हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें

करेले की खेती- किसान कर सकते हैं लाखों रुपये की कमाई

 

करेले की खेती

 

करेले की खेती महाराष्ट्र के हर जिले में की जाती हैं. राज्य में 453 हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती होती हैं.

इसकी खेती कर कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं किसान.

 

करेला एक ऐसी सब्जी हैं जिसकी डिमांड हमेशा बाज़ारों में रहती हैं.

इसिलए किसान काम समय में  और  कम जगहों पर इसकी खेती कर अच्छा आमदनी प्राप्त कर सकते हैं.करेला की खेती पुरे भारत में की जाती है.

तो वही महाराष्ट्र में लगभग 453 हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती की जाती हैं.

यह बेल पर लगने वाली सब्जी होती है.इसकी सब्जी की विदेशों और बड़े शहरों में हमेशा मांग रहती हैं.करेला एक अनोखा कड़वा स्वाद वाला सब्जी हैं.

इसके साथ ही इसमें अच्छे औषधीय गुण भी पाये जाते हैं. इसके फलों में विटामिन और  खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं.

 

इसकी फसलों को मानसून और गर्मी के मौसम में लगाया जाता है करेले की अच्छी उत्पादन के लिए गर्म और आद्र जलवायु अत्याधिक उपयुक्त होती है.

लिए इसका तापमान न्यूनतम 20 डिग्री सेंटीग्रेट और अधिकतम तापमान 35 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट के बीच होना चाहिए.

 

करेले की खेती के लिए कैसी होनी चाहिए जमीन

रोपण अच्छी जल निकासी वाली भारी से मध्यम मिट्टी में किया जाना चाहिए इन फसलों को दोमट या दोमट मिट्टी में नहीं उगाना चाहिए.

करेले के उत्पादन के लिए नदी के किनारे जलोढ़ मिट्टी भी अच्छी होती है.

जमीन को लंबवत और क्षैतिज रूप से जोतकर और खरपतवार और घास के टुकड़ों को हटाकर खेत को साफ करना चाहिए.

फिर प्रति हेक्टेयर 100 से 150 क्विंटल खाद या कम्पोस्ट डालें.

 

खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिला लें.इसकी रोपाई के लिए दो पंक्तियों में 1.5 से 2 मीटर और दो लताओं में 60 सेमी की दूरी होनी चाहिए.

दौड़ने के लिए, दो पंक्तियों में 2.5 से 3.5 मीटर की दूरी पर दो पंक्तियों में 80 से 120 सेमी की दूरी रखी जाती है.

प्रत्येक स्थान पर 2 से 3 बीज रोपें. बीज टोकन को दोनों फसलों में नम मिट्टी में लगाना चाहिए.

बीजों को कांख में बोया जाता है। अंकुरित होने तक बीटा पानी दें.

 

करेले की उन्नत किस्मों

कोयंबटूर लॉग: इस किस्म के फल सफेद और लंबे होते हैं. इस किस्म की खेती महाराष्ट्र में मानसून के मौसम में की जाती है.

अर्का हरित: इस किस्म के फल आकर्षक, छोटे, मध्यम, फुगीर, हरे रंग के होते हैं.फलों में बीज की मात्रा कम होती है.

उर्वरक और पानी सही उपयोग

20 किग्रा एन/हेक्टेयर 30 किग्रा पी तथा 30 किग्रा के प्रति हेक्टेयर बुवाई के समय डालें तथा 20 किग्रा एन की दूसरी खुराक फूल आने के समय डालें.

साथ ही 20 से 30 किलो एन प्रति हेक्टेयर, 25 किलो पी और 25 किलो के रोपण के समय डालें.

25 से 30 किग्रा एन की दूसरी किश्त 1 माह में दी जानी चाहिए.

 

करेले के फसलों को रोगों से बचाव के उपाय

रोग: ये फसलें मुख्य रूप से केवड़ा और भूरी रोगों से प्रभावित होती हैं.

भूरे रंग के रोग के नियंत्रण के लिए डिनोकैप-1 मिली. 1 लीटर पानी से स्प्रे करें और केवड़ा के नियंत्रण के लिए डायथीन जेड 78 हेक्टेयर 10 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में स्प्रे करें.

source

 

यह भी पढ़े : ये हैं प्याज की 5 सबसे उन्नत किस्में

 

यह भी पढ़े : गेहूं और सरसों की अच्छी पैदावार के लिए वैज्ञानिक सलाह

 

यह भी पढ़े : किसानो को सलाह, प्रति हैक्टेयर 100 किलोग्राम गेहूं का उपयोग बुआई में करें

 

शेयर करे