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फूलगोभी की उन्नत खेती

 

फूलगोभी

 

फूलगोभी हर तरह की ज़मीन  मैं हो सकती है।  लेकिन रेतली ज़मीन में अच्छी पैदावार हो सकती है।

फूलगोभी की फसल 6 से 7 पी एच वाली फसल में अच्छी होती है। इसकी काश्त में तापमान का बहुत बड़ा हाथ होता है।

फूलगोभी की पौध  तैयार  करने  के  लिए 23 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए और बाद में 17 से 20 डिग्री होना उत्तम माना  जाता है।

 

गरम इलाको में  इसकी फसल 35 डिग्री  में  भी हो  सकती  है। जबकि ठन्डे  एरिया  में 15  से  20 डिग्री में भी हो  जाती है।

पहले खेत को पलेवा करें जब भूमि जुताई योग्य हो जाए तब उसकी जुताई 2 बार मिटटी पलटने वाले हल से करें इसके बाद दो बार कल्टीवेटर चलाएँ और प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं।

 

फूलगोभी की  उन्नतशील प्रजातियाँ

फूलगोभी की मौसम के आधार पर तीन प्रकार की प्रजातियाँ होती है, जैसे की अगेती, मध्यम और पछेती प्रजातियाँ पायी जाती हैं।

अगेती प्रजातियाँ पूसा दिपाली,अर्ली कुवारी, अर्ली पटना, पन्त गोभी 2, पन्त गोभी 3 पूसा कार्तिक,  पूसा अर्ली सेन्थेटिक, पटना अगेती, सेलेक्सन 327 एवं सेलेक्सन 328 है।

 

मध्यम प्रकार की – प्रजातियाँ पन्त शुभ्रा, इम्प्रूव जापानी, हिसार 114, एस-1, नरेन्द्र गोभी 1, पंजाब जॉइंट ,अर्ली स्नोबाल, पूसा हाइब्रिड 2, पूसा अगहनी, एवं पटना मध्यम, आखिरी में पछेती प्रजातियाँ स्नोबाल 16, पूसा स्नोबाल 1, पूसा स्नोबाल 2, पूसा के 1, दानिया, स्नोकिंग, पूसा सेन्थेटिक, विश्व भारती, बनारसी मागी, जॉइंट स्नोबाल।

 

खादें

फूल गोभी की अधिक उपज लेने के लिए भूमि में पर्याप्त मात्रा में खाद डालना अत्यंत आवश्यक है।

मुख्या मौसम की फसल को अपेक्षाकृत अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।

भूमि में प्रति एकर के हिसाब से डालने  के लिए नीचे दी  गई खाद  डाले :-

40  टन  गोबर खाद, 50 किलो न्यट्रोजन (100 किलो यूरिया ), 25 किलो फ़ॉस्फ़ोरस (150 किलो सुपरफसफेट), 25 किलो पोटाश (40 किलो म्यूरेट पोटाश )

सारी गोबर खाद + सारी फ़ॉस्फ़ोरस + सारी  पोटाश +आधी न्यट्रोजन पौध लगने से पहले खेत में  डाल दें और अच्छे से मिक्स कर दें।और बाकी की आधी न्यट्रोजन  चार  हफ्ते बाद डालें।

 

सिंचाई

पहली सिचाई पौध रोपण के तुरन्त बाद हल्की करनी चाहिए।

इसके पश्चात आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अन्तराल पर सिचाई करते रहना चाहिए। टोटल 8 से 12 सिंचाई की जरूरत है।

 

खरपतवार

फसल के साथ उगे खरपतवारों कि रोकथाम के लिए आवश्यकता अनुसार निराई – गुड़ाई करते रहे चूँकि फुलगोभी उथली जड़ वाली फसल है।

इसलिए उसकी निराई- गुड़ाई ज्यादा गहरी न करें और खरपतवार को उखाड़ कर नष्ट कर दें,  खरपतवार  की रोकथाम के  लिए  मल्चिंग  भी  कर  सकते हैं।

 

बीज दर और बुवाई के समय

फूल गोभी के बीज को पौधघरों में बोते है। मिट्टी को जीवाणु विहीन करने के लिए फार्मल्डिहाइड या अन्यफन्जीसाइड के द्वारा उपचारित करते है।

बोने के पूर्व बीजों को किसी मरक्यूरिक फफूंद नाशकसे उपचारित कर लेना चाहिए। 

गोभी की फसल की बुवाई का समय निम्न प्रकार से की जाती है :-

  1. अगेती किस्में अर्थात सितम्बर-अक्टूबर में तैयारहोने वाली किस्में मई-जून में।
  2. मध्यकालीन किस्मेंअर्थात नवंबर में तैयार होनेवाली किस्में जुलाई में।
  3. मध्यकालीन पछेती अर्थात दिसंबर में तैयार होनेवाली किस्मों को अगस्त में।
  4. पछेती किस्मों अर्थातजनवरी में तैयार होने वाली किस्मों की सितंबर-अक्टूबर मेंबुवाई की जाती है।

 

अगेती फसल के लिए 500-700 ग्राम बीज की तथा पछेती मध्य कालीन फसल केलिए 300-370 ग्राम बीज प्रतिहेक्टेयर खेत में रोपाई के लिए पर्याप्त है।

जब पौध 4-6 सप्ताह की हो जाए तो उनकी रोपाई कर देनी चाहिए। रोपाई प्राय चैरिस बसारियों अथवा मेढ़ों पर की जाती है।

अगेती पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी तथा पौधों से पौधों की दूरी 30 सेमी रखते है।

रोपाई शाम के समय ही करनी चाहिए। रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करना चाहिए।

 

  • पौध रोपण के 4 से 6 सप्ताह पश्चात् पौधों पर मिट्टी चढ़ा दें जिससे फूलों के भार से पौधे टेढ़े न हो जायें।
  • फूल का रंग आकर्षक सफेद बनाने के लिए, पौधे की चारों ओर फैली हुई पत्तियों को फूल के ऊपर समेटकर बांध देने को ब्लांचिंग कहते है। धूप से फूल का रंग पीला हो जाता है। यह -क्रिया फूल तैयार हो जाने के 8-10 दिन पूर्व की जानी चाहिए।

 

कटाई

हमेशा पूर्ण विकसित फूलोंकी कटाई करनी चाहिए वअगेली फसल की उपज कमऔर मध्य पछेती फसलों कीअधिक पैदावार होती है।

अगेतीफसल से 150 से 200 क्विंटलतथा मध्य एवं पछेती किस्मों से 200 से 300 क्विंटल प्रतिहेक्टेयर ुत्पादन प्राप्त होता है।

 

फसल सुरक्षा

फसल सुरक्षा दो प्रकार की होती है। पहला रोग नियंत्रण और दूसरा कीट नियंत्रण। रोग नियंत्रण में पौध गलन या डंपिंग आफ जनक की बीमारी पीथियम नामक फफूंदी से होती है।

इससे बीज अंकुरित होते ही पौधे संक्रामित हो जाते है।

इसका  नियंत्रण बीज बुवाई के पहले बीज शोधन करके बोना चाहिए। जैसे की 2.5 से 3 ग्राम थीरम या इग्रोसिन जी एन से प्रति किलोग्राम बीज को शोधन कर लेना चाहिए।

 

दूसरा है ब्लैक राट जीवाणु काला सडन इसमे पत्तियों पर सबसे पहले अग्रेजी के वी  आकार के नमी युक्त हरे भाग बनाते है।

जो की बाद में भूरे तथा बाद में काले होकर मुरझा जाते है। इसका नियंत्रण पौधे के अवशेष एकत्र करके जला देना चाहिए।इसके साथ ही साथ बीज की बुवाई बीज शोधित करके करनी चाहिए।

 

10% ब्लीचिंग पाउडर अथवा प्लांटोमाईसिन्  ईस्ट्रैपटोसाएक्लीन 100 पी.पी.एम. 1 ग्राम  दवा 10 लीटर पानी घोलकर बीज को डुबोकर बुवाई करनी चाहिए।

रोगों के साथ-साथ इसमें कीट भी लगते हैंI जैसे की गिराट या सूंड़ी।

यह गिराट पत्तियां कहती हैं. इसके लिए नियंत्रण 5% अलसोन या मेलथिन अथवा 10% कार्बोलाल धुल पाउडर का 20-25 किलोग्राम की दर भुरकाव या डस्टिंग प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए।

source : krishisewa

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