किसान चने की अधिकतम उपज प्राप्त कर सकें इसके लिए कृषि विभाग द्वारा सलाह जारी की गई है।
कृषि विभाग के अनुसार किसान चने की फ़सल को कीट-रोगों से बचाने के लिए बीजोपचार एवं भूमि उपचार के बाद ही बुआई करें।
किसान विभिन्न फसलों की अधिकतम पैदावार प्राप्त कर सकें इसके लिए कृषि विभाग द्वारा किसानों को विशेष सलाह जारी की जाती है।
इस कड़ी में ग्राहृय परीक्षण केन्द्र तबीजी फार्म, अजमेर द्वारा चने की खेती के लिए विशेष सलाह जारी की गई है।
तबीजी फार्म के उप निदेशक कृषि (शस्य) मनोज कुमार शर्मा ने बताया कि चना रबी सीजन की एक प्रमुख दलहनी फसल है।
चने के लिए लवण एवं क्षार रहित, जल निकास वाली उपजाऊ भूमि उपयुक्त रहती हैं। वर्तमान में चने की बुवाई का उपयुक्त समय हैं।
चने की फसल में मृदा उपचार एवं बीजोपचार कर कीटों एवं रोगों से बचाकर उत्पादन में बढ़ोतरी की जा सकती हैं।
उन्होंने कहा कि कृषि रसायनों का उपयोग करते समय पूरे कपड़े, मास्क एवं दस्ताने का उपयोग किसानों को करना चाहिए।
कृषि अनुसंधान अधिकारी (पौध व्याधि) डॉ. जितेन्द्र शर्मा ने बताया कि बीजोपचार बीज एवं मृदा से उत्पन्न होने वाले कीटों एवं रोगों से फसलों को बचाने एवं बीजों के अधिक अंकुरण के लिए किया जाता हैं।
चने की फसल में जड़ गलन, सूखा जड़ गलन एवं उकठा जैसे हानिकारक रोगों का प्रकोप होता हैं। इन रोगों से बचाव के लिए फसल चक्र अवश्य अपनायें एवं बचाव हेतु ट्राईकोडर्मा से भूमि उपचार करना चाहिए।
किसान इस तरह करें बीजोपचार और भूमि उपचार
भूमि उपचार करने के लिए बुवाई से पहले 2.5 किलो ट्राईकोडर्मा को 100 किलो आद्रता युक्त गोबर की खाद में मिलाकर 10-15 दिन छाया में रखें तथा इस मिश्रण को बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर की दर से पलेवा करते समय मिट्टी में मिला दें।
साथ ही रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें एवं बीजों को 1 ग्राम कार्बेण्डाजिम एवं थाइरम 2.5 ग्राम अथवा 2 ग्राम कार्बोक्सीन 37.5 प्रतिशत एवं थाइरम 37.5 प्रतिशत अथवा ट्राईकोडर्मा 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें।
सहायक कृषि अनुसंधान अधिकारी (कीट) डॉ. सुरेश चौधरी ने चने की फसल में दीमक, कटवर्म व वायरवर्म की रोकथाम के लिए क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से आखिरी जुताई से पूर्व भुरकाव करने एवं बीजों को फिप्रोनिल 5 एस.सी. 10 मि.ली. अथवा इमीडाक्लोप्रिड 600 एफ.एस. का 5 मि.ली. प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार कर बुवाई करने की सलाह दी है।
बुआई के समय चने में कितना खाद-उर्वरक डालें
कृषि अनुसंधान अधिकारी (रसायन) डॉ. कमलेश चौधरी ने बताया कि सिफारिश की गई उर्वरकों की मात्रा के साथ बुवाई से पूर्व चने के बीजों को तरल आधारित राईजोबियम, पी. एस. बी., गंधक तथा जिंक घोलक जैव उर्वरकों की 3 से 5 मिली लीटर प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करने से फसल की पैदावार में बढ़ोतरी होती हैं।
वहीं कृषि अनुसंधान अधिकारी (शस्य) रामकरण जाट ने जानकारी दी कि चने की अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए पोषक तत्वों का उपयोग सही समय पर मृदा परीक्षण सिफारिश के आधार पर उपयुक्त व संतुलित मात्रा में ही करना चाहिए।
असिंचित क्षेत्रों में 10 किलो नाइट्रोजन और 25 किलो फास्फोरस तथा सिंचित क्षेत्रों में 20 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से 12-15 सेन्टीमीटर की गहराई पर आखरी जुताई के समय छिड़कें।
चने की सिंचित फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमिथेलीन 30 ई.सी. की 2.5 लीटर मात्रा अथवा पेन्डीमिथेलीन 38.7 सी.एस. की 1.9 लीटर प्रति हेक्टेयर शाकनाशी को बुवाई के बाद परन्तु बीज उगने से पूर्व 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
पीएम मोदी करेंगे ₹24,000 करोड़ की “प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना” का शुभारंभ