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वाट्सएप ग्रुप से 135 किसान सीख जैविक खेती के तरीके

 

बालाघाट जिले की बिरसा तहसील के जगला गांव के किसान गोवर्धन पटले ने जैविक खेती को अपनाया है।

 

जैविक खाद से खेती करने के लिए खाद स्वयं तैयार कर किसानों को इस खेती की ओर प्रोत्साहित करने एक वाट्सएप ग्रुप बनाया है जिसका नाम रखा है जैविक जीवन मलाजखंड।

ग्रुप से अब तक 135 से अधिक किसानों को जोड़कर जैविक खेती करने जानकारियां दी जा रही है। इसके अलावा किसानों को अपने घर पर निश्शुल्क प्रशिक्षण देने का काम कर रहे है। ताकि किसान रासायनिक खेती को छोड़कर जैविक खेती से अच्छी फसल ले सके।

 

किसान गोवर्धन पटले 50 वर्ष बताते है कि उन्होंने बीएससी गणित, एमए समाज शास्त्र, एलएलबी और आयुर्वेद रत्न के अलावा कंप्यूटर में डीसीए, बीसीए तक पढ़ाई की है।

सरकारी नौकरी के पीछे न भागते हुए खेती में हाथ आजमाया। पहले अपने खेतों में धान, गेहूं, सब्जियों की रासायनिक खाद से खेती करते थे, लेकिन इस खाद से अधिक बीमारियां भी लगती थी और फसल कम होने के साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम होने लगी थी, इसीलिए उन्होंने रासायनिक खेती छोड़कर जैविक खेती अपनाना शुरू कर दिया।

अब दो साल के भीतर पूरे खेत में खरीफ से रबी तक की फसलें जैविक खाद से उगा रहे है। जैविक खाद बनाने कोई बहुत ज्यादा लागत नहीं आती है। इसको तैयार करने समय-समय पर देखरेख करनी होती है जो तीन माह में पूरी तरह से बन जाती है।

उनका मानना है कि हर कोई किसान जैविक खेती करे इसके लिए जैविक जीवन मलाजखंड वाट्सएप ग्रुप बनाया है।.

 

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किसानों देते है प्रशिक्षण

किसानों के लिए बनाए हुए ग्रुप में अब तक 135 किसानों को जोड़ लिया है। जिन्हें ग्रुप के माध्यम से या फिर फोन पर भी जैविक कंपोस्ट खाद बनाने की विधि समझाते है।

रोजाना दो-दो किसानों को बुलाकर प्रशिक्षण देते है। इतना ही नहीं अपने समीपी जिलों में भी किसानों को जाकर प्रशिक्षण दे रहे है। अभी हाल ही में महिला, पुरूष 60 किसानों की कार्यशाला घर पर ही आयोजित की गई थी।

जिसमें रासायनिक खाद से होने वाले नुकसान और जैविक खाद के फायदे बताए गए। वर्तमान में जगला के अलावा बोदा, डोंगरिया, थुरेमेटा, देवरीमेटा, मंडई, छपला, देवगांव, पंडरापानी के महिला, पुरूष किसान प्रशिक्षण लेने आ रहे है।

 

इनका कहना

बिरसा तहसील के जगला गांव के किसान गोवर्धन जैविक खाद से खेती कर रहे है जैविक खाद से अच्छी किस्म की धान, गेहूं सहित सब्जियों का उत्पादन लेते है। इससे उनकी आर्थिक हालत में सुधार आया है।

इससे उनके आसपास के गांव के किसान भी प्रेरित हो रहे है और जैविक खाद बनाने की विधि जानने आते है। जैविक खाद से भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है।

डॉ. आरएल राऊत

प्रमुख वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र बड़गांव बालाघाट।

 

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source : naidunia

 

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