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भिंडी की खेती के लिए अपनाएं ये विधि

 

होगा बंपर मुनाफा

 

हरी सब्जियों की मांग बाजारों में सालभर रहती है. इसका मुख्य कारण हरी सब्जियों से होने वाले लाभ हैं.

ऐसे में अगर कोई भी किसान हरी सब्जी की खेती करता है, तो यह उसके लिए मुनाफे का सौदा बन सकता है.

बाजारों में हरी सब्जियों की डिमांड इन दिनों काफी ज्यादा है. इसके चलते आज हम बात गर्मियों में भिन्डी की खेती पर बात करेंगे.

 

बता दें कि भिन्डी एक लोकप्रिय सब्जी है, जिसे लोग लेडी फिगर या ओकरा के नाम से भी जानते हैं. भिन्डी की अगेती फसल लगाकर किसान भाई अधिक लाभ कमा सकते हैं.

मुख्य रुप से भिन्डी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवणों जैसे कैल्शियम, फास्फोरस के अतिरिक्त विटामिन- ए, बी, सी, थाईमीन और रिबोफ्लेविन भी पाया जाता है.

इसमें विटामिन ए और सी की पर्याप्त मात्रा होती है. इसके फल में आयोडीन की मात्रा अधिक होती है, जिससे यह कब्ज रोगी के लिए विशेष गुणकारी होता है.

 

भूमि व खेत की तैयारी

भिन्डी के लिये दीर्घ अवधि का गर्म तथा नम वातावरण सबसे उन्नत माना जाता है.

इसकी खेती के लिए 27 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है, लेकिन 17 डिग्री सेंटीग्रेट से कम पर बीज अंकुरित नहीं हो पाता है.

यह फसल ग्रीष्म और खरीफ, दोनों ही ऋतुओं में उगाई जाती है. भिन्डी को उत्तम जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में उगाया जा सकता है.

इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच मान 7.0 से 7.8 होना उपयुक्त रहता है.

भूमि की दो से तीन बार जुताई कर भुरभरी कर तथा पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए.

 

भिन्डी की उन्नत किस्में

भिन्डी की खेती से अधिक पैदावार के लिए अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्मों का चयन करना चाहिए.

फसल की गुणवत्ता और उत्पादन इसी पर आधारित होती है. इसके साथ ही उस किस्म की विशेषताओं और उपज की जानकारी होना भी आवश्यक है.

कुछ प्रमुख किस्में इस प्रकार है, जैसे- हिसार उन्नत, वी आर ओ- 6, पूसा ए- 4, परभनी क्रांति, पंजाब- 7, अर्का अनामिका, वर्षा उपहार, अर्का अभय, हिसार नवीन, एच बी एच और पंजाब- 8 आदि हैं.

 

प्ररोह और फल छेदक

इस कीट का प्रकोप वर्षा ऋतु में फसलों पर अधिक होता है. शुरुआत में इल्ली कोमल तने में छेद करती है, जिससे तना सूख जाता है.

फूलों पर इसके आक्रमण से फल लगने के पूर्व फूल गिर जाते हैं. फल लगने पर इल्ली छेदकर उनको खाती है, जिससे फल मुड जाते हैं तथा खाने योग्य नहीं रहते हैं.

 

रोकथाम

इसके नियंत्रण के लिए क्युनालफास 25 प्रतिशत ई सी या क्लोरपायरिफॉस 20 प्रतिशत ई सी या प्रोफेनफास 50 प्रतिशत ई सी की 2.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी के मान से छिडकाव करें.

इसके बाद आवश्यकतानुसार छिड़काव को दोहराएं.

 

हरा तेलामोयला एवं सफेद मक्खी

ये सूक्ष्म आकार के कीट पत्तियों, कोमल तने और फल से रस चूसकर नुकसान पहुंचाते है.

 

रोकथाम

इसके लिए के लिए आक्सी मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई सी या डायमिथोएट 30 प्रतिशत ई सी की 1.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस एल या एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एस पी की 5 मिलीलीटर मात्रा को प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. इसके बाद आवश्यकतानुसार छिड़काव को दोहराएं.

 

रेड स्पाइडर माइट

यह माइट पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर भारी संख्या में कॉलोनी बनाकर रहता है.

यह अपने मुखांग से पत्तियों की कोशिकाओं में छिद्र करता है. इसके फलस्वरुप जो द्रव निकलता है, उसे माइट चूसता है.

क्षतिग्रस्त पत्तियां पीली पडकर टेढ़ी मेढ़ी हो जाती हैं. अधिक प्रकोप होने पर संपूर्ण पौधा सूख कर नष्ट हो जाता है.

 

रोकथाम

इसके लिए डाइकोफॉल 18.5 ई सी की 2.0 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर या घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें, फिर आवश्यकतानुसार छिड़काव को दोहराएं.

किसानों भाई इन तमाम विधियों का इस्तेमाल कर भिन्डी की उन्नत खेती कर सकते हैं.

इसके साथ ही ध्यान रखना होगा कि जहाँ वो इस फसल की खेती कर रहे हैं, वो फसल के अनुकूल है या नहीं.

source : krishijagranhindi

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