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गर्मी में पशुओं को लू से बचाने के लिए इस तरह करें देखभाल

अभी देश के अधिकांश क्षेत्रों में तेज गर्मी पड़ रही है, जिससे पशुओं को लू लगने की संभावना बनी रहती है। गर्मी का असर पशुओं के आहार के साथ ही उनकी सेहत पर भी पड़ता है।

ऐसे में पशुपालकों को पशुओं के आहार के साथ ही साथ उनकी सेहत पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि दूध उत्पादन में कमी ना हो।

इस क्रम में दतिया के उपसंचालक डॉ जी. दास ने प्रेस को जानकारी देते हुए बताया कि पशुपालन व्यवसाय से जुड़े कृषक या उद्यमी को इस बात की पूरी जानकारी होनी चाहिए कि गर्मी के मौसम में अपने पशुओं के स्वास्थ्य और उत्पादन को बनाये रखने के लिये किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

 

पशुओं की देखभाल

पशुपालक को मौसम में होने वाले परिवर्तनो के अनुसार अपने पशुओं का प्रबंधन करना चाहिए जिससे उनके उत्पादन पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े।

गर्मी के मौसम में पशुओं के बीमार होने की संभावना बढ़ जाती है। गर्म हवाओं एवं तापमान अधिक होने पर पशुओं को लू लगने का भी खतरा बना रहता है।

 

पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता पर पड़ता है प्रभाव

अधिक तापमान होने पर गर्म लू के थपेड़े चलने लगते हैं तो जिससे पशु दबाव की स्थिति में आ जाते हैं।

इस दबाव की स्थिति का पशुओं की पाचन प्रणाली और दूध उत्पादन क्षमता पर उल्टा प्रभाव पड़ता है।

गर्मी में यदि नवजात पशुओं की उचित देखभाल ने की जाये तो इसका असर भविष्य में उनकी शारीरिक वृद्धि स्वास्थ्य, रोग प्रतिरोधी क्षमता और उत्पादन क्षमता पर स्थायी प्रभाव पड़ता है।

गर्मी में पशुपालन करते समय उनके प्रबंधन पर ध्यान न देने पर पशु के सूखा चारा खाने की मात्रा में 10 से 30 प्रतिशत और दूध उत्पादन क्षमता में 20 से 30 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।

साथ ही साथ अधिक गर्मी के कारण पैदा हुए आक्सीकरण तनाव की वजह से पशुओं की बीमारियों से लड़ने की अंदरूनी क्षमता पर बुरा असर पड़ता है और आगे आने वाले बरसात के मौसम में वे विभिन्न बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।

 

पशुओं को लू लगने के लक्षण

भीषण गर्मी की स्थिति में पशुधन को सुरक्षित रखने के लिए विशेष प्रबन्धन एवं उपाय करने की आवश्यकता होती है, जिनमें ठंडा एवं छायादार पशु आवास, स्वच्छ पीने का पानी आदि पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।

वातावरण में नमी और ठंडक की कमी एवं पशु आवास में स्वच्छ वायु का ना आना, कम स्थान में अधिक पशु रखना और गर्मी के मौसम में पशु को पर्याप्त मात्रा में पानी न पिलाना लू लगने के प्रमुख कारण हैं।

लू लगने के कारण पशु को तेज बुख़ार आ जाता है और बेचैनी बढ़ जाती है।

पशुओं को आहार लेने में अरुचि, तेज बुखार, हांफना, मुँह से जीभ बाहर निकलना, मुँह के आसपास झाग आ जाना, आंख व नाक लाल होना, नाक से खून बहना, पतला दस्त होना, श्वास कमजोर पड़ जाना उसकी हृदय की धड़कन तेज होना आदि लू लगने के प्रमुख लक्षण है।

लू लगने पर पशु सुस्त होकर खाना पीना बन्द कर देता है। शुरू में पशु की श्वसन गति एवं नाड़ी गति तेज हो जाती है।

कभी-कभी नाक से खून भी बहने लगता है। पशु पालक के समय पर ध्यान नहीं देने से पशु की श्वसन गति धीरे धीरे कम होने लगती है एवं पशु चक्कर खाकर बेहोशी की दशा में ही मर जाता है।

 

पशुओं को लू लगने पर क्या करें?

पशुपालक कुछ सावधानियां अपनाकर अपने पशुओं को लू से बचा सकते है। पशुपालक डेरी को इस प्रकार बनाये की सभी जानवरों के लिए उचित स्थान हो ताकि हवा को आने जाने के लिए जगह मिले ध्यान रहे की शेड खुला हवादार हो।

लू लगने पर पशु को ठण्डे स्थान पर बांधे तथा माथे पर बर्फ या ठण्डे पानी की पट्टियां बांधे जिसमें पशु को तुरन्त आराम मिले।

पशु को प्रतिदिन 1-2 बार ठंडे पानी से नहलाना चाहिए। पशु के लिए पानी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

मवेशियों को गर्मी से बचाने के लिए पशुपालक उनके आवास में पंखे, कूलर और फव्वारा सिस्टम लगा सकते हैं।

दिन के समय में उन्हें अन्दर बांध कर रखें। लू की चपेट में आने और ठीक नहीं होने पर पशु को तुरंत पशुचिकित्सक या चलित पशु चिकित्सा इकाई 1962 पर फोन कर उपचार व सलाह ले सकते है। पशुओं को इलेक्ट्रोल देनी चाहिए।

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गर्मी में पशुओं को कौन सा आहार खिलायें
  1. गर्मी के मौसम में पशुओं को हरा चारा अधिक खिलाना चाहिए, पशु इसे चाव से खाता है तथा हरे चारे में 70-90 प्रतिशत जल की मात्रा होती है, जो समय-समय पर पशु शरीर को जल की आपूर्ति भी करता है।
  2. इस मौसम में पशुओं को भूख कम व प्यास अधिक लगती है। इसके लिए गर्मी में पशुओं को स्वच्छ पानी आवश्यकतानुसार अथवा दिन में कम से कम तीन बार अवश्य पिलाना चाहिए इससे पशु शरीर के तापमान को नियंत्रित बनाये रखने में मदद मिलती है।
  3. इसके अलावा पानी में थोड़ी मात्रा में नमक व आटा मिलाकर पिलाना भी अधिक उपयुक्त है इससे अधिक समय तक पशु के शरीर में पानी की आपूर्ति बनी रहती है, जो शुष्क मौसम में लाभकारी भी हैं।
  4. गर्मी के समय में पशुओं को संतुलित आहार के साथ साथ हरे चारे की अधिक मात्रा उपलब्ध कराना चाहिए। इसके दो लाभ है। एक पशु अधिक चाव से स्वादिष्ट एवं पौष्टिक चारा खाकर अपनी उदरपूर्ति करता है, तथा दूसरा हरे चारे में 70-90 प्रतिशत तक पानी की मात्रा होती है, जो समय-समय पर जल की पूर्ति करता है।
  5. सामान्यतः गर्मी में मौसम में हरे चारे का अभाव रहता है। इसलिए पशुपालक को चाहिए कि गर्मी के मौसम में हरे चारे के लिए मार्च, अप्रैल माह में मूंग, मक्का, काऊपी, चरी आदि की बुवाई कर दें जिससे गर्मी के मौसम में पशुओं को हरा चारा उपलब्ध हो सके। ऐसे पशुपालन जिनके पास सिंचित भूमि नहीं है, उन्हें समय से पहले हरी घास काटकर एवं सुखाकर तैयार कर लेना चाहिए। यह घास प्रोटीन युक्त, हल्की व पौष्टिक होती है।
  6. गर्मी के दिनों में पशुओं को खनिज लवण देना लाभदायक रहता है क्योंकि गर्मी के दबाव के कारण पशुओं के पाचन प्रणाली पर बुरा असर पड़ता है और भूख कम हो जाती है। गर्मी के मौसम में पशुओं को भूख कम लगती है और प्यास अधिक इसलिए पशुओं को पर्याप्त मात्रा में दिन में कम से कम तीन बार पानी पिलाना चाहिए। जिससे शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
  7. इसके अलावा पशु को पानी में थोड़ी मात्रा में नमक एवं आटा मिलाकर पानी पिलाना चाहिए। पर्याप्त मात्रा में साफ सुथरा ताजा पीने का पानी हमेशा उपलब्ध होना चाहिए। पीने के पानी को छाया में रखना चाहिये। पशुओं से दूध निकालनें के बाद उन्हें यदि संभव हो सके तो ठंडा पानी पिलाना चाहिये। गर्मी में 3-4 बार पशुओं को अवश्य ताजा ठंडा पानी पिलाना चाहिए। पशु को प्रतिदिन ठण्डे पानी से भी नहलाने की सलाह दी जाती है।
  8. भैंसों को गर्मी में 3-4 बार और गायों को कम से कम 2 बार नहलाना चाहिये। पशुओं को नियमित रूप से खुरैरा करना चाहिये । खाने-पीने की नांद को नियमित अंतराल पर धोना चाहिये। रसोई की जूठन और बासी खाना पशुओं को कतई नहीं खिलाना चाहिये।
  9. कार्बोहाइड्रेट की अधिकता वाले खाद्य पदार्थ जैसे आटा, रोटी, चावल आदि पशुओं को नहीं खिलाना चाहिये।
  10. गर्मियों के मौसम में पैदा की गयी ज्वार में जहरीला पदार्थ हो सकता है जो पशुओं के लिए हानिकारक होता है। अतः इस मौसम में यदि बारिश नहीं हुई है तो ज्वार खिलाने के पहले खेत में 2-3 बार पानी लगाने के बाद ही ज्वार चरी खिलाना चाहिए।

 

गर्मी के दिनों में पशुओं के आवास प्रबंधन
  1. पशुपालकों को पशु आवास हेतु पक्के निर्मित मकानों की छत पर सूखी घास या कडवी रखें ताकि छत को गर्म होने से रोका जा सके। पशु आवास के अभाव में पशुओं को छायाकार पेड़ों के नीचे बांधे। पशु आवास में गर्म हवाओं का सीधा प्रवाह नहीं होने पाये इसके लिए लकड़ी के फटे या बोरी के टाट को गीला कर दें, जिससे पशु आवास में ठण्डक बनी रहे।
  2. पशु आवास गृह में आवश्यकता से अधिक पशुओं को नहीं बांधे तथा रात्रि में पशुओं को खुले स्थान पर बांधे।
  3. सीधे तेज धूप और लू से पशुओं को बचाने के लिए पशु-शाला के मुख्य द्वार पर खस या जूट के बोरे का पर्दा लगाना चाहिये। पशुओं के आवास के आस पास छायादार वृक्षों की मौजूदगी पशु-शाला के तापमान को कम रखने में सहायक होती है।
  4. गाय, भैंस की आवास की छत यदि एस्बेस्टस या कंक्रीट की है तो उसके ऊपर 4-6 इंच मोटी घास फूस की तह लगा देने से पशुओं को गर्मी से काफी आराम मिलाता है।

इन उपायों और निर्देशों को अपना कर पशुपालक द्वारा अपने पशुओं की देखभाल उचित तरीके से की जा सकती है और गर्मी के प्रकोप से बचाया जा सकता है तथा उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।

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