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गर्मियों में करें भिंडी की खेती, मुनाफा होगा 4 गुना

 

एक बार पैसा खर्च करके दो बार मिलेगी फसल

 

भिंडी में कई तरह के प्रोटीन व पोषक तत्व पाए जाते हैं तथा भिंडी उत्पादन में भारत भारत का विश्व में प्रथम स्थान है।

भिंडी की फसल कई राज्यों में की जाती है। सब्जी की खेती करने वाले किसान अधिकतर भिंडी की फसल उगा कर कम लागत में लाखों रुपए कमा लेते हैं। कुछ किसान ऐसे भी हैं।

जो भिंडी की फसल उगाने में सिर्फ एक बार पैसा खर्च करते हैं,और दो बार भिंडी की फसल को उगा कर 4 गुना मुनाफा कमा लेते हैं।

 

एक बार बीज रोपण कर प्राप्त करें दो बार फसल

भिंडी की बुवाई का समय 2 फरवरी से शुरू होता है ।बाजार से उस बीज को खरीदें जो जल्दी तैयार होता है।

और गर्मी बरसात दोनों ही मौसमों में अच्छी उपज दे। और करें अपने खेत में दो बार फसल

किसान अपने खेत में बीज को अंकुरित करके बुवाई कर दे। उसके बाद खाद पानी की व्यवस्था आम भिंडी की फसलों की तरह ही करनी है।

फरवरी/मार्च मे बुवाई करने से फसल तकरीबन 40 से 50 दिनों में तैयार हो जाती है।

भिंडी की फसल लगना चालू हो जाती है। तथा जून महीना आने तक भिंडी के पौधों को जड़ से 4-5 इंच छोड़ कर उसकी कलम कर देना चाहिए।

कलम किए गए पौधों मैं फिर से कल्ले निकल आते हैं और दोबारा निकले हुए कल्लो में 40 से 50 दिनों में ही फल लगने लगते हैं।

इस तरह आप एक बार बीज की बुवाई करके दोबारा फसल काट सकते हैं। इससे आपको खाद-पानी बीज की लागत आधे से कम होगी और मुनाफा 4 गुना होगा।

 

भिंडी की खेती के लिए खेत को कैसे तैयार करना

भिंडी एक ऐसी फसल है जिसे ग्रीष्म ऋतु तथा वर्षा ऋतु में भी फसल प्राप्त की जा सकती है इसके लिए किसान अपने खेत में फरवरी/मार्च महीने में फसल के लिए अपने खेत को तैयार कर ले।

भिंडी के लिए दीर्घ अवधि व गर्म व नम वातावरण श्रेष्ठ माना जाता है। बीज उगाने के लिए 27 से 30 डिग्री से.ग्रे. तापमान उपयुक्त होता है।

तथा 17 डिग्री से.ग्रे से कम पर बीज अंकुरित नहीं होता यह फसल ग्रीष्म तथा खरीफ दोनों ही रितु ओं में उगाई जाती है।

भिंडी को उत्तम जल निकास वाले सभी तरह की भूमियों में उगाया जा सकता है। भूमि का पीएच मान 7.0 से 7.8 होना उपयुक्त रहता है।

भूमि को दो-तीन बार जुताई कर भुरभुरी कर तथा पाटा चला कर समतल कर लेना चाहिए।

 

खाद और उर्वरक

भिंडी की फसल में अच्छा उत्पादन लेने के लिए प्रति हेक्टेयर में 15 से 20 गोबर की खाद एवं नत्रजन (उर्वरक) एवं पोटाश की क्रमशः 80कि.ग्रा. 60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में देना चाहिए नत्रजन(उर्वरक) की आधी मात्रा  एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व भूमि में देना चाहिए।

नत्रजन(उर्वरक) शेष मात्रा को दो भागों में 40 दिनों के अंतराल में देना चाहिए।

 

निंदाई,गुड़ाई व सिंचाई

नियमित निंदाई व गुड़ाई से खेत की खरपतवार खत्म हो जाती है।

बुवाई के 10 से 15 दिन के बाद प्रथम नींद आई गुड आई करनी चाहिए जिससे कि खेत का खरपतवार नियंत्रण में रहे, तथा रसायनिक कीटनाशकों का प्रयोग भी करना चाहिए।

खरपतवारनाशी फ्ल्यूक्लरेलिन के 1.0कि.ग्रा. सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर में पर्याप्त मात्रा मे खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से प्रभावित खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है।

 

सिंचाई

 खेत की सिंचाई मार्च में 10-12 दिन के अंतराल में तथा अप्रैल में 7-8 दिन और मई-जून में 4-5 दिन के अंतराल में करें।

बरसात में यदि बरसात बराबर वर्षा होती है। तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।

source : choupalsamachar

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