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जायद मौसम की सब्जियों व फसलों की देखभाल

 

जायद मौसम में मूंग, उड़द, भिण्डी, तोरई, करेला, लौकी, खीरा, ककड़ी, तरबूज आदि फसलें प्रमुखता से ली जाती हैं।

 

ये फसलें फरवरी-मार्च में बोई जाती हैं। तथा 15 जून तक पककर तैयार हो जाती हैं। उन्नत तकनीकी का प्रयोग करने के बावजूद कृषक ज्यादा पैदावार नहीं ले पाते इसका एक प्रमुख कारण अधिक तापमान व गर्म हवाओं का प्रभाव व कीट व्याधियों का प्रकोप है।

उन्नत सस्य प्रबंधन व पौध संरक्षण अपनाकर इन फसलों से अधिक लाभ लिया जा सकता है।

 

उन्नत सस्य प्रबंधन

सिंचाई हेतु नालियों एवं क्यारियों की व्यवस्था करें। सामान्य तौर पर मई-जून में 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें तथा सिंचाई का समय सुबह अथवा शाम रखें।

जायद मौसम में सिंचाई अधिक करने से खरपतवारों की भी समस्या रहती है अत: समय-समय पर निंदाई-गुड़ाई करें। इससे खेत की पपड़ी टूट जाती है तथा पौधों का विकास भी तेजी से होता है।

गुड़ाई के बाद मिट्टी को भुरभुरा बनाकर पौधों की जड़ों पर चढ़ायें। यूरिया की बची हुई मात्रा का 1/4 भाग बुआई के 20-25 दिन बाद देकर मिट्टी चढा देते हैं व शेष मात्रा बुआई के 40 दिन बाद सिंचाई करने के बाद टापडे्रसिंग के रूप में दें।

 

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कद्दूवर्गीय सब्जियों का गर्मी से बचाव

जायद की सब्जियों के जो फल दक्षिण दिशा की ओर होते हैं, उनमें विशेष रूप से सूर्य की गर्मी से झुलसन आ जाती है, जिसे सन-स्क्रेचिंग कहते हैं। इससे बचाव हेतु किसान भाई फलों को घास-फूस से ढक दें तथा नियमित अंतराल से सिंचाई करें।

 

इन सब्जियों के फलों को नियमित रूप से तोड़कर बाजार में विक्रय हेतु भेजें तथा फूल आते समय 70 किग्रा. यूरिया/हेक्टेयर के मान से दें। फल मक्खी व कद्दू का लाल कीड़ा नामक कीटों के नियंत्रण हेतु क्विनालफॉस 20 ईसी की 1000 मिली मात्रा 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर के मान से छिड़काव करें।

पर्ण झुलसन रोग (पत्तियों पर कोणीय या गोल भूरे रंग के धब्बे) के लक्षण प्रकट होने पर मेंकोजेब की 2 ग्राम अथवा कार्बेंडाजिम की एक ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

 

मूंग-उड़द की देखभाल

मूंग व उड़द की फसल में पीला मोजेक, भभूतिया रोग व फली छेदक कीट का प्रकोप मुख्यत: होता है। पीला मोजेक एक विषाणु जनित रोग है, जो सफेद मक्खी नामक कीट द्वारा फैलता है।

रोग कारक पौधे की पत्तियों में हरे पर्णरिम के बीच-बीच में पीले दाग बनते हैं जो आपस में मिलकर पूरी पत्ती को सुखा देते हैं। यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है अत: खड़ी फसल में सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.6 एसएल की 150 मिली मात्रा अथवा एसिटामिप्रिड की 150 ग्राम मात्रा अथवा थायोमिथोक्जेम 25 प्रतिशत की 100 ग्राम मात्रा को 500 ली. पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयऱ के मान से छिड़काव करें।

 

फली छेदक कीट, फलियों के दानों को नुकसान पहुंचाता है, इनके नियंत्रण हेतु रैनेक्सीपायार (कोराजेन) 75 मिली प्रति हेक्टेयर के मान से छिड़काव करें।

भभूतिया रोग में पत्तियों पर सफेद चूर्ण की सतह दिखाई देती है, यह चूर्ण रोगकारक फफूंद के बीजाणु व कवकजाल होता है। पर्ण दाग रोग में गहरे भूरे धब्बे पश्रियों पर बनते हैं जो बाद में लाल रंग के हो जाते हैं।

दोनों ही रोगों के नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम की 250 ग्राम मात्रा 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के मान से छिड़काव करें।

 

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source : krishakjagat

 

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