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मोटे अनाज तो सुना था, लेकिन ये छोटे अनाज क्या हैं?

खाने से पहले समझ लें अंतर

 

छोटे अनाजों में कुटकी, कांगनी, कोदो, सांवा हैं, जो कैल्शियम, आयरन, फाइबर समेत कई न्यूट्रिएंट्स का अच्छा सोर्स हैं.

बेहद कम लागत में उगने वाले मिलेट रोग प्रतिरोधी क्षमता को भी बढ़ाते हैं.

 

देश में मिलेट के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा दिया जा रहा है. मिलेट में छोटा अनाज और मोटा अनाज दोनों शामिल होते हैं.

इन्हें पहाड़ी, तटीय, वर्षा, सूखा आदि इलाकों में बेहद कम संसाधनों में ही उगाया जा सकता है.

एक तरफ मिलेट को उगाने में लागत कम आती है. वहीं इसका सेवन करने से शरीर को वो सभी पोषक तत्व मिल जाते हैं, जो साधारण खान-पान से मुमकिन नहीं है.

यही वजह है कि अब बेहतर स्वास्थ्य के लिए चिकित्सक भी डाइट में 15 से 20 प्रतिशत मिलेट को शामिल करने की सलाह दे रहे हैं.

अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 का भी उद्देश्य मिलेट की खपत को बढ़ाकर पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना है.

इसके लिए 8 मिलेट्स के चिन्हित किया गया है, जिसमें ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो, कुटकी, कंगनी, चेना, सांवा आदि शामिल हैं.

इनमें कुछ छोटे अनाज शामिल हैं तो कुछ मोटे अनाज.

पिछले कई दिनों से मोटे अनाज चर्चा में हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं छोटे अनाज भी पोषक के मामले में काफी आगे हैं. आइए जानते हैं इनके बारे में.

 

कैसे पहचानें अनाज छोटा है या मोटा

जानकारी के लिए बता दें कि मिलेट को साइज के आधार पर दो श्रेणियों में बांटा गया है.

एक छोटा अनाज और एक मोटा अनाज. मोटा अनाज में ज्वार, बाजरा और रागी आते हैं.

वहीं छोटा अनाज में कंगनी, कोदो, चीना, सांवा और कुटकी शामिल हैं.

 

क्या है छोटा अनाज और मोटा अनाज में अंतर

मोटा अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी का नाम शामिल है. इन अनाजों में भूसी नहीं होती.

साधारण पानी से साफ करने के बाद मोटा अनाज को डाइट में शामिल कर सकते हैं, जबकि छोटा अनाज में भूसी होती है, जिसका प्रसंस्करण करके भूसी हटाई जाती है.

खाने से पहले इन छोटे अनाजों को छानना-फटकना होना है, जिसके बाद इनसे तमाम व्यंजन बनाए जा सकते हैं.

पोषण के मामले में दोनों ही आगे
  • देश में ज्यादातर गेहूं और चावल का ही सेवन किया जाता है.
  • डाइट में रोजाना गेहूं-चावल का सेवन करने से पेट तो भर जाता है, लेकिन पोषण की आपूर्ति नहीं हो पाती.
  • यही वजह है कि ज्वार, बाजरा, रागी से लेकर कंगनी, कोदो, चीना, सांवा और कुटकी आदि को डाइट में शामिल करने की सलाह दी जा रही है.
  • मिलेट में गेहूं-चावल की तुलना में  प्रोटीन, वसा, खनिज तत्त्व, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, ऊर्जा कैलोरी, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, फोलिक ऐसिड, जिंक तथा एमिनो एसिड आदि की भरपूर मात्रा होती है.
  • कई रिसर्च में दावा किया गया है कि मिलेट का कुछ मात्रा में नियमित सेवन करने से शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है और तमाम बीमारियों के खतरों को भी दूर किया जा सकता है, जो साधारण अनाज से मुमकिन नहीं है.

 

इन्हें उगाना भी आसान है

मिलेट में छोटा अनाज और मोटा अनाज दोनों शामिल हैं और इन्हें उगाना भी बेहद आसान है.

मिलेट्स को उगाने में ना तो अलग से खाद-उर्वरकों का कुछ खर्च आता है और ना ही कीटनाशकों पर अलग से खर्च करने की आवश्यकता पड़ती है.

इस फसल में सूखा सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है.

ये फसलें कम अवधि में पककर तैयार हो जाती हैं और किसानों को बंपर उत्पादन मिलता है.

यदि जमीन बंजर है या मौसम की अनिश्चितताएं हावी रहती हैं तो मोटे अनाजों से अच्छा कोई विकल्प ही नहीं है.

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