गेहूं-जौ की खेती
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक किसी भी फसल की बुवाई करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बीज पुराना न हो.
नई प्रजातियों में पैदावार अच्छी होती है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के शिमला स्थित क्षेत्रीय केंद्र की ओर से किसानों के लिए सब्जी आधारित कृषि प्रणाली में गेहूं एवं जौ की किस्मों के एकीकरण कार्यक्रम की शुरुआत की गई.
इस मौके पर सेंटर के प्रमुख डॉ. केके प्रामाणिक ने किसानों को बताया कि कैसे वे शोध कार्यों से फायदा उठा सकते हैं.
जबकि डॉ. धर्मपाल ने खाद्यान्न फसलों में गेहूं की जानकारी दी. बताया कि जलवायु के अनुरूप कौन सी किस्म किसान लगा सकते हैं.
उन्होंने वैज्ञानिक तरीके से गेहूं उगाने की जानकारी दी.
कार्यक्रम में कृषि वैज्ञानिक डॉ. मधु पटियाल ने गेहूं एवं जौ की संस्थान द्वारा विकसित नवीनतम एवं रोग प्रतिरोधी प्रजातियों के बारे में बताया.
साथ ही साथ किसानों को गेहूं और जौ को वैज्ञानिक विधि से उगाने की सलाह दी.
जिसमें कतारों में बिजाई करना, उपयुक्त खाद और बीज की मात्रा आदि के बारे में बताया गया. ताकि किसानों की आय में वृद्धि हो सके.
गुणवत्ता वाले बीजों पर जोर
कार्यक्रम के दौरान पहले वैज्ञानिकों ने किसानों के खेतों का निरीक्षण किया. खेत का चुनाव किया गया उसके बाद वैज्ञानिक तरीके से खेत की तैयारी की गई.
गेहूं एवं जौ की खेती के लिए बैड तैयार किया और वैज्ञानिक विधि से उचित दूरी पर प्रजातियां लगाई गईं.
इसके बाद फसल के रखरखाव में बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में किसानों को अवगत कराया.
गुणवत्ता वाले बीज के प्रयोग पर किसानों को विशेष प्रोत्साहित किया गया.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक किसी भी फसल की बुवाई करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बीज पुराना न हो.
नई प्रजातियों में पैदावार अच्छी होती है.
किसानों को दिया गया गेहूं और जौ का बीज
कार्यक्रम में किसानों को जौ की प्रजाति बीएच एस 400 और गेहूं की प्रजाति एच एस 562 का बीज भी दिया गया.
साथ में गेहूं और जौ की किसान प्रशिक्षण पुस्तिका का भी वितरण किया गया.
प्रशिक्षण में फील्ड विजिट के दौरान किसानों की शंकाओं का उचित समाधान किया गया.
येल्लो जिप्सम के इस्तेमाल से पैदावार में वृद्धि के निरीक्षण के लिए गेहूं और जौ के परिक्षण भी लगाए गए.
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