एक ओर रसोई गैस के बढ़ते दामों ने लोगों की टेंशन बढ़ा दी है। दूसरी ओर टीकमगढ़ जिले का एक गांव ऐसा है, जहां एलपीजी की बढ़ती कीमतों का प्रभाव नहीं पड़ता।
400 घरों के आबादी वाले इस कांटी गांव के 165 घरों में गोबर गैस प्लांट लग चुके हैं। बाकी घर भी लगाने की तैयारी में हैं।
दिनभर का नाश्ता, खाना और चाय गोबर गैस से ही बनाई जा रही है।
साथ ही बचे गोबर से जैविक खाद बनाई जा रही है, जिससे खेतों की उर्वरा शक्ति भी बढ़ रही है।
हर महीने हर परिवार के बचते हैं दो हजार रुपए से ज्यादा
गांव के रिटायर्ड ग्राम सेवक पीडी खरे ने यह सिलसिला 2012 से शुरू किया।
ग्रामीणों को भी इनका आइडिया अच्छा लगा और आज गांव के लोग गोबर गैस से खाना पकाते हैं।
इससे लकड़ी, कैरोसिन और एलपीजी की जरूरत लगभग खत्म हो गई है।
इससे महिलाओं को चूल्हे के धुएं से तो राहत मिली है, साथ ही महंगी रसोई गैस के लिए पैसे भी खर्च नहीं करना पड़ रहे हैं।
आइए विस्तार से बताते हैं पूरी कहानी
पीडी खरे ने बताया कि करीब 10 साल पहले मैं ग्राम सेवक था।
इस दौरान में गांव में घूमता था तो देखा कि महिलाएं चूल्हा जलाकर खाना पकाती हैं। इससे उनकी आंखें खराब होने के मामले बढ़ रहे थे।
लोगों को एलपीजी के बारे में जागरूक किया तो महंगा होने के कारण लोग इसे खरीद नहीं पा रहे थे।
इसी बीच गोबर गैस प्लांट लगवाने का ख्याल आया। लोगों को इस बारे में बताया तो इसे लेकर वो उत्साहित भी दिखे।
फिर क्या था शुरू हो गया सिलसिला। उस समय एक गोबर गैस प्लांट की लागत 14 हजार रुपए थी।
इसमें किसानों का अंशदान 25% और शासन की ओर से 75% अनुदान दिया गया।
इसमें 10 हजार रुपए कृषि विभाग और ढाई हजार रुपए इफको की ओर से दिए गए।
इन्हीं पैसों में किसानों ने मेहनत, पैसा लगाया और गांव की तस्वीर बदल कर रख दी।
प्रतिमाह 2 सिलेंडर की बचत
गोबर गैस प्लांट से प्रतिमाह किसानों को करीब 2 घरेलू सिलेंडर जितनी बचत हो रही है।
इसके लिए किसानों को गोबर गैस प्लांट में प्रतिदिन करीब 10 से 15 किलो गोबर का घोल बनाकर डालना पड़ता है।
जिससे हर दिन 10 से 12 लोगों के पूरे दिन का चाय, नाश्ता से लेकर भोजन तैयार हो जाता है।
इस तरह एक गोबर गैस प्लांट से किसान को हर महीने करीब दो हजार और साल में 24 हजार रुपए की बचत हो रही है।
1 माह में तैयार हो रही 10 क्विंटल जैविक खाद
गोबर गैस प्लांट से जहां एक ओर किसानों को घरेलू उपयोग के लिए गैस मिल रही है।
वहीं प्लांट में डाले जाने वाले गोबर से जैविक खाद तैयार हो रही है।
पीडी खरे ने बताया कि एक गोबर गैस प्लांट से हर माह करीब 10 क्विंटल जैविक खाद तैयार हो जाती है।
1 एकड़ खेत में एक ट्राली जैविक खाद पर्याप्त है।
खेतों में जैविक खाद डालने से करीब 25% पैदावार अधिक होती है।
इसके अलावा एक ट्राली जैविक खाद बाजार में 1000 रुपए में बिक जाती है।
कांटी गांव के कई किसान जैविक खाद बेचकर करीब 20 से 25 हजार रुपए सालाना कमाई कर रहे हैं।
कृषि विभाग और इफको ने की मदद
पीडी खरे ने बताया कि जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीणों को गोबर गैस लगाने के लिए प्रेरित किया।
शुरुआत में कुछ कठिनाई आई, लेकिन जब कुछ किसानों ने गोबर गैस लगाकर फायदा महसूस किया तो पूरे गांव में जागरूकता फैल गई।
इसमें इफको ने भी इसमें आर्थिक मदद की। किसान को गोबर गैस लगाने के लिए 10 हजार रुपए कृषि विभाग की ओर से दिए गए।
इसके अलावा 2500 रुपए का सहयोग इफको ने किया। किसानों की मेहनत रंग लाई। उन्होंने जानवरों के अनुपयोगी गोबर से गैस तैयार की।
उससे निकली गोबर खाद का उपयोग जैविक खेती के तौर पर किया।
देखते ही देखते गांव के 165 किसानों ने अपने घरों में गोबर गैस लगवा लिए।
अब आसानी से होता है काम
कांटी गांव की 30 वर्षीय मीरा गोबर गैस पर ही खाना-चाय बनाती हैं।
उन्होंने बताया कि पहले चूल्हे पर खाना बनाने में स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता था।
अब गोबर गैस से आसानी से घर का पूरा खाना बन जाता है। इससे स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। साथ ही खेती में भी लाभ होने लगा है।
गांव में दूध और कृषि का उत्पादन बढ़ा
गांव के स्वरूप यादव ने बताया कि गोबर गैस से लोगों ने घरों में गाय, बैल पालना शुरू कर दिया है।
अब 40 से 50 रुपए किलो दूध बिकने लगा है। लोगों की आमदनी बढ़ी है। गोबर गैस से निकली खाद का उपयोग लोग खेती में करने लगे है।
इससे फसल का रकबा बढ़ गया है। 1 क्विंटल गेहूं के बीज में करीब 40 क्विंटल पैदावार होने लगी है।
सिलेंडर की उपयोगिता हुई कम
गांव के अरविंद तिवारी ने बताया कि 10 साल पहले घर में गोबर गैस प्लांट लगवाया था।
पहले उन्होंने लकड़ी की समस्या के चलते एलपीजी सिलेंडर खरीदा था, लेकिन जब घर का पूरा खाना गोबर गैस से बनने लगा तो गैस सिलेंडर की उपयोगिता कम हो गई है।
उन्होंने बताया कि पिछले साल से सिलेंडर लेने नहीं गए।
ग्राम सेवक हो चुके हैं सम्मानित
रिटायर्ड ग्राम सेवक पीडी खरे को कांटी गांव में गोबर गैस प्लांट को बढ़ावा देने के लिए गणतंत्र दिवस समारोह में सम्मानित भी किया गया था।
गांव के लोग आज भी पूर्व ग्राम सेवक को याद करते हैं।
गांव के रामसेवक यादव ने बताया कि रिटायर्ड ग्राम सेवक पीडी खरे के प्रयास से ही गांव में करीब 165 घरों में गोबर गैस प्लांट लगाए जा सके।
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