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अप्रैल-मई के महीने में किसान करें इन फसलों की बुवाई

 

60 दिनों में कमाए लाखों रुपए

 

खेती किसानी का कार्य वर्ष भर चलता रहता है। सिंचाई की उपलब्धता होने पर वर्ष भर फसलें ली जा सकती है।

अप्रैल एवं मई के महीने में बोई जाने वाली प्रमुख फसलों के बारे में जानिए।

 

अप्रैल महीने का आखिरी सप्ताह शुरू हो चुका है रबी फसलों की कटाई का कार्य लगभग पूरा हो चुका है खेत खाली हो चुके हैं ग्रीष्मकालीन जुताई का काम शुरू हो चुका है, वहीं जिन किसानों के पास सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था है, वह अपने खेतों में मूंग एवं अन्य सब्जियों की बुवाई कर चुके हैं।

 

देश में इस वक्त रबी की फसलों की कटाई हो चुकी है। अब अगली फसल खरीफ की है, जो जून और जुलाई में बोई जानी है।

इन दो से तीन महीने के बीच खेत को खाली रखने से बेहतर है कि किसान कुछ फसलों की खेती करके अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं।

मई के महीने में बोई जानी वाली कई फसलें ऐसी हैं, जिनके विकास में बेहद कम समय लगता है।

इन फसलों की बुवाई कर किसान कम समय और कम लागत में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

 

मूंगफली की खेती

मूंग की खेती की तरह किसान अप्रैल के अंतिम सप्ताह से लगाकर मई माह के प्रथम सप्ताह तक मूंगफली की बुवाई कर सकते हैं।

स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद होने की वजह से बाजार में इसकी कीमत अच्छी बनी रहती है।

अभी तक कृषक केवल बरसाती मौसम में ही खरीफ फसल के रूप में मूंगफली की बोवनी करते थे और पैदावार लेते थे।

लेकिन जिन किसानों के पास पर्याप्त पानी की सुविधा है वे गर्मियों के दिनों में भी तीसरी फसल के रूप में मूंगफली की पैदावार ले सकते हैं।

यह प्रयोग कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने किया है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार गर्मी में मूंगफली की खेती की जा सकती है।

 

किसान गर्मियों में भी मूंगफली की खेती करने लगे

पहले किसानों में यह भ्रम था कि गर्मियों में मूंग व उड़द के अलावा कोई फसल नहीं हो सकती है।

आमतौर पर गर्मी में मूंगफली जुताई, बोवनी, बीज, खाद, सिंचाई एवं कटाई पर रुपए 3267 का खर्च आता है।

एक बीघा में कम से कम 2.5 क्विंटल फली की उपज निकलती है तो रुपए 4000 प्रति क्विंटल के भाव से कुल रुपए 10000/- प्रति बीघा कुल लाभ प्राप्त होता है।

यदि लागत घटा दिया जाए तो रुपए 6733/- प्रति बीघा शुद्ध लाभ लिया जा सकता है।

 

दोमट मिट्टी वाले खेत में करें मुंगफली की बुआई

बसंतकालीन मुंगफली की बुआई के लिए अच्‍छी जल निकासी और दोमट मिट्टी वाले खेत का चयन करना चाहिए।

अ’छी पैदावार के लिए एसजी 84 और एम 722 प्रजाति के बीज उपयुक्त होता है।

इसकी फसल अगस्त के अंतिम सप्ताह से लेकर सितंबर के पहले सप्ताह तक तैयार हो जाता है।

38 किग्रा मुंगफली के स्वस्थ दाना बीज को 200 ग्राम थीरम में उपचारित करने के बाद राइजोवियम जैव खाद से उपचारित कर लेना चाहिए।

इसके बाद एक फिट की दूरी पर कतार में बुआई करनी चाहिए। बीज से बीज की दूरी नौ इंच तक रखनी चाहिए।

 

साठी मक्का की खेती

उत्तर भारत के कई राज्यों में मक्का की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। पंजाब तो इसकी खेती के लिए मशहूर भी है।

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, अप्रैल व मई के महीने में मक्का की साठी किस्म को लगाकर बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं।

 

गेहूं की कटाई के बाद खाली हुए खेत में साठी मक्के की बुआई कर किसान भाई अच्‍छा मुनाफा कमा सकते हैं।

खास बात यह है कि खरीफ की बुआई का सीजन शुरू होने तक साठी मक्के की फसल तैयार हो जाती है।

अपै्रल का पूरा महीन एवं मई महीने का प्रथम सप्ताह साठी मक्के की बुआई के लिए उपयुक्त होता है।

इन महीनों में सूरजमुखी, बसंतकालीन मुंगफली, उड़द और मुंग की भी खेती के लिए भी उपयुक्त होता है।

 

साठी मक्के का पंजाब साठी

1 बीज बुआई के लिए उपयुक्त होता है। कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार के वैज्ञानिक डा. एसके तोमर बताते हैं कि अपै्रल की गर्मी में भी पंजाब साठी – 1 की पैदावार अ’छी होती है और 60 से 70 दिन के अंदर फसल पक कर तैयार हो जाती है।

इसकी बुआई कतार में करनी चाहिए। कतार से कतार के बीच की दूरी एक फिट तथा बीज से बीज की दूरी आधा फिट रखना उपयुक्त होता है।

इससे सिंचाई के साथ ही निराई-गुड़ाई में भी आसानी होती है। बुआई से पहले बीज को वैवस्टीन उपचारित कर लेना चाहिए।

 

बेबी कॉर्न की खेती

आज के वक्त बेबी कॉर्न की खेती करना किसानों के फायदे का सौदा हो सकता है।

युवाओं से लेकर बुजुर्ग तक इसे बड़े चाव से खाते हैं। ऐसे में बाजार में इसकी मांग और कीमत अच्छी बनी रहती है।

किसान इस फसल की खेती करके मात्र 60 दिनों में मुनाफा कमा सकते हैं।

 

बेबीकॉर्न की खेती के लिए पर्याप्त जीवांशयुक्त दोमट मृदा अच्छी होती है।

पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा शेष जुताई देसी हल/रोटावेटर या कल्टीवेटर द्वारा करके पाटा लगाकर खेत को तैयारी कर लेना चाहिए।

बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी के साथ–साथ खेत पलेवा करके तैयार करना चाहिए।

 

बेबीकार्न की खेती के लिए कम समय में पकने वाली, मध्यम ऊँचाई की एकल क्रांस संकर किस्में अधिक उपयुक्त होती है।

उत्तर भारत में बेबीकार्न फरवरी से नवंबर के मध्य कभी भी बोया जा सकता है।

बुवाई मेड़ों के दक्षिणी भाग में करनी चाहिए तथा मेड़ से मेड़ एवं पौधे से पौधे की दुरी 60 से.मी. × 15 से.मी. रखनी चाहिए।

विभिन्न किस्मों के बीजों के आकार के अनुसार प्रति हैक्टेयर 22–25 किलोग्राम बीज दर उपयुक्त होती है।

 

इस बात का ध्यान रखें किसान

किसानों के लिए जरूरी है कि वह अपने यहां की जलवायु और समय के अनुसार सही फसल की खेती का चुनाव करें।

किसान अगर इन सभी फसलों की खेती सही तरीके से करता है तो आने वाले 60 दिनों में वह लाखों का मुनाफा हासिल कर सकता है।

source : choupalsamachar

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