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फूलगोभी के रोग एवं प्रबंधन

 

फूलगोभी के रोग

 

रिसीनेस (फूलगोभी के बीच में असमान वृद्धि)

कुछ कर्ड (फूलगोभी का फूल वाला भाग) कभी-कभी अलग-अलग पेडीकल्स के लंबे होने के कारण ढीले पड़ जाते हैं।

विशेष रूप से गर्म बादलों वाली रातों में अलग-अलग फूलों के पेडीकल्स और समय से पहले फूल के खिलने के कारण के कर्ड सतह पर पीला और मखमली या दानेदार दिखाई देता है।

इस स्थिति में फूल की कलियों के अचानक बढऩे और समय से पहले उनके खिलने के कारण फूलगोभी में रिसीनेस का कारण बनती है।

कर्ड की सतह एक कटोरी उबले हुए चावल की तरह दिखती है इसलिए ऐसे रेसी कहलाते हैं, ऐसे रेसी के गुण को रिसीनेस कहते हैं।

 

नियंत्रण

  • फूलगोभी की रिसिनेस से मुक्त किस्में अंदेश, पूसा दिपाली, पूसा शुभ्रा आदि किस्मों की बुवाई करें। द्य नाइट्रोजन को अधिक मात्रा में ना डालें, नाइट्रोजन की अनुशंसित मात्रा के अनुसार खेत में उपयोग करें।

 

व्हिपटेल (शीर्ष का झाड़ुनुमा हो जाना)

विशेष रूप से फूलगोभी को अम्लीय मृदा में लगाने से मिट्टी में ‘मोलिब्डेनम’ तत्व की कमी के कारण व्हिपटेल बनता है।

सामान्य पत्ती के ब्लेड का विकास असफल हो जाता है और केवल स्कोय वाली पत्तियों की तरह स्ट्रैप (पट्टा) बनता है।

अत्यंत परस्थितियों में, केवल पत्तियों के मध्य शिरा का ही विकास हो पाता है इसलिए इस विकार को व्हिपटेल नाम दिया गया है।

 

नियंत्रण

  • अधिक अम्लीय मृदाओं में फूलगोभी की बुवाई नहीं करें।
  • अमोनियम मोलिब्डेट का 200 से 300 ग्राम प्रति हेक्टेयर (0.01- 0.1प्रतिशत) की दर से छिड़काव करें।

 

बटनिंग (फूलगोभी में छोटे कर्ड का विकास होना)

विकसित हो रहे प्रौढ़ पौधों में छोटे – छोटे शीर्ष ( कर्ड) का निर्माण हो जाता है तथा पौधों में कम व छोटी पत्तियों का होना बटनिंग कहलाता है।

यह विकृति नाइट्रोजन की कमी, पुराने रोप की रोपाई करने, खेत में पानी का ठहराव और अगेती प्रजातियों को कम तापमान में लगाने से बटनिंग की समस्या उत्पन्न होती है।

 

नियंत्रण

  • नाइट्रोजन की अनुशंसित मात्रा के अनुसार खेत में उपयोग करें। यूरिया का (0.2 प्रतिशत) की दर से खड़ी फसल में छिड़काव करें।
  • पुराने पौध की रोपाई नहीं करें, नये व स्वस्थ पौध की रोपाई करें।
  • खेत में उचित जल निकास की व्यवस्था करें।
  • फूलगोभी की अगेती किस्मों को उचित समय पर रोपाई करें।

 

ब्राउनिंग/लाल सडऩ

यह विकार बोरॉन की कमी से होता है। इस विकार का पहला लक्षण कर्ड के बीच में और तने में भी पानी से शोषित क्षेत्रों का दिखना है।

अधिक गंभीर अवस्था में गुलाबी या जंग लगे भूरे या लाल सडऩ में खोखलापन हो जाता है।

इस विकार के अन्य लक्षण पत्ते के रंग में परिवर्तन, पत्तियों की मोटाई, भंगुरता और पुरानी पत्तियों का नीचे की ओर मुडऩा और उसके बाद मध्य शिरा पर फफोलों का बनना है।

पुराने पत्तों के किनारों पर बैंगनी रंग दिखाई पड़ते हैं। बोरॉन अनुपलब्धता के कारण यह विकार क्षारीय मिट्टी में अधिक दिखाई देता है।

 

नियंत्रण

  • बोरिक एसिड 0.12 प्रतिशत का पर्णीय छिड़काव करें या बोरेक्स का 0.25-0.50 प्रतिशत का पर्णीय छिड़काव करें या बोरेक्स और सोडियम बोराटे का 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से न उपयोग करें।

 

ब्लाइंडनेस (अंधापन)

टर्मिनल कली के बिना पौधे को अंधापन कहा जाता है, ऐसे पौधों की पत्तियां अतिरिक्त बड़ी, मोटी, गहरे हरे रंग की हो जाती है और कार्बोहाइड्रेट के अत्यधिक संचय के कारण सख्त हो जाती हैं और ऐसे पौधे में टर्मिनल या एपिकल कलियों को उत्पादित नहीं कर पाती है।

अंधेपन का मुख्य कारण बहुत कम तापमान या नर्सरी अवस्था में टर्मिनल कलियों को ठंड से क्षति है।

पौध को नर्सरी से खेत में रोपने के लिए या अंतरशस्य क्रियाओं के दौरान स्थानांतरित करने के दौरान, कीटों के प्रकोप से टर्मिनल कली की क्षति हो जाती है।

 

नियंत्रण

  • पाले से कलियों को बचाने के लिए फसल की सिंचाई करें।
  • कीटों से बचाव के लिए कीटनाशी का प्रयोग करें। द्य फसल की देखभाल ठीक तरीके से करें ताकि शीर्ष को नुकसान न पहुंचे।

 

होलोनेस (तने का खोखलापन)

फूलगोभी में तने का खोखलापन बोरॉन की कमी और नाइट्रोजन के अत्यधिक उपयोग के कारण होता है।

इस विकार से ग्रसित पौधों में तने के नीचे से लेकर ऊपर तक खोखला हो जाता है।

देखने में यह पौधा बाकी की तुलना में अधिक बड़ा दिखाई देता है और इसका तना स्पष्ट सफेद रंग में दिखाई देता है।

 

नियंत्रण
  • नाइट्रोजनीय उर्वरकों का प्रयोग कम दर में करें।
  • बोरेक्स का 0.1-0.3 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें।

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