गेहूं की फसल को पीला रतुआ रोग से बचाने के लिए किसान उठायें यह कदम

देश में अधिकांश स्थानों पर गेहूं की बुआई का काम पूरा हो गया है, अब किसानों को गेहूं की अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए उसमें लगने वाले कीट-रोगों से बचाने की आवश्यकता है।

भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान, करनाल के द्वारा जारी सलाह के मुताबिक यह मौसम गेहूं की फसल में पीला रतुआ रोग के विकास और इसके प्रसार के लिए अनुकूल है।

ऐसे में किसानों को पीला रतुआ रोग के प्रकोप को देखने के लिए नियमित रूप से अपनी फ़सल का दौरा करना चाहिए।

संस्थान की ओर से किसानों को सलाह दी गई है कि वे पीला रतुआ रोग के लक्षणों की पुष्टि के लिए गेहूं वैज्ञानिकों/ विशेषज्ञों/ विस्तार कार्यकर्ताओं को सूचित करें या उनसे परामर्श करें क्योंकि कभी-कभी पत्तियों का पीलापन रोग के अलावा अन्य कारकों के कारण भी हो सकता है।

यदि किसान अपने गेहूं के खेतों में पीले रतुआ को देखते हैं, तो निम्नलिखित उपाय को अपनायें।

 

किसान इस तरह करें पीला रतुआ रोग की पहचान

पीला रतुआ उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र और उत्तरी पश्चिमी मैदानी क्षेत्र का मुख्य रोग है।

रोग का प्रकोप होने पर पत्तियों का रंग फीका पड़ जाता है व उन पर बहुत छोटे पीले बिन्दु नुमा फफोले उभरते है पूरी पत्ती पीले रंग के पाउडरनुमा बिंदुओं से ढक जाती है। पत्तियों पर पीले से नारंगी रंग की धारियों आमतौर पर नसों के बीच के रूप में दिखाई देती है।

संक्रमित पत्तियों का छूने पर उँगलियों और कपड़ों पर पीला पाउडर या धूल लग जाती है।

पहले यह रोग खेत में 10-15 पौधे पर एक गोल दायरे के रूप में हो कर बाद में पूरे खेत में फैलता है।

ठंडा और आद्र मौसम परिस्थिति, जैसे 6 डिग्री से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान, वर्षा, उच्च आद्रता, ओस, कोहरा आदि होने से यह रोग फसल में तेजी से फैलता है।

 

पीला रतुआ रोग लगने पर करें इन दवाओं का छिड़काव

पीला रतुआ के प्रसार को रोकने के लिए संक्रमण के केंद्र पर प्रिपिकोनाजोल 25 EC @ 0.1 प्रतिशत या टेबूकोनाजोल 50% + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% WG @ 0.06 प्रतिशत का एक छिड़काव करें।

किसानों को फसल पर तब छिड़काव करना चाहिए जब मौसम साफ़ हो यानी बारिश न हो, कोहरा/ओस आदि न हो।

किसानों को सलाह दी जाती है कि वे दोपहर में छिड़काव करें। वहीं यदि आने वाले दिनों में वर्षा की सम्भावना हो तो उस स्थिति में किसान किसी भी प्रकार का छिड़काव ना करें।

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