देश के कई इलाकों में पश्चिमी विक्षोभ के कारण 2 अप्रैल तक मौसम का मिजाज बिगड़ा हुआ रहेगा.
वहीं 4 अप्रैल को दूसरे विक्षोभ के सक्रिय होते ही 8 अप्रैल तक तेज बारिश और आंधी आने के आसार हैं.
फिर गिरेगा रात का पारा
साल के तीसरे महीने से ही मौसम का मिजाज काफी तीखा रहा. बेमौसम बारिश से शहर के लोगों को राहत की सांस मिली.
लेकिन गांव में हालात बदतर होते दिखाई पड़ रहे हैं. करीब 6 पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता के चलते मार्च के महीने में करीब 3 बार मौसम ने अपनी करवट बदली.
इसका विपरीत प्रभाव खेती पर ही पड़ा. हिमाचल से लेकर पंजाब, हरियाणा, यूपी, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश में तेज बारिश,आंधी और ओलावृष्टि से फसलें बर्बाद हो गईं.
30-31 मार्च तक इस आकाशीय आपदा का सिलसिला जारी रहा, जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ा.
मौसम विभाग की चेतावनी के मुताबिक, अभी भी आफत पूरी तरह से टली नहीं है.
पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश समेत कई राज्यों में 3 अप्रैल तक छिटपुट बारिश जारी रहेगी.
इसके बाद 4 अप्रैल को दूसरे विक्षोभ के सक्रिय होने के आसार जताए गए हैं.
इन राज्यों में फिर बरसेगी आफत
नए पूर्वानुमान के आधार पर मौसम वैज्ञानिकों ने बताया कि उत्तर भारत के तमाम राज्यों में वेस्टर्न डिसटर्बेंस के कारण 2 अप्रैल तक छिटपुट बारिश चलती रहेगी,
लेकिन 4 अप्रैल को एक नए पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय होने पर 8 अप्रैल तक तेज बारिश और आंधी की संभावना फिर से बढ़ जाएगी.
उत्तर और मध्य भारत में रात का तापमान भी कम रहेगा.
अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक हालात सामान्य हो जाएंगे और धीरे-धीरे तापमान बढ़ने लगेगा.
मौसम पूर्वानुमान के मुताबिक अप्रैल के अंत तक तेज गर्मी का अहसास होने लग जाएगा.
अप्रैल के बाद चलेंगी लू
मौसम वैज्ञानिकों ने बताया कि ये एनसो न्यूट्रल का टाइम है यानी अगले दो महीने जमकर गर्मी और लू चलने के आसार है.
आमतौर पर अल-नीनो ईयर्स में तेज गर्मी और सूखा के आसार बढ़ जाते हैं.
इससे फसलों को नुकसान होगा ही, गांव का जन-जीवन भी अधिक प्रभावित रहेगा.
कम हो सकता फसल उत्पादन
फिलहाल बारिश, तेज हवाएं और ओलावृष्टि के कारण खेतों में काफी बड़ा नुकसान हो चुका है.
महीनों की मेहनत को पानी में भीगा हुआ देख किसानों भी मानसिक और आर्थिक चिंता से जूझ रहे हैं.
बेशक सरकारों ने मुआवजे का ऐलान कर दिया हो, लेकिन कटाई के बाद सुखाने के लिए रखी हुई गेहूं की फसलें लगातार बारिश पड़ने से भीगती जा रही है.
हर मौसम साफ नहीं है, इसलिए फसलों को पूरा तरह नहीं बचाया जा सकता. जो फसलें जमीन पर गिर गई हैं.
उनका वजन और पोषण कम होगा ही, दाने काले पड़ने की भी संभावनाएं बढ़ जाएंगी.
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