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मशरूम की खेती में सुनीता ने बनाई पहचान

 

छत पर खेती से हुई 2 लाख की कमाई

 

सुनीता ने धीरे-धीरे अपनी खेती को आगे बढ़ाया और तीसरे साल तक उन्हें डेढ़ लाख रुपये तक का मुनाफा हुआ.

आज यह मुनाफा और भी बढ़ गया है. सुनीता ने कहा कि पहले उनका परिवार दाने-दाने के लिए मोहताज था. इतने पैसे नहीं थे कि कुछ काम हो सके.

 

बिहार में एक महिला ने मशरूम की खेती में नई पहचान बनाई है. मशरूम और बिहार का नाम सुनकर आश्चर्य होता है क्योंकि इस प्रदेश में परंपरागत खेती का चलन रहा है.

लेकिन यहां की एक महिला किसान ने इस प्रथा से आगे जाकर मशरूम की खेती में नई पहचान बनाई है और वे अच्छी कमाई भी कर रही हैं.

 

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बिहार की राजधानी पटना से लगभग 70 किमी दूर छपरा है जिसे सारण भी कहते हैं. इसी सारण में मांझी तहसील है जहां के गांव बरेजा में एक महिला किसान ने मशरूम की खेती में बड़ा नाम कमाया है.

इस किसान का नाम सुनीता है. सुनीता के गांव के आसपास अब तक गेहूं, धान या अन्य मौसमी सब्जियों की खेती होती रही है.

लेकिन सुनीता ने इससे हटकर कुछ करने का सोचा और मशरूम की खेती में कदम रखा. यह काम उनके लिए मुश्किल था क्योंकि उनके पति के नाम पर जमीन की हिस्सेदारी के तौर पर मात्र 15 कट्ठा जमीन थी.

इतनी जमीन पर गेहूं-धान की खेती करने का कोई फायदा नहीं था. ज्यादा उपज नहीं होती, लिहाजा सुनीता ने नया रास्ता अपनाया.

 

गरीबी में था परिवार

इतनी कम जमीन से घर-परिवार के लिए अनाज भी नहीं हो पा रहा था. बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का खर्च अलग था. कम जमीन और परिवार की पूरी जिम्मेदारी के चलते सुनीता के पति पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा था.

इसी बीच सुनीता ने एक दिन अखबार में मशरूम की खेती के बारे में पढ़ा. इससे सुनीता को उम्मीद की एक किरण नजर आई और उन्हें लगा कि वे भी ऐसी खेती कर कुछ नया कर सकती हैं.

इसके लिए सुनीता ने सबसे पहले मशरूम की खेती के बारे में मांझी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र से इसकी जानकारी ली. इस केंद्र में सुनीता ने मशरूम की खेती की ट्रेनिंग भी ली. इसके बाद अपनी छोटी सी जमीन में मशरूम की खेती शुरू कर दी.

 

पूसा विश्वविद्यालय से मिली मदद

सुनीता ने पूसा कृषि विश्वविद्यालय से मशरूम के अंकुरण लिए और उसे रोपा लेकिन इससे ज्यादा उत्पादन नहीं हो पाया. इसके बावजूद सुनीता ने हार नहीं मानी और अगली तैयारी में लग गईं.

सुनीता ने कृषि विश्वविद्यालय से संपर्क बनाए रखा और खुद खेती करने के साथ बाकी के गांव के लोगों को मशरूम की खेती के लिए जागरूक किया.

सुनीता ने धीरे-धीरे अपनी खेती को आगे बढ़ाया और तीसरे साल तक उन्हें डेढ़ लाख रुपये तक का मुनाफा हुआ. आज यह मुनाफा और भी बढ़ गया है.

सुनीता ने कहा कि पहले उनका परिवार दाने-दाने के लिए मोहताज था. इतने पैसे नहीं थे कि कुछ काम हो सके.

 

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छत पर उगा सकते हैं मशरूम

सुनीता को मशरूम की खेती में यह फायदा मिला कि उन्हें कृषि लायक ज्यादा जमीन की जरूरत नहीं पड़ी. मशरूम चूंकि घर में भी उगाया जाता है, इसलिए सुनीता ने इस विशेषता का फायदा उठाया और इसकी खेती शुरू कर दी.

मांझी के कृषि अधिकारी बताते हैं कि उन्होंने अपने तहसील के लोगों को मशरूम की ऑर्गेनिक खेती के बारे में जागरूक किया है. इसमें किसी खाद या केमिकल की जरूरत नहीं.

खेत न हो तो छत पर भी उगा सकते हैं. वर्मी कंपोस्ट और मिट्टी का इस्तेमाल कर मशरूम का अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है.

 

20 किसानों को दी ट्रेनिंग

आज सुनीता मशरूम से केवल अपने परिवार का ही खर्च नहीं चला रहीं बल्कि 20 महिला किसानों को तैयार किया है जो मशरूम की खेती कर रही हैं. ये सभी महिला किसान आज आत्मनिर्भर हो चुकी हैं.

मांझी तहसील के बरेजा में शुरू हुई इस खेती में मशरूम 25-35 दिनों में तैयार हो जाता है. छपरा से सटे होने के चलते इस मशरूम को अच्छा बाजार मिल जाता है. हाथों हाथ कमाई हो जाती है.

मशरूम की खेती में सफल होने के बाद सुनीता आज वर्टिकल खेती में भी हाथ आजमा रही हैं. इससे सब्जियों का अच्छा उत्पादन हो रहा है और कमाई भी हो रही है. पूसा कृषि विश्वविद्यालय ने सुनीता को मशरूम की खेती के लिए पुरस्कार दिया है.

 

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