। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने भी तकनीक की सराहना की है।
रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग और जैविक खाद नहीं डालने से मिट्टी में पोषक तत्वों जैसे जिंक, कार्बन, आयरन, मैंगनीज, नाइट्रोजन, फास्फोरस जैसे तत्वों की कमी हो रही है।
यही तत्व मिट्टी को उर्वर बनाते हैं और पैदावार में मदद करते हैं। ऐसे में उसकी सेहत पर नजर रखने में इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी प्रयोगशाला जांच का उत्तम विकल्प हो सकती है।
विश्व कृषि वानिकी केंद्र की मदद से विकसित हुई तकनीक
आइआइएसएस में मृदा भौतिकी विभाग के अध्यक्ष डा. आरएस चौधरी ने बताया कि विश्व कृषि वानिकी केंद्र नैरोबी के साथ इस तकनीक पर काम किया जा रहा था।
इस कड़ी में मध्य प्रदेश सहित देश के अन्य क्षेत्रों से मिट्टी के दो हजार से अधिक नमूने एकत्र किए गए । उनके भौतिक और रासायनिक गुणों की जांच की गई। विशेष मशीन केन्या से मंगाई गई, जबकि जांच के लिए अन्य संसाधन यहीं से जुटाए गए।
पहले चरण में मिट्टी की उपजाऊ क्षमता, उसमें मौजूद तत्वों की स्थिति आदि की जांच की गई। इसके अच्छे परिणाम सामने आए।
भोपाल के आइआइएसएस के निदेशक डा. अशोक के. पात्रा ने कहा कि इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक से किसान को तुरंत बता सकेंगे कि वह मिट्टी में कौन से तत्वों की कमी को दूर करें। यह अच्छी तकनीक है।
अधिकारियों के मुताबिक इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक का परीक्षण पूर्ण हो चुका है। अब इसे सरकारी स्तर पर अनुमति के लिए भेजा जाएगा और वहां से देशभर की प्रयोगशालाओं के लिए अनुशंसित किया जाएगा। किसानों को इसका लाभ मिलने में कुछ वक्त लगेगा।
ऐसे काम करती है तकनीक –
केन्या से मंगवाई गई मशीन में मिट्टी के कुछ कण रखे जाते हैं। इसके बाद विशेष रेडिएशन डाला जाता है। यह मिट्टी को स्कैन करती है। फिर विशेष सॉफ्टवेयर की मदद से कंप्यूटर पर पैमाने का ग्राफ बनता है। इससे मिट्टी में मौजूद तत्वों की कमी या अधिकता की जानकारी मिल जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में 20 से 30 सेकंड ही लगते हैं। इसमें एक साथ 12 तरह के तत्वों की जांच हो जाती है।
पारंपरिक तरीके में प्रत्येक तत्व की जांच में ना केवल ढाई से तीन घंटे का समय लगता है बल्कि इसमें अधिक खर्चा भी होता है। हालांकि, सरकारी लैब में इसकी मुफ्त में जांच की जाती है।
इन तत्वों की जांच: कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, मैंगनीज, रेत की मात्रा, लवणता, अम्लीयता, पीएच वैल्यू, मिट्टी की जल धारण क्षमता, टिकाऊपन आदि की जांच संभव है।
स्त्रोत: jagran
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