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देश में इन किसानों को मिला पद्म श्री

 

जानिए कृषि में क्या रहा योगदान

 

गणतंत्र दिवस से पहले सोमवार की संध्या को पद्म पुरस्कार 2021 का सम्मान कई लोगों को दिया गया. इसके तहत किसी खास क्षेत्र में अपनी विशेष सेवा देने वाले नागरिकों को तीन पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री से नवाज़ा गया.

 

बता दें कि इस बार 102 लोगों को पद्म श्री दिया गया, जिसमें से चार लोगों को यह सम्मान कृषि क्षेत्र में अपने विशेष योगदान के लिए दिया गया. चलिए आपको उन किसानों के बारे में बताते हैं.

 

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चंद्रशेखर सिंह (कृषि वैज्ञानिक)

पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र से आने वाले कृषि वैज्ञानिक चंद्रशेखर सिंह को इस बार सरकार ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म श्री दिया है. बता दें कि इससे पहले भी उन्हें केंद्र और राज्य सरकारों से कई तरह के सम्मान मिल चुके हैं.

चंद्रशेखर को उत्पादन की गुणवत्ता को बढ़ाने और किसानों को शिक्षा देने के लिए यह सम्मान दिया गया है. बता दें कि चंद्रशेखर किसानों के लिए एक डिजिटल पोर्टल भी चलाते हैं, जो कृशाइन डॉट कॉम के नाम से प्रसिद्ध है.

 

पप्पामल (जैविक महिला किसान)

तमिलनाडु की रहने वाली महिला किसान पप्पाम्मल को 105 साल की उम्र में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. बता दें कि उन्हें लोग दक्षिण में लेजेंड्री वुमन के नाम से भी जानते हैं.

पप्पाम्मल को यह सम्मान जैविक खेती को बढ़ावा देने एवं जैविक खादों के निर्माण के लिए दिया गया है. पप्पाम्मल लगभग अपने ढाई एकड़ के खेत में फल-सब्जियों की खेती बिना किसी रसायनों के करती है.

 

नानाद्रो बी मारक (मिर्च किसान)

नानाद्रो मेघालय के पश्चिम गारो हिल्स के रहने वाले किसान हैं, जो मुख्य तौर पर काली मिर्च की खेती करते हैं. गौरतलब है कि अभी कुछ समय पहले ही उन्होंने 3,300 मिर्च के पौधे लगाए थे, जो कि अपने आप में किसी रिकोर्ड की तरह है.

बता दें कि नानाद्रो अब 61 वर्ष अधिक हो गए हैं, लेकिन अभी भी वो काली मिर्च की ही खेती करते हैं. प्राप्त जानकारी के मुताबिक 2019 में उन्हें मात्र काली मिर्च से ही 18 लाख रुपए की कमाई हो गई थी.

 

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प्रेमचंद्र शर्मा (अनार किसान)

खेती और बागवानी के क्षेत्र में प्रेमचंद्र शर्मा नाम उत्तराखंड में सम्मान के साथ लिया जाता है. उन्हें पद्म श्री सम्मान मुख्य तौर पर अनार की खेती के लिए दिया गया है.

गौरतलब है कि प्रेमचंद ने कई ऐसे प्रयोग किए हैं, जो अनार पर लगने वाले लागत को कम करते हुए मुनाफा को अधिक बढ़ा देता है.

बता दें कि साल 2000 में ही वो अनार के उन्नत किस्मों से करीब डेढ़ लाख पौधों की नर्सरी तैयार की थी. अनार की खेती के गुर सीखाने के लिए कई बार प्रेमचंद हिमाचल के कुल्लू, जलगांव के साथ महाराष्ट्र और कर्नाटक भी जा चुके हैं.

 

स्त्रोत : कृषि जागरण 

 

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