कीट प्रबंधन
फल एवं तना छेदक – यह कीट पौधे के तने के अग्रकोमल भाग पर, पर्ण वृंतो पर या पुष्प कलिकाओं में अंडे देता है एवं तने के अंदर सुरंग बनाकर नुकसान पहंुचाता है जिससे तना सूखने लगता है एवं फलों में छेद करके अंदर घुस जाता है तथा फलों को खाकर नुकसान पहुंचाता है.
नियंत्रण
इसके नियंत्रण हेतु बेवीरिया बेसियाना की 01 ली. या इमामेक्टिन बंेजोएट 5 एस जी की 200 ग्राम या स्पाईनोसेड 45 एस सी की 150 एम.एल मात्रा प्रति हेक्टेयर के दर से 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
हरा तेला, मोयला एवं सफेद मक्खी – यह कीट पौधों की पत्तियों एवं कोमल शाखाओं का रस चूसकर पौधे को कमजोर कर देता है जिससे उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.
नियंत्रण
इसके नियंत्रण हेतु बर्टीसिलियम लैकनी की 01 लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 150 एम0एल0 या थायोमेथाक्जाम 25 प्रतिशत डब्लू.जी. की 150 ग्राम मात्रा को 400 से 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
रोग प्रबंधन
पीत सिरा मोजेक रोग
यह विषाणु रोग है इसके प्रकोप से पत्तियां एवं फल पीले पड़ जाते हैं.
पत्तियों चितकबरी होकर प्यालेनुमा आकार की हो जाती हैं. इस रोग का संचार सफेद मक्खी द्वारा होता है.
नियंत्रण
इसके नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 150 एम0एल0 या थायोमेथाक्जाम 25 प्रतिशत डब्लू.जी. की 150 ग्राम मात्रा को 400 से 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए तथा आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अंतराल पर प्रयोग करें.
चूर्णिल आसिता
इस रोग में भिण्डी की पूरानी निचली पत्तियों पर सफेद चूर्ण युक्त धब्बे बन जाते हैं और तेजी से फैलते हैं जिससे फसल उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.
नियंत्रण
इसके नियंत्रण हेतु सल्फेक्स की 01 किलोग्राम मात्रा को 400-500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
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