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पपीते की खेती- कृषि वैज्ञानिक ने दिए कमाई के टिप्स

फरवरी के अंतिम सप्ताह और मार्च में पपीता के पौधे लगाने के लिए किसान अपनी खेत तैयार करें।

सिडलिंग लगाने का यही सही समय है. इसके अलावा पौधे बेचकर भी किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं।

 

कमाई के टिप्स

मार्च अप्रैल में पपीतालगाने के लिए उपयुक्त समय है. इसके लिए आवश्यक है की पपीता के पौधे रोपाई के लिए तैयार हो.

उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में फरवरी के दूसरे हफ्ते तक मार्च अप्रैल में लगाए जाने वाले पपीता के पौधे नर्सरी  में तैयार नहीं हो पाते है क्योंकि इस समय तक रात का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस के आस पास रहता है, इस कारण से पपीता के बीज अंकुरित नहीं हो पाते हैं.

इसलिए अधिकांश किसान  फरवरी के अंत या मार्च के पहले हफ्ते में पपीता के बीज की नर्सरी में बुवाई करते हैं.

जिसकी वजह से पपीता की रोपाई में विलम्ब हो जाता है.

पपीता की नर्सरी को यदि हम लो कॉस्ट पॉली टनल में फरवरी में ही उगा लेते तो पपीता की रोपाई मार्च में किया जा सकता है.

 

जानिए पपीता खेती से  जुड़ी 10 काम की बातें

  • डाक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि  विश्व विद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डाक्टर एस के सिंह ने को बताया कि बड़े किसान पॉली हाउस से प्राप्त करते है, लगभग वही लाभ गरीब किसान लो कॉस्ट पॉली टनल से प्राप्त कर सकते है. इसे बनाने के लिए बांस की फट्टी या लोहे की छड़, जिसे आसानी से मोड़ा जा सकता है और इसके लिए 20 से 30 माइक्रोन मोटी और दो मीटर चौड़ी सफेद पारदर्शी पॉलीथीन शीट की जरूरत होती है. इसमें खेतों में पहले 1 मीटर चौड़ी, 15 सेंटीमीटर उंची एवं आवश्यकतानुसार लंबी लंबी क्यारियां बनाते हैं. इन क्यारियों में पपीता के बीज को 2 सेंटीमीटर की गहराई पर लाइनों में बोये जाते हैं.
  • पपीता के बीजों की बुवाई प्रो ट्रे में भी किया जा सकता है. सामान्यतः एक हेक्टेयर खेत में लगने के लिए लगभग 250 ग्राम से लेकर 300 ग्राम बीज की जरूरत होती है. यदि आप पपीता की मशहूर किस्म रेड लेडी एफ 1 बीज की नर्सरी उगाते है तो केवल 60 से 70 ग्राम बीज की आवश्यकता पड़ेगी.
  • रेड लेडी बीज का 10 ग्राम का पैकेट आता है ,जिसमे लगभग 600 के आस पास बीज होते है तथा इन बीजों को अच्छे से वैज्ञानिक तरीके से नर्सरी में उगाया जाय तो लगभग 90 प्रतिशत तक अंकुरण होता है. रेड लेडी पपीता को मुख्य खेत में 1.8 मीटर x 1.8 मीटर की दूरी पर लगाते है तो एक हेक्टेयर के लिए लगभग 3200 पौधे लगेंगे.
  • रेड लेडी के सभी पौधों में फल लगते है क्योंकि ये पौधे उभय लिंगी (नर मादा फूल एक ही पेड़ पर लगाते है) होते है इसलिए एक जगह में केवल एक पौधे को लगाते है. पपीता की जिन प्रजातियों में नर एवं मादा फूल अलग अलग पौधों पर आते है ,उनको एक जगह पर तीन पौधे लगाए जाते है इस प्रकार से एक हेक्टेयर के लिए लगभग 9600 पपीता के पौधों की जरूरत पड़ती है. खेता को ऐसे करें तैयार
  • नर्सरी के लिए सर्वप्रथम मिट्टी को भुरभुरा बना लेते है , इसके बाद प्रति वर्गमीटर के हिसाब से दो किग्रा कम्पोस्ट / वर्मी कम्पोस्ट , 25 ग्राम ट्राइकोडरमा एवं 75 ग्राम एनपीके नर्सरी बेड़ में मिलाते है. खाद या उर्वरक मिलने का कार्य यदि 10 दिन पहले कर लिया जाय तो बेहतर रहेगा. इसके बाद नर्सरी बेड को समतल कर लाइनों में बीजों की बुवाई करते हैं.
  • इसके बाद लाइनों को मिट्टी और सड़ी खाद से ढक दें और हो सके तो अंकुरण तक पुआल और घास से ढक दें, उसके उपरान्त लोहे की छड़ों को 2-3 फीट ऊंचा उठा ले ,और घुमाकर दोनों तरफ से जमीन में धसा दिया जाता है. इसके बाद उपर से पारदर्शी पालथीन से ढक दिया जाता हैं. इस प्रकार से को कॉस्ट पॉली टनल तैयार हो जाता है. आवश्यकतानुसार फब्बारे से पौधों पर पानी का छिड़काव करना चाहिए.
  • कभी कभी अंकुरण के पश्चात पपीता के पौधे जमीन की सतह से ही गल कर गिरने लगते है. इस रोग को डैंपिंग ऑफ damping off (आद्र गलन )रोग कहते है . इस रोग से पौधो को बचाने के लिए आवश्यक है की रिडोमील एम गोल्ड (Ridomil M Gold) नामक दवा की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर फब्बारे से पौधों के ऊपर छिड़काव करने से रोग की उग्रता में भारी कमी आती है.’
  • इस तरह से पांच से छ सप्ताह के बाद पौधे मुख्य खेत में रोपण के लिए तैयार हो जाते हैं. मार्च के महीने में जब भी अनुकूल वातावरण मिले नर्सरी में तैयार पौधो को मुख्य खेत में स्थानांतरित कर देने से किसान का समय बचता है तथा फसल अगेती तैयार हो जाती है , जिसे बेच कर किसान को अधिक लाभ मिलता है. लगभग 30 से 35 दिन में नर्सरी में पौधे तैयार हो जाते है.
  • लो कॉस्ट टनल में पौधे तैयार करने के क्रम में रोग एवं कीट भी कम लगते है. बाहर की तुलना में पॉली टनल में 5 से 7 डिग्री सेल्सियस तापक्रम ज्यादा रहता, जिससे बीजों का अंकुरण आसानी से हो जाता है. इस तकनीक में गरीब किसान भी लगभग वह सभी लाभ प्राप्त करता है, जो बड़े किसान महंगे महंगे पॉली हाउस में प्राप्त करता है.
  • इस तकनीक से किसान बड़े पैमाने पर सीडलिंग्स  तैयार करके उसे बेच कर कम समय में ही अधिक से अधिक लाभ कमा सकता है. लो कॉस्ट पॉली टनल को किसान स्वयं बहुत आसानी से स्थानीय सामानों जैसे बांस की फट्टियो लोहे की सरिया ( छड़ो )से बना सकते है.

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