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इस साल सरसों दाम का टूटा रिकॉर्ड

 

अब सरसों की खेती पर फोकस करेंगे किसान

 

सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4650 रुपये प्रति क्विंटल है.

सरसों अनुसंधान केंद्र भरतपुर के निदेशक डॉ. पीके राय ने कहा है कि दाम के टूटते रिकॉर्ड की वजह से किसानों का नजरिया बदलेगा और अब वे राष्ट्रीय तिलहन मिशन को पंख लगाएंगे.

किसान अब गेहूं की बजाय सरसों की खेती पर ज्यादा ध्यान देंगे. इस साल सरसों न्यूनतम समर्थन मूल्य से 2500 रुपये प्रति क्विंटल तक अधिक दाम पर बिकी है. इस प्रॉफिट को किसान बखूबी समझ रहे हैं.

सरसों का दाम अब तक के उच्चतम स्तर पर है.

पिछले साल जहां अप्रैल को किसान मंडियों में 3800 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल के रेट पर इसकी बिक्री कर रहे थे, वहीं इस साल इसका औसत दाम 7000 रुपये तक रहा है.

 

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ऐसे क्षेत्रों में बढ़ेगी खेती

राय का कहना है कि आमतौर पर किसान उन्हीं फसलों पर फोकस करते हैं जिनका अच्छा दाम मिलता है. इसलिए सरसों की खेती ज्यादा होने का अनुमान है.

सरसों अनुसंधान निदेशालय उन क्षेत्रों में इसके उत्पादन पर फोकस कर रहा है जहां इसकी खेती लायक सारी स्थितियां मौजूद हैं लेकिन किसानों इसकी खेती नहीं कर रहे थे.

 

झारखंड में सरसों की खेती को प्रमोट करने का अभियान चल रहा है. यहां नक्सल प्रभावित जिलों-गुमला, लोहरदगा, लातेहार, दुमका और पश्चिम सिंहभूमि आदि में इसकी खेती करवाई जा रही है.

पंजाब और हरियाणा में जहां पानी की कमी है वहां धान, गेहूं और गन्ना जैसी फसलों की बजाय तिलहन जोर दिया जाएगा.

 

पूर्वांचल में भी इस पर फोकस होगा. पूर्वोत्तर में लाखों हेक्टेयर जमीन धान की फसल लेने के बाद खाली रहती है.

उसमें सरसों उगाने पर जोर है. असम में 12 जिलों में 50 कलस्टर में आईसीएआर की देखरेख में इसकी खेती हो रही है.

तिलहन की ज्यादा खेती होगी तो हम खाद्य तेलों का आयात घटा सकेंगे. यह किसानों और देश की इकोनॉमी दोनों के लिए फायदेमंद साबित होगा.

 

वर्तमान में सरसों उत्पादक क्षेत्र

अभी तक राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, यूपी और पश्चिम बंगाल ही सरसों के प्रमुख उत्पादक राज्यों में शामिल किए जाते हैं.

राष्ट्रीय तिलहन मिशन पर अगले पांच साल में सरकार 19,000 करोड़ रुपये खर्च करने वाली है. इसका भी किसानों को फायदा मिलेगा. इससे बुवाई के क्षेत्र में इजाफा होगा.

 

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बढ़ेगा उत्पादन का लक्ष्य

फिलहाल जो रबी सीजन बीता है उसमें करीब 70 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई थी.

केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक 2020-21 में 10.43 मिलियन टन सरसों के उत्पादन का अनुमान है.

जबकि 2019-20 में यह 9.12 मिलियन टन था. मस्टर्ड मिशन के तहत इसे 14 मिलियन टन करने का टारगेट है.

 

कृषि प्रधान देश होने बावजूद भारत सालाना करीब 70,000 करोड़ रुपए का खाद्य तेल आयात कर रहा है.

अगर किसान सरसों, सोयाबीन, मूंगफली और सूरजमुखी की खेती करें तो इंपोर्ट पर खर्च होने वाला यह पैसा देश के किसानों के बैंक अकाउंट में जा सकता है.

 

गेहूं के मुकाबले सरसों में लाभ

गेहूं और सरसों की खेती में कौन ज्यादा फायदेमंद है, इसके लिए हम हरियाणा को मॉडल के तौर पर लेते हैं. यह इन दोनों फसलों का प्रमुख उत्पादक है.

पहली बात यह है कि गेहूं का उत्पादन जरूरत से अधिक हो रहा है. इसलिए इसका मार्केट रेट एमएसपी से कम ही रहता है.

गेहूं में सरसों के मुकाबले ज्यादा खाद, पानी की खपत होती है. किसान की मेहनत ज्यादा लगती है.

 

  • यहां प्रति हेक्टेयर गेहूं उत्पादन पर 2016-17 में 70042 रुपये का खर्च आया
  • .इस प्रदेश में प्रति हेक्टेयर 49.28 क्विंटल गेहूं पैदा होता है.
  • गेहूं की एमएसपी 1975 रुपये क्विंटल है.
  • इस तरह एक हेक्टेयर में 97,328 रुपये का गेहूं होगा.
  • हरियाणा में प्रति हेक्टेयर सरसों उत्पादन पर 2016-17 में 52516 रुपये का खर्च आया.
  • यहां सरसों की औसत पैदावार 18.92 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
  • सरसों की एमएसपी 4650 रुपये है, लेकिन बाजार भाव 5500 से 7000 रुपये तक है.
  • बाजार भाव के हिसाब से एक हेक्टेयर में कम से कम 1,04,060 रुपये की सरसों पैदा होगी.

 

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