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खाद को लेकर फुल एक्शन में आई सरकार

 

कई जगह पर ताबड़तोड़ छापेमारी

 

पुलिस ने अवैध रूप से रखी गई डीएपी खाद की 640 बोरी पकड़ी है.

चिलौली रोड पर बने गोदाम से पुलिस ने बोरियां पकड़ी है.

 

किसानों की परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही है. पहले बिजली और अब खाद की कमी ने किसानों की नींद उड़ा दी है.

देश में कई बड़े राज्यों में किसानों सुबह 4 बजे से ही खाद के लिए लंबी लाइन में लग रहे है. लेकिन, अब सरकार इसको लेकर फुल एक्शन में आ गई है.

कई राज्य सरकारों ने बड़े-बड़े खाद व्यापारियों के गोदाम पर छापेमारी शुरू कर दी है. ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश में आया है.

 

मध्य प्रदेश सरकार ने खाद व्यापारी की दुकान सील की तो व्यापारी ने किसी अन्य स्थान पर डीएपी खाद उतरवाई.

पुलिस ने अवैध रूप से रखी गई डीएपी खाद की 640 बोरी पकड़ी है. चिलौली रोड पर बने गोदाम से ये बोरियां पकड़ी गई है.

निर्धारित कीमत से ऊंची दरों पर खाद की बोरियां बेच रहा था व्यापारी सरवीर सिंह नरवरिया और गोरमी पुलिस द्वारा कार्रवाई जारी की है.

 

खाद को लेकर क्यों परेशान है किसान

पिछले कुछ दिनों से खाद की कमी को लेकर लगातार खबरें आ रही है.

लेकिन सरकार का बार-बार यहीं कहना है कि खाद की कोई कमी नहीं है.

 

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, भारत में आयातित डीएपी की कीमत इस बार 675 से 680 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई है, जबकि पिछले साल इसी वक्त भाव 370 डॉलर थे.

 

 

इसी तरह पोटाश एक साल पहले 230 डॉलर प्रति टन पर आयात किया गया था, जबकि आज यह कम से कम 500 डॉलर में मिल रहा है.

डीएपी के बाद सबसे जरूरी खाद यूरिया की कीमत भी 280 से 660 डॉलर तक पहुंच गई है.

फॉस्फोरस की बात करें तो यह 689 से 1160 डॉलर पर पहुंच गया है. रॉक फॉस्फेट और सल्फर का भी यही हाल है.

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 12 अक्टूबर को डीएपी पर सब्सिडी 24,231 रुपए से बढ़ाकर 33,000 रुपये प्रति टन करने की मंजूरी दी थी.

यह एनपीके खाद पर दी गई सब्सिडी से अलग थी.

 

खाद कंपनियां आयात बढ़ा सकें और खुदरा मूल्य में बढ़ोतरी न हो, इसी को ध्यान में रखकर सरकार ने यह फैसला लिया था.

सरकार के इस फैसले पर उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि निश्चित रूप से इससे आयात में बढ़ोतरी होगी.

उम्मीद है कि अक्टूबर के अंत और नवंबर के शुरुआत तक माल पहुंचने लगेगा.

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने काफी देर से फैसला लिया है. अगर यह निर्णय पहले ले लिया गया होता, तो स्थिति उलट होती और किसान परेशानी से बच जाते.

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